उत्तराखण्ड
नये शिक्षा मंत्री के नये आदेश से पैरेंट्स की परेशानी, किताबों और फीस के नाम पर स्कूलों की मनमानी
बागेश्वर. कोरोना काल के बाद निजी स्कूल संचालकों की मनमानी एक बार फिर शुरू हो गई है. सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त पाठ्यक्रमों को छोड़ निजी प्रकाशनों की किताबों को खरीदने का दबाव अभिभावकों पर बनाया जा रहा है. निजी स्कूलों के दबाव में पैरेंट्स मजबूर हैं कि वो स्कूलों की बताई गई दुकानों से ही कई गुना महंगी किताबें खरीदें. महंगाई और बेरोज़गारी जैसी मुसीबतें पहले ही झेल रहे लोगों के बजट पर यह एक और मुश्किल खड़ी हो गई है. इसकी वजह उत्तराखंड की नयी सरकार का एक आदेश माना जा रहा है.
स्कूली बच्चों की किताबों की बिलिंग हज़ारों रुपए में हो रही है क्योंकि NCERT की किताबों के बजाय स्कूल निजी प्रकाशनों की किताबें बिकवा रहे हैं. असल में, पिछली राज्य सरकार में शिक्षा मंत्री अरविंद पांडे ने सभी स्कूलों में एनसीईआरटी की पुस्तकें लागू करने का निर्णय लिया था, जिससे अभिभावकों को राहत मिली थी. एनसीईआरटी की पुस्तकों व निजी प्रकाशनों की पुस्तकों के दामों में कई गुना का अंतर है. उदाहरण के तौर पर अगर NCERT की किताब 60 रुपये की है, तो निजी प्रकाशनों वाली किताबें 300 रुपये से भी ज़्यादा की हैं.

सरकार के बदले आदेश से बढ़ी मुसीबत
भाजपा सरकार-2 बनते ही अरविंद पांडे के बजाय धनसिंह रावत को शिक्षा मंत्री का ज़िम्मा सौंपा गया. उन्होंने सिर्फ एनसीईआरटी की पुस्तकों वाला आदेश बदल दिया. लोग कह रहे हैं कि इस फैसले से सरकार की छवि खराब हुई है. यही नहीं, जनप्रतिनिधियों व अधिकारियों की चुप्पी के चलते अभिभावक भी खुलकर विरोध दर्ज नहीं करवा पा रहे हैं. उन्हें डर है कि उनके विरोध से उनके बच्चों की पढ़ाई प्रभावित होगी.
स्कूलों की मनमानी और सरकारी रवैया
बागेश्वर में कई स्कूल प्रवेश शुल्क के नाम पर अभिभावकों से जमकर फीस वसूल रहे हैं. नियमानुसार एडमिशन चार्ज एक ही बार लिया जा सकता है, लेकिन यहां भी स्कूलों की मनमानी से अभिभावकों का बजट गड़बड़ा गया है. इधर, ज़िला शिक्षा अधिकारी पदमेंद्र सकलानी ने कहा कि अभी किसी ने शिकायत नहीं की है हालांकि अभिभावक उनसे या प्रशासन से शिकायत कर सकते हैं. शिकायतकर्ता का नाम गोपनीय रखा जाएगा.

