
बसंत पंचमी की पौराणिक कथा
बसंत पंचमी का पर्व मां सरस्वती के अवतरण दिवस में रूप में मनाया जाता है। हर साल माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को बसंत पंचमी मनाई जाती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार ब्रह्माजी संसार के भ्रमण पर निकले हुए थे। उन्होंने जब सारा ब्रह्माण्ड देखे तो उन्हें सब मूक नजर आया। यानी हर तरफ खामोशी छाई हुई थी। इसे देखने के बाद उन्हें लगा कि संसार की रचना में कुछ कमी रह गई है।
इसके बाद ब्रह्माजी एक जगह पर ठहर गए और उन्होंने अपने कमंडल से थोड़ा जल निकालकर छिड़क दिया। तो एक महान ज्योतिपुंज में से एक देवी प्रकट हुई। जिनके हाथों में वीणा थी और चेहरे पर बहुत ज्यादा तेज। यह देवी थी सरस्वती, उन्होंने ब्रह्माजी को प्रणाम किया। मां सरस्वती के अवतरण दिवस के रूप में बसंत पंचमी का पर्व मनाया जाता है।
ब्रह्माजी ने सरस्वती से कहा कि इस संसार में सभी लोग मूक है। ये सभी लोग बस चल रहे हैं इनमें आपसी संवाद नहीं है। ये लोग आपस में बातचीत नहीं कर पाते हैं। इसपर देवी सरस्वती ने पूछा की प्रभु मेरे लिए क्या आज्ञा है? ब्रह्माजी ने कहा देवी आपको अपनी वीणा की मदद की इन्हें ध्वनि प्रदान करो। ताकि ये लोग आपस में बातचीत कर सकें। एक दूसरे की तकलीफ को समझ सकें। इसके बाद मां सरस्वती ने सभी को आवाज प्रदान करी।
मां सरस्वती की पूजा अर्चना कैसा करें
मां सरस्वती की पूजा देवी और असुर दोनों ही करते हैं। इस दिन सभी लोग अपने घर, स्कूल, कॉलेज, कार्यस्थल पर मां सरस्वती की पूजा अर्चना करते हैं और उसने ज्ञान मांगते हैं। इसके अलावा मां को सिंदूर चढ़ाएं और श्रृंगार की बाकी वस्तुएं भी अर्पित करें। मां के चरणों में गुलाल लगाकर उन्हें श्वेत रंग के वस्त्र भी अर्पित करें।