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राजनीति

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव: तीन चरण के मतदान के बाद कैसी नज़र आ रही है सियासी तस्वीर

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रामदत्त त्रिपाठी
वरिष्ठ पत्रकार
उत्तर प्रदेश की अठारहवीं विधानसभा चुनाव के लिए मतदान गंगा और यमुना के उपजाऊ इलाक़ों से होता हुआ अब गोमती तट पर आ पहुँचा है. यहॉं तक पहुँचते-पहुँचते सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के नेताओं के चेहरों और बोली में चिंता की लकीरें साफ़ देखी जा सकती हैं और विपक्षी समाजवादी पार्टी गठबंधन में उत्साह बढ़ा दिखता है. अब इसके बाद अवध और सरयूपार करके पूर्वांचल में चुनावी घमासान और तेज़ तथा कटुतापूर्ण होगा.

अखिलेश यादव अपने विधान सभा क्षेत्र करहल में मतदान निबटाकर अब बाक़ी जगह ध्यान देंगे, जबकि योगी आदित्यनाथ को अभी बाक़ी जगह के साथ-साथ अपने विधानसभा क्षेत्र गोरखपुर पर भी नज़र रखनी है. एक बात पर राजनीतिक प्रेक्षक सहमत हैं कि इस बार चुनाव सीधे-सीधे योगी बनाम अखिलेश है. बसपा और कांग्रेस सरकार बनाने के खेल में शामिल नहीं हैं. दूसरे भाजपा की गाड़ी ढलान पर है और अखिलेश की गाड़ी ऊपर चढ़ रही है. मगर ढलान वाली गाड़ी कहाँ रुकेगी, यह कहना अभी जल्दीबाज़ी होगी. तीन चरणों की 172 सीटों पर जहॉं अब तक मतदान हो चुका है, पिछली बार भाजपा को 140 सीटें मिली थीं. केवल 32 सीटें विपक्ष को मिली थीं.

राजनीतिक विश्लेषक अभय कुमार दुबे का कहना है कि, “अब तक तीनों फ़ेज़ के मतदान में कुल मिलाकर भाजपा को पचास फ़ीसदी का नुक़सान हो चुका है. आगे अवध में भाजपा की बढ़त हो सकती है, लेकिन पूरब में फिर भाजपा को नुक़सान होगा.”

अभय कुमार दुबे का मानना है कि ”इस बार डबल इंजन की सरकार में भाजपा को डबल ऐंटी इंकम्बेंसी का सामना करना पड़ रहा है. इसमें दो राय नहीं कि प्रधानमंत्री मोदी की छवि धीरे-धीरे चंद अडानी-अंबानी जैसे पूँजीपतियों के समर्थकों की हो गई है. अब वह ग़रीबों-पिछड़ों के मसीहा नहीं रहे और न ही गुजरात मॉडल में आकर्षण बचा है.”

”मोदी समर्थक सिर्फ़ इस बात से संतोष कर रहे हैं कि उन्होंने और योगी ने मुसलमानों को सत्ता से दूर और दबाकर रखा है, भले महंगाई बढ़ी या विकास नहीं हुआ पर वह भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने को प्रयत्नशील हैं.”

वरिष्ठ पत्रकार सीमा चिश्ती ने मतदाताओं की नब्ज़ टटोलने के लिए कई ज़िलों का दौरा किया. उनका कहना है , “तीन बातें साफ़ हैं एक तो यह कि अगर कोई शिविर सिमटा है तो वो भाजपा का है. उसमें बढ़त नहीं दिखी. फिर, दो तरफ़ा चुनाव है सीधे-सीधे. यह बसपा और कांग्रेस का वोटर भी समझ रहा है. तीसरा यह कि कैंडिडेट की बात हो रही है और आर्थिक मुद्दों से जनता परेशान है. ये मुद्दे हैं- महंगाई और बेरोज़गारी. भाजपा, जिसके पास 2017 में कहने को बहुत था, प्रभावी कैंपेन था, इस समय कहानी की तलाश में दिख रही है, अगर मुस्लिम विरोधी बयानों को एक तरफ़ रखा जाए.” नोटबंदी और लॉकडाउन से असंगठित क्षेत्र का चौपट होने से सरकारी भर्तियाँ रोज़गार का सहारा हैं, लेकिन भाजपा सरकार में लाखों पद ख़ाली होना बड़ा मुद्दा रहा है, यद्यपि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का दावा रहा है कि उन्होंने साढ़े चार लाख लोगों को नौकरियाँ दीं. courtsy: BBC HINDI

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संपादक - कस्तूरी न्यूज़

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