Connect with us

उत्तराखण्ड

आखिर क्यों गरज पड़े मुख्यमंत्री धामी, क्‍यों कहा- अब ऐसे लोग बचने वाले नहीं हैं

खबर शेयर करें -

देहरादून: अनुभव के साथ आत्मविश्वास भी बढ़ता जाता है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को ही देखिए, दूसरी बार मुख्यमंत्री बने हैं, मगर पहला कार्यकाल महज सात-आठ महीने का ही रहा। उस पर आखिरी दो महीने चुनाव आचार संहिता में गुजरे। अब धामी ने दूसरे कार्यकाल का एक वर्ष पूरा किया। अमूमन धामी सौम्य रहते हैं, अधिक आक्रामकता उनकी शैली नहीं। इसके उलट अपनी सरकार के एक वर्ष का कार्यकाल पूर्ण होने के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में वह अचानक गरज पड़े।

धामी ने प्रतियोगी परीक्षाओं में शामिल होने वाले परीक्षार्थियों को बरगलाने वालों को दो टूक चेतावनी दी। उन्होंने कहा कि कई लोग ऐसे हैं, जो अपनी राजनीतिक जमीन बचाने के लिए नौजवानों का इस्तेमाल कर रहे हैं। ऐेसे लोग अब बचने वाले नहीं हैं। दरअसल, उनके दूसरे कार्यकाल में भर्ती परीक्षाओं में पेपरलीक व नकल के एक के बाद एक प्रकरणों ने उनके समक्ष सबसे ज्यादा चुनौतीपूर्ण स्थिति पैदा की।

सस्ती शराब और शौकीनों के तर्क

सरकार हाल में नए वित्तीय वर्ष के लिए आबकारी नीति लेकर आई। पड़ोसी राज्यों में शराब सस्ती है, इस कारण तस्करी से सरकार को राजस्व का नुकसान हो रहा था। तोड़ निकाला गया कि अपने राज्य में भी शराब सस्ती कर दो, पीने वाले पियेंगे ही, कम से कम तस्करी तो नहीं होगी। तय हुआ कि प्रति बोतल शराब सौ से तीन सौ रुपये तक सस्ती होगी।

दिलचस्प यह कि सरकार ने गोवंश संरक्षण, महिला कल्याण और खेलकूद के प्रोत्साहन को प्रत्येक के लिए एक रुपये के हिसाब से प्रति बोतल तीन रुपये सेस लगाने का भी निर्णय लिया। पहले तो शौकीन तर्क देते थे कि शराब खरीद राजस्व वृद्धि में योगदान दे रहे हैं। अब उनके पास और पुख्ता कारण भी हो गए हैं। भविष्य में कोई झूम-झूम कहता मिले कि महिला कल्याण योजनाओं, गोवंश संरक्षण और खेलों को प्रोत्साहन के लिए थोड़ी-थोड़ी पी है, तो चौंकिएगा नहीं।

कांग्रेस के पैंतरे को बसपा का झटका

हरीश रावत उत्तराखंड में कांग्रेस के निर्विवाद सबसे बड़े नेता हैं। राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता गई तो यहां मोर्चा रावत ने ही संभाला। आनन-फानन राहुल के समर्थन और भाजपानीत केंद्र सरकार के विरोध में सर्वदलीय बैठक देहरादून में बुला डाली। कई राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि पहुंचे भी, लेकिन राज्य विधानसभा में विपक्ष में कांग्रेस के अलावा जो दूसरा दल है, बसपा, उसने इसमें कोई रुचि दिखाई ही नहीं।

बसपा का कोई प्रतिनिधि बैठक में नहीं पहुंचा। उत्तराखंड में राहुल के बहाने विपक्षी दलों को एक मंच पर लाने की कांग्रेस की पहल पर बसपा ने पलीता लगा दिया। बसपा का मैदानी जिलों, हरिद्वार व ऊधमसिंह नगर में अच्छा-खासा जनाधार है। अगले वर्ष लोकसभा चुनाव हैं और बसपा के विपक्ष के झुंड में शामिल न होने की स्थिति में नुकसान कांग्रेस को ही होगा। उधर, कांग्रेस के अंदर भी कुछ नेता रावत की इस कदर सक्रियता से चौंके हुए हैं।

ये डाल-डाल, तो वे निकले पात-पात

उत्तराखंड में राहुल गांधी प्रकरण में ओबीसी समाज के अपमान से नाराज होकर बड़ी संख्या में गढ़वाल के चार जिलों के ओबीसी समाज के व्यक्तियों ने भाजपा की सदस्यता ग्रहण की। यह हम नहीं, भाजपा कह रही है। हुआ यह कि कांग्रेस ने राहुल के मुद्दे पर विपक्षी दलों को एक पाले में लाने की पहल की, तो भाजपा ने यह जवाबी रणनीति अमल में लानी शुरू कर दी।

इससे साफ हो गया कि भाजपा आने वाले चुनावों में उत्तराखंड में भी ओबीसी को बड़ा मुद्दा बनाने जा रही है। पार्टी के रणनीतिकारों ने इसके लिए ओबीसी समाज से जुड़े कई नेताओं को अपने खेमे में लाने के लिए इन्हें भाजपा में शामिल करा दिया। पार्टी प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट ने इन नेताओं को मुख्यालय में आयोजित कार्यक्रम में सदस्यता दिलाई। संदेश दिया गया कि राहुल की ओबीसी विरोधी सोच के कारण कांग्रेस के लोग भाजपा से जुड़ रहे हैं।

Continue Reading

संपादक - कस्तूरी न्यूज़

More in उत्तराखण्ड

Recent Posts

Facebook

Advertisement

Trending Posts

You cannot copy content of this page