राजनीति
जानिए पंजाब में कैसे कांग्रेस पर भारी पड़ा केजरीवाल का ‘पावर प्ले’
पंजाब में हमेशा देश की सबसे महंगी बिजली दी जाती रही है और दोषपूर्ण बिजली खरीद समझौते एक मुख्य मुद्दा रहे हैं. ऐसे हालात में सत्ता संभालने के एक माह बाद वादे को पूरा करना भगवंत मान सरकार की बड़ी उपलब्धि माना जा रहा है. पंजाब में पूर्व कांग्रेस सरकार अपने पांच साल के कार्यकाल में वादों को पूरा नहीं कर पाई जिसके चलते उसे लोगों ने सत्ता से बाहर का रास्ता दिखा दिया. दूसरा दिल्ली के सीएम और आप के कनवीनर अरविंद केजरीवाल का बिजली पर खेला गया “पावर प्ले” कांग्रेस सरकार पर भारी पड़ गया, हालांकि चन्नी सरकार ने अंतिम दिनों में इसे संभालने की कोशिश भी की थी.
बीते साल लिख दी पावर प्ले की पटकथा
पावर प्ले की यह पटकथा केजरीवाल ने पिछले साल 29 जून को लिख दी थी, जब उन्होंने पंजाब में 73.80 लाख बिजली उपभोक्ताओं से वादा किया था कि अगर उनकी पार्टी सत्ता में आती है, तो उन्हें दिल्ली की तरह योजना के तहत 300 यूनिट मुफ्त बिजली मुहैया कराएगी. तत्कालीन मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह उस समय पंजाब कांग्रेस में कठिन समय का सामना कर रहे थे, सस्ती बिजली प्रदान करने में उनकी विफलता और पीपीए को समाप्त करने के कारणों से भी उनकी कुर्सी छिन गई थी.
कैप्टन अमरिंदर ने मुफ्त बिजली देने से किया था इनकार
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक कांग्रेस आलाकमान ने मई 2021 में मल्लिकार्जुन खड़गे के नेतृत्व वाले पैनल का गठन किया था. 27 जून को पैनल ने अमरिंदर को 18 सूत्री एजेंडा सौंपा, जिसमें से एक में 300 यूनिट मुफ्त बिजली देने का प्रस्ताव था. हालांकि अमरिंदर की सरकार ने आलाकमान से कहा कि यह संभव नहीं है.सितंबर 2021 में अमरिंदर के निष्कासन के बाद, जब चरणजीत सिंह चन्नी ने उनके उत्तराधिकारी के रूप में पदभार संभाला, तो उन्होंने सात किलोवाट तक के भार वाले उपभोक्ताओं के लिए पहली 300 इकाइयों के लिए टैरिफ में 3 रुपये की कटौती की.
क्या थी चन्नी सरकार में बिजली व्यवस्था
सभी घरेलू उपभोक्ताओं से पहले से 100 यूनिट बिजली 1.19 रुपये प्रति यूनिट की दर से वसूल की जा रही है, पहले यह दर 4.19 रुपये थी. उसके बाद 100 से 300 यूनिट के बीच खपत 7 रुपए प्रति यूनिट के बजाय 4 रुपए बिल किया गया. 300 से अधिक इकाइयों के लिए शुल्क 5.76 रुपये प्रति यूनिट था, जबकि पहले की दर 8.76 रुपये थी. चन्नी के मुताबिक उच्च बिजली बिल वहन करने वालों को छोड़कर इससे 69 लाख उपभोक्ताओं को फायदा हुआ.
बिजली की दरें पुराना राजनीतिक मुद्दा
हालांकि, राज्य में बिजली की दरें कोई नया राजनीतिक मुद्दा नहीं है. यह देखते हुए कि यह एक वोट-पकड़ने वाला हो सकता है, पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने 1997-2002 के अपने कार्यकाल के दौरान मुफ्त कृषि बिजली दी थी. तब विशेषज्ञों ने इसका उपहास राजकोष को खाली करने का तरीका बताया था. जब अमरिंदर ने 2002 में मुख्यमंत्री के रूप में पदभार संभाला, तो उन्होंने आंशिक रूप से सब्सिडी को समाप्त कर दिया था, जिससे कहानी फिर अमरिंदर के खिलाफ हो गई थी.
कैप्टन ने पीपीएम समझौतों पर भी खड़े कर दिए थे हाथ
बाद में विपक्षी कांग्रेस ने उच्च बिजली की कीमतों के लिए निजी ताप संयंत्रों के साथ पीपीए को दोषी ठहराया. कांग्रेस का आरोप था कि पीपीए को निजी कंपनियों का पक्ष में हस्ताक्षर किया गया था. सरकार को उन्हें ऑफ-पीक दिनों में भी जीविका शुल्क का भुगतान करना पड़ता था, जब वह उनसे बिजली नहीं खरीदती थी. चुनाव से पहले अमरिंदर ने वादा किया था कि वह पीपीए को खत्म कर देंगे लेकिन बाद में कहा कि वे कानूनी रूप से इतने मजबूत दस्तावेज हैं कि कोई भी सरकार उन्हें छू नहीं सकती. आप सरकार के सामने अब न केवल 6,000 करोड़ रुपये के मुफ्त बिजली बिल को पूरा करने की चुनौती है, बल्कि पीपीए पर भी फैसला लेने की चुनौती है.