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2022 का जनादेश, 2024 के लिए संदेश, प्रचंड जीत के बावजूद भाजपा के लिए सजगता का अलार्म बजा रही हैं हाथ से फिसलीं 57 विस सीटें

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जो जीता, वह सिकंदर है, लेकिन जीत की उमंग में उड़ते गुलाल के बीच से भाजपा को उस बाजीगर पर नजरें जमाए रखनी होंगी, जिसने चुनावी बाजी हारकर भी अपना दमखम बढ़ाया है। निस्संदेह भगवा खेमे ने तमाम चुनौतियों के पहाड़ पर चढ़कर विजय पताका फहराई है लेकिन 57 विधानसभा सीटों की फिसलन आगाह तो करती ही है। भाजपाई रणनीतिकारों के लिए समीक्षा का विषय है कि आखिर क्या वजह रही कि केंद्र और प्रदेश की डबल इंजन सरकार की ताकत के बावजूद 2017 के मुकाबले उनका वोट प्रतिशत इन पांच वर्षों में मात्र 1.63 बढ़ा।

लोकसभा चुनाव में दिखेगा प्रभाव 

वहीं, अकेले अखिलेश यादव ने सपा के वोट बैंक में 10.23 प्रतिशत की बढ़ोतरी कर ली। कुल मिलाकर 2022 का जनादेश 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए स्पष्ट संदेश है कि भगवा और लाल-हरे के बीच सत्ता संघर्ष में ‘ग्रीन कारिडोर’ तो किसी के लिए नहीं है। सर्वाधिक आबादी और सबसे अधिक 80 लोकसभा सीटों की हिस्सेदारी रखने वाले उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव परिणाम को सीधे तौर पर आगामी लोकसभा चुनाव पर असरकारी माना जा रहा है। भाजपा ने प्रदेश में राजनीति के पुराने तौर-तरीकों को खंडित कर विकास के एजेंडे पर बड़ा जनसमर्थन जुटाकर सत्ता में वापसी का कारनामा किया है।

सत्ता विरोधी लहर रही बेअसर

निश्चित ही यह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का करिश्माई चेहरा और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के प्रति मजबूत हुआ जनविश्वास ही था कि न तो कोरोना की जानलेवा लहरों का कोई असर दिखा और न ही सत्ता विरोधी लहर उस तरह महसूस हुई। मगर, इस जीत के झरोखे से लोकसभा चुनाव की संभावनाओं को देखने के साथ एक नजर 2017 के चुनाव परिणाम पर भी डालनी होगी।

मजबूत कानून व्यवस्था ने खींचा ध्‍यान

2017 के विधानसभा चुनाव में प्रचंड मोदी लहर पर सवार भाजपा ने प्रदेश की 403 में से अकेले ही 312 पर जीत दर्ज की, जबकि सहयोगी दलों के साथ यह आंकड़ा 325 पर पहुंचा। तब भाजपा को 39.67 प्रतिशत वोट मिला था। इसके बाद भाजपा ने पांच वर्ष ऐसा शासन किया, जिस पर भ्रष्टाचार का कोई दाग नहीं लगा। मजबूत कानून व्यवस्था का संदेश जनता तक गया।

57 सीटों पर सीधा नुकसान

अयोध्या, काशी, मथुरा-वृंदावन के सहारे दो हाथों से धर्म ध्वजा निसंकोच फहराई तो एक्सप्रेसवे और मेट्रो का जाल बिछाना शुरू किया। इसके अलावा स्वास्थ्य सुविधाएं बढ़ी, मुफ्त राशन, रसोई गैस, गरीबों को आवास भी बांटे। इसके बावजूद सरकार ने सत्ता में वापसी तो की, लेकिन वोट प्रतिशत में मात्र 1.63 प्रतिशत का इजाफा हुआ। इस चुनाव में भाजपा को 41.30 प्रतिशत वोट मिला है, लेकिन सीटें 255 मिलीं। मतलब 57 सीटों पर सीधा-सीधा नुकसान हुआ है।

सपा को कम आंकना होगी भूल

सपा ने चुनाव हारकर भी कदम आगे बढ़ाए हैं। 2017 में सपा को मात्र 47 सीटें मिली थीं। वह भाजपा से 265 सीटों के फासले पर थी, जबकि इस बार अपने खाते में 64 सीटों का इजाफा करते हुए वह 111 पर पहुंच गई। भाजपा से वह सिर्फ 144 सीटें पीछे रही। सपा के वोट प्रतिशत में भी बढि़या उछाल आया। 2017 में 21.82 प्रतिशत वोट मिला था, जो 10.23 प्रतिशत की बढ़त के साथ 32.05 प्रतिशत तक पहुंच गया। ऐसे में सपा को कम आंकना बड़ी गलती होगी। बता दें कि सपा ने 347 उम्मीदवार खड़े किए थे। इनमें से 111 सीटों पर सफलता मिली है। जबकि 231 सीटों पर पार्टी दूसरे स्थान पर रही सपा। वहीं, कई सीटें ऐसी भी हैं जहां जीत का अंतर कुछ हजार वोटों का ही रहा है।

भाजपा को सहेजे रखना होगा बसपा से आयातित वोट

सपा और बसपा भले ही राष्ट्रीय पार्टी हों, लेकिन उनका प्रभाव क्षेत्रीय यानी सिर्फ यूपी तक ही है। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का वोट 3.39 घटकर मात्र 2.35 रह गया है और सीटें सात से घटकर मात्र दो रह गई। वहीं, बसपा के वोट बैंक में 9.35 प्रतिशत की कमी आई है। 2017 में 19 सीटें जीतने वाली बसपा इस बार सिर्फ एक सीट जीत पाई है। ऐसे में सपा-बसपा को वोट करता रहा मुस्लिम लोकसभा चुनाव में भले ही कांग्रेस को खड़ा करने में ताकत लगाए, लेकिन बसपा से हताश दलित मतदाता के लिए इस बार की तरह भाजपा फिर बेहतर विकल्प हो सकती है। भाजपा को इसे सहेज कर रखना होगा।

मुद्दों के संकट से जूझेगा विपक्ष

भाजपा के सामने लोकसभा चुनाव में विपक्ष इसलिए भी कमजोर नजर आ सकता है, क्योंकि विधानसभा चुनाव में भाजपा को हराने के लिए वैश्विक महामारी कोरोना को मुद्दा बनाया गया। महंगाई के केंद्रीय मुद्दे को विपक्ष ने यहां सुलगाना चाहा। केंद्र सरकार द्वारा लाए गए कृषि कानून विरोधी आंदोलन से भी घेरने का प्रयास हुआ। सभी मुद्दे जनता ने सिरे से खारिज कर दिए। ऐसे में अब लोकसभा चुनाव से पहले विपक्ष को नए मुद्दे तलाशने और तराशकर जनता तक पहुंचाने के लिए जूझना होगा।

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संपादक - कस्तूरी न्यूज़

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