उत्तराखण्ड
कैबिनेट मंत्री रहे यशपाल ने किसी तरह बचाई अपनी सीट, बेटे को मिली करारी हार
पांचवें विधानसभा के मजबूत पंच ने कांग्रेसी कद्दावर नेताओं के पसीने छुड़ा दिए। कुछ हारते-हारते बचे तो कुछ ने किसी तरह लाज बचाई। इनमें सबसे चर्चित यशपाल आर्य और उनके पुत्र संजीव आर्य की मजबूत जोड़ी रही।
चुनाव से ठीक पहले दोनों पाला बदलकर कांग्रेस में शामिल हुए। इनमें बाजपुर से यशपाल कई चरणों में हार के करीब पहुंच अंतिम समय में किसी तरह से 1611 मतों से लाज बचाने में सफल रहे। लेकिन नैनीताल विधानसभा से उनके बेटे भाजपा की सरिता आर्य से अपनी सीट नहीं बचा सके। उन्हें 7881 मतों से करारी हार का सामना करना पड़ा।
यशपाल आर्य का राजनीतिक कद कुमाऊं के साथ ही पूरे प्रदेश में एक विशेष तबके को प्रभावित करता है। यही कारण रहा कि राज्य गठन के बाद से कांग्रेस में उनकी स्थिति लगातार मजबूत होती गई। लेकिन 2017 के चुनाव से ठीक पहले उन्होंने कांग्रेस को अलविदा कहते हुए भाजपा का दामन थाम लिया।
खुद बाजपुर से तो पुत्र संजीव को नैनीताल से टिकट दिलाया और रिकार्ड जीत भी हासिल की। कैबिनेट मंत्री भी बने। बारी 2022 की आई तो आर्य ने फिर 2017 की कहानी दोहरा दी।
भाजपा को छोड़ पिता-पुत्र ने कांग्रेस में घर वापसी कर ली। हालांकि इसका स्थानीय स्तर पर विरोध भी हुआ। बाजपुर व नैनीताल के कांग्रेसियों ने दोनों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। लेकिन पार्टी ने सभी को दरकिनार कर पिता-पुत्र को टिकट दिया।
एक मौका ऐसा भी आया जब हरीश रावत ने दलित मुख्यमंत्री की चर्चा छेड़ यशपाल को इस दौड़ में आगे कर दिया। मतदान के बाद पिता-पुत्र जीत के प्रति आश्वस्त थे। लेकिन मतगणना में दोनों की स्थिति दयनीय बनी रही। यशपाल आर्य ने तो किसी तरह अपनी सीट बचा ली। लेकिन संजीव अपनी पुरानी प्रतिद्वंद्वी सरिता आर्य से बुरी तरह हार गए।