धर्म-संस्कृति

Joshimath Narsingh Temple: जोशीमठ में इसलिए पतले होते जा रहे भगवान नृसिंह के हाथ, जानें क्या है इसका राज

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जोशीमठ पवित्र धार्मिक स्थलों में से एक है और यह जगह आजकल लगातार जमीन धंसने की वजह से खबरों में है। यह पवित्र स्थल बर्फ से ढकी हिमालय की पर्वतमालाओं से घिरा हुआ है और यहां हिंदुओं के कई प्रमुख तीर्थ स्थल हैं, जिसमें से एक है भगवान नृसिंह का मंदिर। इस मंदिर में भगवान नृसिंह की मूर्ति की स्थापना आदि शंकराचार्य ने की थी। इस मूर्ति का एक बाजू लगातार पतला होता जा रहा हैं। इसको लेकर कई तरह की मान्यताएं हैं। लेकिन इस रहस्य के पीछे कुछ रोचक कहानियां भी हैं। आइए जानते हैं आखिर क्यों पतले हो जा रहे हैं जोशीमठ में भगवान नृसिंह के हाथ।

नृसिंह मंदिर और भगवान बद्रीनाथ का संबंध

जोशीमठ के प्रसिद्ध नृसिंह मंदिर में साल भर लोगों का आना जाना लगा रहता है और बताया जाता है कि यह मंदिर करीब एक हजार साल पुराना है। ठंड के मौसम में भगवान बदरीनाथ इसी मंदिर में आकर विराजते हैं, यह भगवान बद्रीनाथ की शीतकालीन गद्दी है। यहां उनकी पूजा-अर्चना की जाती है। मान्यता है कि जोशीमठ के नृसिंह भगवान के दर्शन किए बिना भगवान बदरीनाथ की यात्रा पूरी नहीं मानी जाती। इसलिए इस मंदिर को नृसिंह बदरी भी कहा जाता है।

जोशीमठ नृसिंह मंदिर की मान्यताएं

भगवान नृसिंह के इस मंदिर को लेकर कई तरह के मत हैं लेकिन राजतरंगिणी ग्रंथ में बताया गया है कि इस मंदिर को आठवीं सदी में बनाया गया था। कश्मीर के राजा ललितादित्य मुक्तापीड द्वारा इस मंदिर का निर्माण किया गया था। वहीं एक मत यह भी है कि पांडवों ने इस मंदिर की नींव रखी थी। साथ ही एक अन्य मत के अनुसार, नृसिंह भगवान की मूर्ति की स्थापना आदि गुरु शंकराचार्य ने की थी क्योंकि भगवान नृसिंह को वह अपना इष्टदेव मानते थे। इस मंदिर में आदिगुरु शंकराचार्य की गद्दी भी है। वहीं कुछ लोगों का मानना है कि यह मूर्ति स्वयं प्रकट हुई थी।

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शालिग्राम से बनी है भगवान नृसिंह की मूर्ति

नृसिंह बदरी मंदिर में भगवान की मूर्ति करीब 10 इंच की है और यह शालिग्राम पत्थर से बनी है। मंदिर में भगवान नृसिंह की मूर्ति एक कमल पर विराजमान है। भगवान नृसिंह के अलावा मंदिर में बद्रीनारायण, कुबेर, उद्धव की मूर्तियां भी विराजमान हैं। वहीं भगवान नृसिंह के राइट साइड की तरफ राम, सीता, हनुमानजी और गरुड़ की मूर्तियां भी स्थापित है और लेफ्ट साइड में कालिका माता की प्रतिमा स्थापित है।

केदारखंड में लिखा है नृसिंह के पतले हाथ का राज

मंदिर में स्थित भगवान नृसिंह की प्रतिमा की राइट हैंड साइड की भुजा पतली है और यह हर साल धीरे-धीरे पतली होती जा रही है। केदारखंड के सनत कुमार संहिता में बताया गया है कि एक दिन भगवान नृसिंह का यह हाथ टूट कर गिर जाएगा। जिस दिन यह घटना होगी, नर और नारायण नाम के पहाड़ आपस में मिल जाएंगे और भगवान बदरीनाथ के दर्शन नहीं हो पाएंगे। तब जोशीमठ के तपोवन क्षेत्र में भविष्य बदरी मंदिर में बदरीनाथ के दर्शन होंगे।

जोशीमठ में लिखे इस भविष्यवाणी को कोई पढ नहीं पाया

भविष्य बदरी मंदिर के पास एक पत्थर है, जिस पर आदिगुरु शंकराचार्य ने भविष्यवाणी भी लिखी है। लेकिन आज तक कोई भी इस भविष्यवाणी को पढ़ नहीं सका है। जोशीमठ का संबंध रामायण और महाभारत काल से भी है। बताया जाता है कि भगवान हनुमानजी संजीवनी बूटी की खोज में यहां आए थे, तब उनका युद्ध कालनेमी असुर से हुआ था। जहां पर हनुमानजी ने असुर को मारा वहां की जमीन आज भी लाल कीचड़ जैसी दिखाई दे रही है।

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राजा की उस गलती के कारण पतले हो रहे नृसिंह के हाथ

एक कथा जोशीमठ में प्रचलित है कि, एक समय में यहां पर वासुदेव नाम के एक राजा का शासन था। एक दिन राजा शिकार खेलने के लिए वन में गए हुए थे। इसी समय भगवान नृसिंह राजा के महल में पधारे औऱ महारानी से भगवान नृसिंह ने भोजन के लिए कहा। महारानी ने आदर पूर्वक भगवान को भोजन करवाया। भोजन के पश्चात भगवान के राजा के बिस्तर पर आराम करने के लिए कहा। इस बीच राजा शिकार से लौट आए और अपने कक्ष में पहुंचे। राजा ने देखा की एक पुरुष उनके बिस्तर पर लेटा हुआ है। राजा क्रोध से तमतमा उठा और तलवार से उस पुरुष पर वार कर दिया। तलवार लगते ही उस पुरुष के बाजू से खून की बजाय दूध बहने लगा। और पुरुष भगवान नृसिंह के रूप में बदल गया। राजा को अपनी भूल का अहसास हुआ और क्षमा याचना करने लगा। भगवान नृसिंह ने कहा कि तुमने जो अपराध किया है उसका दंड यह है कि तुम अपने परिवार के साथ जोशीमठ छोड़ दो और कत्यूर में जाकर बस जाओ। साथ ही भगवान ने कहा कि तुम्हारे प्रहार के प्रभाव से मंदिर में जो मेरी मूर्ति है उसकी एक बाजू पतली होती जाएगी और जिस दिन वह पतली होकर गिर जाएगी उस दिन राजवंश का अंत हो जाएगा।

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