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उत्तराखण्ड

तीन महीने के अंदर फतेहपुर रेंज में बाघ और तेंदुए ने छह लोगों को मार डाला

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 हल्द्वानी : कुमाऊं कालोनी निवासी इंद्रा देवी जिस जंगल में गई थी, वहां शुरुआत में सूखा पड़ा है। कंट्रोल फायर बर्निंग व आग के कारण ऐसी स्थिति बनी है। इसलिए साथी महिलाओं संग वह हरियाली वाले इलाके में पहुंची थी, ताकि चारा ला सके। घास और सूखी लकडिय़ों की तलाश में जंगल जाना आदत में शुमार था। इसलिए किसी को हमले का भान तक नहीं था।

आदमखोर बनने की स्थिति में पहुंचे वन्यजीव अक्सर आबादी क्षेत्र में आकर शिकार तलाशते हैं। लेकिन फतेहपुर रेंज के हमलावर बाघ और गुलदार को जंगल क्षेत्र में ही आसान टारगेट मिल जा रहा है। यही वजह है कि वन विभाग भी घने जंगल में इन्हें तलाश नहीं पा रहा। पनियाली निवासी जानकी देवी की मौत के बाद महकमे ने कार्बेट से हथिनी भी मंगवाई, ताकि चिकित्सक इन पर बैठकर हमलावर को टैंकुलाइज कर सके।

रेस्क्यू अभियान में शामिल टीम को सुराग तो मिले, मगर हमलावर बाघ अब तक सामने नजर नहीं आ सका। वहीं, विभागीय सूत्रों की माने तो हमलावर वन्यजीवों में दो अलग-अलग बाघ की भूमिका सामने आई है, जबकि सबसे पहली घटना के पीछे गुलदार को वजह बताया गया था। अब चुनौती यह है कि घने जंगल में तीन अलग-अलग हमलवारों को कैसे तलाश जाए।

पिछले साल 29 दिसंबर से शुरू हुआ हमला

फतेहपुर रेंज के जंगल की सीमा रानीबाग तक पहुंचती है। पिछले साल 29 दिसंबर से यहां इंसानी मौतों का सिलसिला शुरू हुआ था, जो अब भी जारी है। तेजी से बढ़ रही घटनाएं बताती हैं कि यह जंगल अब मौत का जंगल बन चुका है। सूत्रों की माने तो जान लेने वालों में दो बाघ और एक गुलदार शामिल है। आबादी से 2-4 किमी के अंदर यह घटनाएं हुई है।

इन मौतों का जिम्मेदार कौन?

  • 29 दिसंबर को दमुवाढूंगा निवासी युवक मुकेश की जान गई।
  • 13 जनवरी को ब्यूराखाम टंगर निवासी नंदी सनवाल को मारा।
  • 17 जनवरी को बजूनिया हल्दू निवासी नत्थूलाल की जान गई।
  • 21 फरवरी को पनियाली निवासी महिला जानकी देवी को मारा।
  • 29 मार्च को भद्यूनी निवासी बुजुर्ग धनुलि देवी की जान गई।
  • 31 मार्च को कुमाऊं कालोनी निवासी इंद्रा देवी को मारा डाला।

ज्ञापन देकर थक गए लोग

फतेहपुर रेंज से सटे आबादी क्षेत्र में वन्यजीवों का आतंक शुरू से रहा है। पहले हाथी आबादी क्षेत्र में आकर फसल का नुकसान करते थे। अब जंगल में घास की तलाश में जा रहे लोगों की जान जा रही है। लंबे समय से इस रेंज से सटे ग्रामीण वन विभाग के अफसरों से मांग कर रहे हैं कि सोलर फेंङ्क्षसग या अन्य कोई सुरक्षा उपाय किए जाए। लोग ज्ञापन दे-देकर थक गए, मगर अफसरों पर कोई असर नहीं पड़ा।

बढ़ते पारे से भी व्यवहार में बदलाव

तापमान में बढ़ोतरी की वजह से जंगल में नमी खत्म होती जा रही है। गिरते-झड़ते पत्तों की वजह से शुरुआती जंगल में छांव का निशान भी नहीं है। गर्मियों में जल स्त्रोत भी सूखते हैं। ऐसे में वन्यजीवों के लिए भी संकट की स्थिति बन जाती है। मौसम का बदलाव उनके व्यवहार को भी बदलता है। यानी थोड़ा ज्यादा आक्रामक हो रहे हैं।

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संपादक - कस्तूरी न्यूज़

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