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Haldwani Medical Collage: रैगिंग ही नहीं अपने ही प्राचार्य को इलाज नहीं मिला यहां, डाक्टर-तीमारदार में मारपीट तो आम बात है
हल्द्वानी : राजकीय मेडिकल कालेज में रैगिंग का नाता पुराना रहा है। कई बार कार्रवाई हुई कई बार शिकायतकर्ता के लिखित शिकायत न करने से मामला दब गया। सिर्फ रैगिंग ही नहीं तीमारदारों डाक्टरों के बीच मारपीट तो आम बात है। अभी पिछले साल जुलाई मध्य में तीमारदार व डाक्टरों की मारपीट में सुशीला तिवारी में पुलिस बल व वज्र वाहन तक तैनात करने पड़े थे। इसके अलावा नवंबर में प्राचार्य प्रो. आरजी नौटियाल सड़क हादसे में घायल हो गए थे। उन्हें सुशीला तिवारी में इलाज तक मयस्सर नहीं हुआ। बाद में वह जाकर शहर के एक निजी अस्पताल में अपनी दवाई पट्टी कराई।

डाक्टरों-तीमारदारों में मारपीट
पिछले साल 13 जुलाई की रात सुशीला तिवारी अस्पताल में जूनियर डाक्टर व तीमारदार भिड़ गए। दोनों पक्षों ने एक दूसरे के ऊपर मारपीट व अभद्रता करने का आरोप लगाया है। एसपी सिटी डा. जगदीश चंद्र ने बताया कि डहरिया निवासी तीमारदार मरीज को लेकर अस्पताल पहुंचे थे। तीमारदारों ने चिकित्सक पर मरीज को न देखने का आरोप लगाया। यहीं से कहासुनी शुरू हुई तो बात हंगामे तक पहुंच गई।
इस मामले में दोनों पक्षों ने केस दर्ज कराया था। योगेश की तहरीर पर अज्ञात चिकित्सकों पर मारपीट, हमला, गालीगलौच की धाराओं में मुकदमा दर्ज किया गया था। वहीं, जनरल मेडिसिन विभाग के रेजीडेंट डा. नवीन सेमवाल की तहरीर पर 15 से 20 अज्ञात तीमारदारों के खिलाफ उपद्रव, सरकारी कार्य में बाधा, अभद्रता व जान से मारने की धमकी के तहत मुकदमा दर्ज किया गया।
पीएसी व बज्र वाहन करने पड़े थे तैनात
प्रशासन ने माहौल गर्म देखते हुए एहतियातन सुरक्षा चाक चौबंद की। जिला प्रशासन की ओर से एक प्लाटून पीएसी तैनात की गई है। पीएसी के जवान मंगलवार को दिनभर परिसर में तैनात रहे। वहीं, आपात स्थिति से निपटने के लिए परिसर में बज्र वाहन भी तैनात किया गया।

प्रचार्य को नहीं मिला अपने ही कालेज में इलाज
दूसरी घटना राजकीय मेडिकल कालेज अल्मोड़ा के प्राचार्य प्रो. आरजी नौटियाल की है। जो कि कुछ दिन पहले ही यहीं पर टीबी व चेस्ट रोग विभाग के विभागाध्यक्ष रहे थे। वह 19 नवंबर को सड़क हादसे में घायल हो गए। प्रो. नौटियाल चंडीगढ़ में अपने भांजे की शादी समारोह से लौट रहे थे। कठघरिया के पास उनकी कार पेड़ से टकरा गई। हादसे में कार पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो गई। वह दूसरे वाहन से एसटीएच पहुंचे, लेकिन इमरजेंसी में कोई डाक्टर नहीं मिला। इसके बाद वह उन्हें कृष्णा अस्पताल एंड रिसर्च सेंटर जाना पड़ा।
हैरानी की बात यह कि विभागाध्यक्ष रहते हुए वह कैंपस में ही रहते थे। इसके बावजूद उन्हें अस्पताल में इलाज न मिलने को क्या कहा जाए। साथ ही आम आदमी के इलाज की प्राथमिकता का सहज अंदाजा भी लगाया जा सकता है जब प्राचार्य को ऐसी न भूलने वाली तवज्जो मिली…।

