Connect with us

उत्तराखण्ड

खाली होते गांव और बंजर खेतों की व्यथा, सरकारों की ओर आशा भरी नजर से टकटकी लगाए बैठी पहाड़ की जनता

खबर शेयर करें -

उत्तरकाशी : पहाड़ों में खाली होते गांव और बंजर होते खेत ग्रामीण परिवेश की सबसे बड़ी समस्या है। पहाड़ों के इन गांवों में किसान खेत खलियान से विरक्त भी हो रहे हैं। इनके सामने सबसे बड़ी चुनौती जंगली जानवरों से फसल सुरक्षा को लेकर है। अभी तक सरकारी सिस्टम की ओर से प्रभावी रूप से फसल सुरक्षा के इंतजाम नहीं किए गए हैं। सरकारी स्तर पर खाली होते गांवों के कारणों की पड़ताल भी ईमानदारी से नहीं हुई है।

बस पहाड़ की जनता हर पांच साल में सरकारों की ओर आशा भरी नजर से टकटकी लगाए बैठी है। लेकिन, सत्ता में आने और जाने वाले सियासी क्षत्रपों और सरकारी मुलाजिमों को पहाड़ के इन ज्वलंत मुद्दों के समाधान की कहां फिक्र है। पहाड़ी जनपदों में खेती से किसान बड़ी संख्या में विमुख हो रहे हैं। टिहरी, पौड़ी जनपद में खाली होते गांव और बंजर खेत इसकी तस्दीक करा रहे हैं। खेती से विमुख होने का सबसे बड़ा कारण जंगली जानवरों के द्वारा फसलों को पहुंचा जा नुकसान है। जंगली सूअर, बंदर, सेही, लंगूर और भालू पहाड़ की छोटे किसानों की मेहनत पर पानी फेर रहे हैं। जिसके कारण बीते वर्षों में आर्थिक रूप से सक्षम सैकड़ों परिवार पहाड़ के गांव छोड़कर शहरों की ओर बढ़े है। गांव में इस पलायन से बंजर हुए खेत और खंडहर हुए घर जंगली जानवरों का डेरा बन रहे हैं। जो गांव में निवासरत आर्थिक रूप से अक्षम ग्रामीणों के लिए संकट बन चुके हैं।

इसके अलावा पहाड़ों के गांवों में अच्छी शिक्षा, अच्छी स्वास्थ्य व्यवस्थाओं को घोर कमी है। संचार की बदहाल सेवा, सरकारी तंत्र की बाबू व्यवस्था से भी ग्रामीण परेशान हैं। गांव में विधवा और बुजुर्गों को समय पर पेंशन नहीं मिल पाती है। जबकि उनका गुजारा पेंशन पर ही निर्भर है। गांव के स्कूलों में 50 किलोमीटर से अधिक दूरी से सफर कर पढ़ाने को आने वाले शिक्षकों के रवैये से भी ग्रामीण परेशान हैं। लंबा सफर करने के बाद स्कूलों में ऐसे शिक्षक पूरी क्षमता के साथ नहीं पढ़ा पाते हैं। गांव बचाओ आंदोलन के सदस्य द्वारिका प्रसाद सेमवाल कहते हैं कि वर्तमान में गांवों निवास करने वालों में महिलाएं, बच्चे और बुजुर्गों की संख्या सबसे अधिक है। अधिकांश पुरुष वर्ग रोजगार के लिए शहरी क्षेत्रों में हैं।

इसलिए सरकार को महिलाओं, बुजुर्गों और बच्चों के सोचने की जरूरत है। बच्चों के लिए अच्छी शिक्षा के लिए स्कूल, गांव में महिलाओं के अच्छी स्वास्थ्य व्यवस्थाएं हों। राशन समय पर मिले, पेंशन समय पर मिल जाए। विद्युत आपूर्ति सुचारू रहे ग्रामीणों की इतनी ही अपेक्षाएं हैं।उत्तरकाशी सिरौर गांव की महिला कार्यकत्र्ता मंजू रावत कहती है कि सरकारी कार्यालयों में जब गांव के ग्रामीण किसी तरह पहुंचते हैं तो बाबू कई चक्कर कटवाते हैं।

जिस काम ने एक दिन में होना है, उसे होने में कई दिन लग जाते हैं। ये हाल समाज कल्याण, कृषि, उद्यान, खाद्यपूर्ति, वन विभाग सहित सभी विभागों का है। इसके अलावा ग्रामीण क्षेत्रों में खेती को नुकसान पहुंचा रहे जंगली जानवर बड़ी समस्या बन गए हैं। लेकिन वन विभाग की ओर से कोई सुरक्षा इंतजाम नहीं किए गए हैं।

Continue Reading

संपादक - कस्तूरी न्यूज़

More in उत्तराखण्ड

Recent Posts

Facebook

Advertisement

Trending Posts

You cannot copy content of this page