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भारत और अमेरिका के राष्ट्रपति में कौन है ज्यादा ताकतवर? यहां जानिए सब कुछ
भारत में राष्ट्रपति चुनाव होने हैं। इसको लेकर देश के प्रमुख राजनीतिक दलों के बीच गहमागहमी शुरू हो चुकी है। देश के सबसे बड़े राजनीतिक दल और केंद्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी और विपक्षी दलों के बीच अपने-अपने प्रत्याशियों को राष्ट्रपति बनाने की होड़ है। ऐसे में यह सवाल उठता है कि भारतीय संविधान और लोकतांत्रिक व्यवस्था में राष्ट्रपति का पद इतना अहम क्यों है? आम आदमी के मन में एक और भी सवाल उठ रहा है कि क्या भारतीय राष्ट्रपति की शक्तियां अमेरिकी राष्ट्रपति की तरह हैं? क्या वह व्यवस्था में अमेरिकी राष्ट्रपति की तरह प्रभावशाली है? आइए जानते हैं कि दोनों देशों के राष्ट्रपति के अधिकारों में क्या समानता और असमानता है।
राष्ट्रपति संवैधानिक प्रमुख होने के साथ ही कार्यकारी प्रमुख
अमेरिका तथा भारत दोनों ही देशों के संविधान अलग-अलग हैं और उनमें अपने-अपने राष्ट्रपतियों के लिए अधिकारों तथा कर्त्तव्यों की अलग-अलग व्याख्या है। अमेरिका के संविधान के अनुसार वहां का राष्ट्रपति संवैधानिक प्रमुख होने के साथ ही कार्यकारी प्रमुख भी होता है, जबकि भारतीय संविधान के अनुसार हमारे राष्ट्रपति संवैधानिक प्रमुख तो हैं किन्तु समस्त कार्यकारी शक्तियां संसद के हाथ में हैं और संसद में सदन का नेता होने के कारण प्रधानमंत्री के हाथों में कार्यकारी शक्तियां होती हैं। भारत को दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने का गौरव प्राप्त है तो अमेरिका विश्व का सबसे पुराना लोकतंत्र है। करीब 200 वर्ष पहले सन 1804 में यहां चुनाव की शुरुआत हुई। पहले उपराष्ट्रपति का चुनाव भी इलेक्टोरल कालेज ही करता था, लेकिन तब अलग-अलग मत नहीं डाले जाते थे। उस समय जिसे सबसे ज्यादा वोट मिलते थे, वह राष्ट्रपति बनता था और दूसरे नंबर पर रहने वाला व्यक्ति उपराष्ट्रपति निर्वाचित होता था। यहां हर चार साल में चुनाव होते हैं।
भारत के राष्ट्रपति का चुनाव
1- भारत में राष्ट्रपति चुनाव का तरीका अनूठा है। भारत के राष्ट्रपति का चुनाव एक इलेक्टोरल कालेज करता है, लेकिन इसके सदस्यों का प्रतिनिधित्व अनुपातिक होता है। उनका सिंगल वोट ट्रांसफर होता है, लेकिन उनकी दूसरी पसंद की भी गिनती होती हे। यहां वोटों के गणित को समझने के लिए कुछ बाते जानना आवश्यक है। राष्ट्रपति का चुनाव निर्वाचक मंडल यानी इलेक्टोरल कालेज करता है। अर्थात जनता अपने राष्ट्रपति का चुनाव सीधे नहीं करती, बल्कि उसके वाटों से चुने गए प्रतिनिधि करते हैं। इसे अप्रत्यक्ष निर्वाचन कहते हैं। राष्ट्रपति यहां सर्वोच्च संवैधानिक पद है। संवैधानिक प्रक्रिया के अंतर्गत हर पांच वर्ष में राष्ट्रपति का चुनाव किया जाता है।
2- दुनिया के सबसे ताकतवर देश अमेरिका में राष्ट्रपति पद के लिए होने वाले चुनाव की प्रक्रिया भारत के मुकाबले काफी पेचीदा और लंबी होती है। अमेरिकी संविधान के अनुच्छेद 2 में राष्ट्रपति के चुनाव की प्रक्रिया का उल्लेख है। संविधान में इलेक्टोरल कालेज के जरिए राष्ट्रपति के चुनाव की व्यवस्था है। हालांकि, अमेरिकी संविधान निर्माताओं का एक वर्ग इस पक्ष में था कि संसद को राष्ट्रपति चुनने का अधिकार मिले, जबकि दूसरा धड़ा सीधी वोटिंग के जरिए चुनाव के हक में था। इलेक्टोरल कालेज को इन दोनों धड़ों की अपेक्षाओं के बीच की एक कड़ी माना गया। राष्ट्रपति चुनाव के पहले राजनीतिक दल अपने स्तर पर दल का प्रतिनिधि चुनते हैं। प्राथमिक चुनाव में चुने गए पार्टी के प्रतिनिधि दूसरे दौर में राजनीतिक दल का हिस्सा बनते हैं और अपनी पार्टी के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार का चुनाव करते हैं। यही वजह है कि कुछ राज्यों में जनता प्राइमरी दौर में मतदान का इस्तेमाल न करके काकस के जरिए पार्टी प्रतिनिधि का चुनाव करती है।
अमेरिकी राष्ट्रपति का चुनाव
1- अमेरिका में चुनाव के लिए दिन और महीना तय होता है। यहां चुनावी साल के नवंबर महीने में पड़ने वाले पहले सोमवार के बाद पड़ने वाले पहले मंगलवार को मतदान होता है। हालांकि, यहां 60 दिन पहले वोट डालने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। इस अवधि में अमेरिका से बाहर रहने वाला व्यक्ति भी आनलाइन वोट डाल सकता है। अमेरिका मंत्रिमंडल बनाने की प्रक्रिया भारत से बिलकुल ही भिन्न है। यहां मंत्री बनने वाले व्यक्ति के लिए जरूरी नहीं कि वह संसद का सदस्य हो, ना ही उसके लिए राजनीतिक दल का सदस्य होना जरूरी है। यदि राष्ट्रपति को लगता है तो वह विरोधी पार्टी के सदस्य अथवा किसी विषय विशेषज्ञ को भो मंत्री बना सकता है।
2- अमेरिकी लोकतंत्र में द्विदलीय राजनीतिक व्यवस्था है। इसलिए त्रिशंकु संसद का खतरा भी नहीं होता। रिपब्लिकन और डेमोक्रेट यहां दो प्रमुख पार्टियां हैं। अन्य दलों का यहां कोई वजूद नहीं है। राष्ट्रपति बनने की आकांक्षा रखने वाले उम्मीदवार सबसे पहले एक समिति बनाते हैं, जो चंदा इकट्ठा करने और संबंधित नेता के प्रति जनता का रुख भांपने का काम करती है। कई बार यह प्रक्रिया चुनाव से दो साल पहले ही शुरू हो जाती है।
3- अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में काकस की प्रमुख भूमिका है। काकस में पार्टी के सदस्य जमा होते हैं। स्कूलों, घरों या फिर सार्वजनिक स्थलों पर उम्मीदवार के नाम पर चर्चा की जाती है। वहां मौजूद लोग हाथ उठाकर उम्मीदवार का चयन करते हैं। वहीं प्राइमरी में मतपत्र के जरिए मतदान होता है। हर राज्य के नियमों के हिसाब से अलग-अलग तरह से प्राइमरी होती है और काकस प्रक्रिया भी हर राज्य के कानून के हिसाब से अलग-अलग होती है।

