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धर्म-संस्कृति

Mahashivratri 2022: हर मनोकामना जहां होती है पूर्ण, जानिए बागपत के पुरा महादेव और मेरठ के औघड़नाथ मंदिर का महत्‍व

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Mahashivratri 2022 बागपत का श्री परशुरामेश्वर महादेव मंदिर और मेरठ का बाबा औघड़नाथ का मंदिर पश्‍चिमी यूपी में आस्‍था के बड़े केंद्र हैं। सावन मास की शिवरात्रि और महाशिवरात्रि पर यहां पर हजारों की संख्‍या में शिव भक्‍त और कांवड़िए जलाभिषेक करते हैं। आइए पहले जानते हैं परशुरामेश्वर महादेव मंदिर के बारे में। बागपत के पुरा गांव के श्री परशुरामेश्वर महादेव मंदिर पर फाल्गुनी व श्रावणी शिवरात्रि पर कईं राज्यों के श्रद्धालु भगवान आशुतोष का जलाभिषेक करने के लिए पहुंचते हैं। प्रत्येक सोमवार को श्रद्धालुओं का आना जाना लगा रहता है। कोरोना काल में मंदिर के कपाट बंद रहे थे। पिछले दो साल में श्रावण व फाल्गुन मास में लगने वाले मेले नहीं लगे। कोरोना का प्रभाव कम होने पर अब फाल्गुनी मास में महाशिवरात्रि पर मेला नहीं लगेगा, लेकिन श्रद्धालु जलाभिषेक कर सकेंगे।

महाशिवरात्रि को लेकर तैयारियां

एक मार्च को जलाभिषेक करने की सभी तैयारी पूरी कर ली गई है। मंदिर के मुख्य पुजारी जयभगवान शर्मा ने मंदिर से जुड़े इतिहास के बारे में बताया कि हिंडन नदी के किनारे कजरी वन में ऋषि जमदग्नि अपनी पत्नी रेणुका के साथ रहते थे। एक दिन हस्तिनापुर के राजा सहस्रबाहु शिकार खेलते हुए कजरी वन पहुंचे। राजा कुटिया पर रेणुका के रूप को देखकर मोहित होकर उसे जबरन अपने साथ हस्तिनापुर ले गए। एक दिन बाद रेणुका बंधनमुक्त होकर दोबारा कजरी वन पहुंची तो ऋषि ने यह कहते हुए रखने से इंकार कर दिया कि वह परपुरुष के साथ रहकर आई है। रेणुका नहीं मानी। ऋषि ने अपने चारों बेटों को बुलाया और अपनी मां का सिर धड़ से अलग करने का आदेश सुना दिया।

परशुराम को फरसा दिया था

तीन बेटे पीछे हट गए, लेकिन चौथे बेटे परशुराम ने मां का सिर धड़ से अलग कर दिया। जमीन पर पड़े मां के सिर को देख परशुराम विचलित हो गया। वहीं पर बैठकर शिव की तपस्या शुरू कर दी। शिव प्रसन्न होकर प्रकट हुए। परशुराम ने अपनी मां को दोबारा जिंदा कराने का वचन मांगा। बताते हैं कि भगवान शिव ने परशुराम को फरसा दिया। इसी फरसे से परशुराम ने राजा सहस्रबाहु का वध किया। बाद में लंढौरा की राजकुमारी वन में घूमने आई। हाथी जंगल में आकर रुक गया, सेना ने आगे बढ़ाने का प्रयास भी किया, लेकिन हाथी आगे नहीं बढ़ा। राजकुमारी ने जगह की खुदाई के आदेश दिए। कथा है कि यहां पर खुदाई से शिवलिंग निकला। यह वही शिवलिंग है जो मंदिर में वर्तमान में विराजमान है। यहीं पर जगद्गुरु शंकराचार्य ने भी कभी तपस्या की थी।

जानिए मेरठ के औघड़नाथ मंदिर के बारे में

मेरठ छावनी में बना बाबा औघड़नाथ का मंदिर वेस्‍ट यूपी के लिए आस्‍था का बड़ा केंद्र है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। ब्रिटिश आर्मी में भारतीय सैनिकों को काली पल्टन कहा जाता था। इसी मंदिर के आसपास भारतीय सैनिक रहते थे। इसके चलते इस मंदिर को काली पल्टन मंदिर के नाम से पुकारा जाने लगा। कहा जाता है कि सन 1857 के दौर में काली पल्टन के सैनिक औघड़नाथ मंदिर परिसर के कुएं का पानी पीने आते थे। मंदिर के मुख्य पंडित ने प्रतिबंधित कारतूस (जिसमें गोवंश की चर्बी होने का आरोप था) के इस्तेमाल का विरोध किया था। इसके बाद भारतीय सैनिकों ने इन कारतूसों का प्रयोग करने से इन्कार कर दिया था। यहीं से प्रथम स्‍वतंत्रता संग्राम की नींव पड़ी थी।

हर मनोकामना पूर्ण

ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर में मांगी गई हर मनोकामना पूर्ण होती है। सोमवार को इस मंदिर में भक्‍तों का तांता लगा रहता है। इस मंदिर के मुख्य पुजारी श्रीधर त्रिपाठी ने बताया कि महाशिवरात्रि में रात्रि में भजन कीर्तन और जागरण करना चाहिए। इसलिए मंदिर में रात्रि में चार प्रहर की आरती होगी और रातभर मंदिर के कपाट खुले रहेंगे। महामंत्री सतीश सिंघल ने बताया कि भोले की झांकी और भजनों का कार्यक्रम करने की योजना बनाई जा रही है, यह मंगलवार को शाम होगा। भक्तों की संख्या को देखते हुए सुरक्षा व्यवस्था के लिए प्रशासन को पत्र लिख दिया गया है, पर फोर्स चुनाव ड्यूटी में गई हुई है। प्रशासन से वार्ता करने के बाद ही कार्यक्रम करने का निर्णय लिया जाएगा। इसके अलावा मंदिर में लाइटों की सजावट का कार्य आरंभ हो गया है। फूल बंगला सजाया जाएगा।

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संपादक - कस्तूरी न्यूज़

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