उत्तराखण्ड
भारत-नेपाल से बीच 205 साल पुराना विवाद सुलझने का रास्ता खुला,जानें क्या है मामला
भारत और नेपाल के बीच सीमा से जुड़े विवादों को आपसी समझ और पुराने संबंधों को केंद्र में रखकर बातचीत के जरिए सुलझाने की सहमति से उत्तराखंड के कालापानी, लिम्पियाधूरा और लिपूलेख से संबधित सीमा विवाद को हल करने की राह खुल गई। दोनों देशों के बीच 1817 यानी 205 साल से विवाद चला आ रहा है।
42 साल पहले फिर बनी कमेटी: 1980 में भारत सरकार ने विवाद निपटाने के लिए एक समिति बनाई। 1997 में दोनों देशों के संयुक्त तकनीकी दल वहां भेजने की बात की हुई पर कोई दल वहां नहीं भेजा। कैसे पकड़ा तूल: लिपुलेख दर्रे समेत कालापानी और लिम्पियाधूरा को पिछले साल नेपाल ने अपने नक्शे में शामिल कर 1817 से चले आ रहे सीमा विवाद को चरम पर पहुंचा दिया।
उत्तराखंड में गोरखा शासन का जब 1817 में जब अंत हुआ तो सुगौली संधि में यह तय हुआ कि, काली या महाकाली नदी के पार का पश्चिमी हिस्सा भारत के पास रहेगा। 1815 में एक नेपाली अधिकारी बमशाह चौतरिया ने ईस्ट इंडिया कंपनी पर नेपाल की 20 हजार हे. भूमि पर कब्जे का आरोप लगाया। इस आरोप के बाद ब्रिटिश अधिकारी कैप्टन वेब की टीम ने इस मामले की जांच की थी। जिसमें नेपाल का दावा झूठा पाया गया था।
क्या है सीमा विवाद
नेपाल का आरोप है कि, भारत ने कालापानी महाकाली नदी का कृत्रिम उदगम स्थल बनाकर उसके भूभाग को कब्जे में किया है। उसका दावा है कि, महाकाली की मूल धारा कुटी-यांगती नदी है।
यह भी जानें
-नेपाल के 26 जिलों की 1750 किमी. लंबी सीमा भारत से लगती है।
-कालापानी में 1962 से भारत-तिब्बत सीमा पुलिस की चेक पोस्ट है।
-भारत के गब्र्यांग के लोगों के नाम दर्ज है कालापानी की जमीन।
-2020 में नेपाल के नए नक्शे से रिश्तों में आया था तनाव।
144 साल पुराने गजेटियर में भी विवाद का जिक्र
आज के उत्तराखंड के इतिहास, समाज, संस्कृति पर महत्वपूर्ण गजट लिखने वाले अंग्रेस प्रशासक ईटी अटकिंसन ने भी इस सीमा विवाद का जिक्र किया है। अटकिंसन ने 1880 में यह गजट लिखे थे। अटकिंसन ने बम शाह चौतरिया के दावे और कैप्टन वेब के फैसले का जिक्र गजेटियर में किया है।

