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उत्तराखण्ड

मुख्यमंत्री धामी व कांग्रेस के हरीश रावत के हारने के कारण भले अलग रहे हों, लेकिन निहितार्थ एक ही है

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देहरादून। प्रदेश में भाजपा सरकार बनाने के लिए चुनाव लड़ी व सफल रही। जीत में सबसे निर्णायक भूमिका प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नाम व काम ने निभाई। मतदाताओं का वोट नरेन्द्र मोदी के विश्वसनीय नेतृत्व और प्रदेश में गतिमान केंद्र सहायतित एक लाख करोड़ की परियोजनाओं के पक्ष में गया। जनता ने डबल इंजन की आवश्यकता को समझा व प्रदेश में भाजपा पर भरोसा जताया। 2017 के चुनाव में जो कांग्रेस केवल 11 विधायकों तक सीमित हो गई थी, इस बार उसे आठ सीटें ज्यादा मिलीं।

पिछले चुनाव से 10 सीटें कम देकर भाजपा व सरकार को जनता ने चेताया भी है। बड़े अनुकूल माहौल व भरपूर संसाधनों के साथ चुनाव लड़ने के बावजूद कांग्रेस सत्ता से चूक गई। स्पष्ट है कि राष्ट्रीय धारा में रहने वाले उत्तराखंड जैसे प्रदेश का मतदाता अगर विधानसभा के लिए भी वोट डालता है तो पार्टिंयों के नेतृत्व को राष्ट्रीय मुद्दों की कसौटी पर ही कसता है। मतदाताओं ने लोकलुभावन घोषणा करने वालों को हतोत्साहित किया है।

मुख्यमंत्री धामी व कांग्रेस के इसी पद के दावेदार चेहरे हरीश रावत के हारने के कारण भले अलग-अलग रहे हों, लेकिन निहितार्थ एक ही हैं। बड़े पद और कद के बावजूद आपको अपने चुनाव क्षेत्र में जनता के प्रतिनिधि वाली सक्रियता व भाव दिखाना होता है। बनारस में उनका आचार, विचार और व्यवहार लोकसभा सदस्य का ही रहता है। इस चुनाव में कांग्रेस के विधायकों की संख्या और मत प्रतिशत दोनों बढ़ा। भाजपा को सत्ता मिली और उत्तराखंड को विकास का पक्का भरोसा। ऐसा कम ही होता है कि किसी महासमर का परिणाम उसके सभी खिलाड़ियों को लाभान्वित कर जाए।

कांग्रेस की छवि ही उस पर भारी: उत्तराखंड में प्रबंधन के स्तर पर देखें तो कांग्रेस ने कोई बड़ी गलती नहीं की थी। पार्टी ने टिकट से लेकर अन्य मोर्चे पर भी सजगता बरती, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी की कमजोर छवि ने राज्य में उसे नुकसान पहुंचाया।साभार न्यू मीडिया

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संपादक - कस्तूरी न्यूज़

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