राजनीति
रणभेरी – बदलाव की बात कर रहा वोटर तोड़ पायेगा मिथक, काशीपुर में मतदाताओं की खामोशी ने बढ़ाई बेचेनी
काशीपुर में मतदाताओं की खामोशी ने बढ़ाई बेचैनी
अनुराग गंगोला। काशीपुर विधानसभा चुनाव में इस बार एक नई बात देखने को मिल रही है। वह है मतदाताओं की खामोशी, हालांकि किसे वोट देंगे की बात पूछने पर वोटर इतना भर बोल रहे हैं कि इस बार बदलाव जरूरी है लेकिन उनका इशारा किसे जिताने का है यह साफ नहीं हो पा रहा है। उधर 4 विधानसभा चुनाव में जीत का स्वाद चख रही भाजपा की डगर भी मुश्किलों भरी है। टिकट के दावेदारों में से कई प्रमुख चेहरों ने बगावत की राह तो नहीं पकड़ी अलबत्ता चुनाव प्रचार में भी वह खुलकर सामने नहीं है ऐसे में ऊंट किस करवट बैठेगा कहा नहीं जा सकता। यह बात दीगर है कि चुनाव मैनेजमेंट के महारथी विधायक हरभजन सिंह चीमा अपने पुत्र त्रिलोक सीमा को जिताने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ेंगे।
उधर कांग्रेस ने दावेदारों के बीच असंतोष से निपटने के लिए पूर्व सांसद केसी सिंह बाबा के पुत्र नरेंद्र चंद्र सिंह को टिकट दे दिया। लेकिन देखना दिलचस्प होगा कि सामाजिक जीवन में सीमित व्यवहार रखने वाले उनके विधायक प्रत्याशी पुत्र पार्टी के सामान्य कार्यकर्ताओं और आम जनता के बीच कम समय में अपने को कैसे स्थापित कर पाते हैं। स्थानीय कांग्रेस नेताओं का उन्हें भरपूर समर्थन मिलता है या नहीं देखना जरूरी है क्योंकि महत्वाकांक्षी कांग्रेसियों को लगता है कि यदि पूर्व सांसद पुत्र की जमीन तैयार हो गई तो भविष्य में उनके सपने पूरे नहीं हो पाएंगे। अब वह कांग्रेस प्रत्याशी की जमीन कितनी सींचते हैं यह भविष्य के गर्भ में है। हालांकि कांग्रेस दावेदार एकजुट जरूर दिखाई दे रहे हैं लेकिन सोशल मीडिया में वह पार्टी प्रत्याशी नरेंद्र चंद्र सिंह से ज्यादा अपनी और पार्टी की नीतियों को महिमामंडित कर रहे हैं।
दूसरी ओर चुनाव को त्रिकोणीय बना रहे आम आदमी पार्टी के दीपक बाली भाजपा – कांग्रेस की सरकारों की विफलताओं और बुनियादी विकास के मुद्दों को पूरी शिद्दत के साथ जनता के बीच रख रहे हैं। उन्होंने अपना पूरा फोकस बूथों को मजबूत करने में लगा रखा है। जीत के प्रति आश्वस्त दिख रहे बाली के पास विकास का रोडमैप तो है लेकिन पहली बार चुनाव में दो-दो हाथ कर रही आम आदमी पार्टी पर वोटर कितना भरोसा जताएंगे इसका जवाब किसी के पास नहीं है। आम आदमी पार्टी के सामने एक दिक्कत यह भी है कि स्थानीय प्रत्याशी से लेकर पदाधिकारियों के पास चुनाव लड़ने – लड़ाने का खास अनुभव नहीं है। वही चुनावी जानकार मानते हैं कि बहुजन समाज पार्टी कहीं ना कहीं भाजपा को डैमेज करेगी । साथ ही पार्टी प्रत्याशी के अल्पसंख्यक नहीं होने से मुस्लिम मतदाताओं का रुझान भी पार्टी की तरफ खास नहीं होगा। ऐसे में इस वोट बैंक को कांग्रेस और आम आदमी पार्टी लपकने का प्रयास करेंगे लेकिन अंतिम समय में चुनाव यदि फिर हिंदू बनाम मुस्लिम हो गया तो आम आदमी पार्टी के खाते से यह वोट भी खिसक सकता है। ऐसा हुआ तो यह कांग्रेस के लिए राहत की बात होगी।

