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उत्तराखण्ड

उत्‍तराखंड : जागरूकता अभियान के बाद भी चुनावों में बढ़ रही अवैध मतों की संख्‍या

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देहरादून। प्रदेश में होने वाले हर चुनाव में अवैध मतों व नोटा की संख्‍या बढ़ती जा रही है। ये वे मत हैं, जिन्हें विभिन्‍न कारणों से रद किया गया और जो मतदाताओं की पंसद न होने के कारण किसी के खाते में नहीं गए। इनमें ईवीएम, डाक मतपत्र और नोटा शामिल हैं। यह स्थिति तब है जब निर्वाचन आयोग लगातार मतदाताओं को मतदान के प्रति जागरूक करने के लिए अभियान चला रहा है और उन्हें ईवीएम का प्रयोग भी समझा रहा है।

अलग राज्य बनने के बाद उत्तराखंड में वर्ष 2002 में पहले विधान सभा चुनाव हुए। इस चुनाव में कुल 5270375 मतदाता थे। इनमें से कुल 2863886 यानी 54.34 प्रतिशत मतदाताओं ने अपने मत का प्रयोग किया। चुनाव में पड़े कुल मत में से 2254 मत अवैध पाए गए। यह कुल मतों का 0.08 प्रतिशत था। 2007 के दूसरे विधानसभा चुनाव में कुल 5985302 मतदाता थे। इनमें कुल 3558043 यानी 59.45 प्रतिशत मतदाताओं ने अपने मत का इस्तेमाल किया। इनमें 3978 वोट अवैध और कुल 3773300 मत वैध पाए गए। अवैध मत कुल मतदाताओं का 0.11 प्रतिशत था।

वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में कुल 6377330 मतदाता थे। इनमें से कुल 4219694 मतदाता, यानी 66.17 प्रतिशत मतदाताओं ने अपने मत का प्रयोग किया। इन चुनावों में 11235 यानी कुल मतदान के 0.27 प्रतिशत वोट अवैध पाए गए। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में कुल 7606688 मतदाता थे। इनमें से कुल 4922860 मतदाताओं ने अपने मत का प्रयोग किया। यह 65.56 प्रतिशत रहा। इनमें से 64635 मत अवैध पाए गए। यह कुल मतदान का 2.13 प्रतिशत रहा।

प्रदेश में पिछले चुनाव पर ही नजर दौड़ाएं तो तकरीबन 20 सीटें ऐसी रहीं, जिनमें हार जीत का अंतर 1500 मतों से भी कम रहा। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि अवैध मतों का प्रत्याशियों की हार जीत पर कितना अंतर पड़ सकता है। यही कारण रहा कि निर्वाचन आयोग ने इस बार मतदान के प्रति विशेष जागरूकता अभियान चलाया।

साल – अवैध मत व नोटा – प्रतिशत

2002 – 2254 – 0.08

2007 – 3978 – 0.11

2012 – 11235 – 0.27

2017 – 64635 – 1.13

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संपादक - कस्तूरी न्यूज़

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