साहित्य-काव्य
चुनावी मुफ्तखोरी: सुप्रीम कोर्ट से आश!
रघोत्तम शुक्ल (लेखक, विचारक पूर्व पीसीएस अधिकारी हैं।)
चुनावों में विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा अपने अपने घोषणापत्रों मे बहुत कुछ मुफ्त देने का वायदा करके लाभ उठाने की प्रवृत्ति जोर पकड़ती जा रही है।इससे चुनावी परिणाम स्वस्थ और स्वतंत्र नहीं आते।वे लोभ आधारित होते हैं।इस परम्परा की शुरुवात तामिलनाडु से 1967 में हुई,जब खाद्यान्न संकट से जूझते राष्ट्र में तामिलनाडु की द्रमुक पार्टी ने एक रुपये में डेढ़ किलो चावल देने का वायदा करके वोटों से अपनी झोली भर ली और सरकार बना ली।तदनंतर यह एक अंतहीन प्रक्रिया चल पड़ी और सभी पार्टियाॅ एक दूसरे से बाजी मारने की कोशिश करती दिखीं।इस समय आम आदमी पार्टी इस विन्दु पर सबसे आगे दिख रही है और लाभान्वित हो रही है।2015 और 2020 मे हुए दिल्ली विधानसभाई चुनावों में उसे ऐसे ही हवाई वायदों से मिली सफलता से उत्साहित होकर उसने हाल ही में हुए पञ्जाब प्रांत के चुनाव में लगभग सबकुछ फ्री देने के अतिरञ्जित एवं अव्यवहारिक वायदे किये और सरकार बना ली।संसाधन न होने के कारण उनका पूरा करना असम्भव देख,केंद्र सरकार के सामने याचक बनकर खड़े हो गये और पचास हजार करोड़ रु.की माॅग कर दी।अब केंद्र पर पैसा न देने का आरोप लगाकर वायदे पूरे करने से मुक्ति पा लेंगे।जनता छली गई।देश में निर्वाचित प्रतिनिधि वापस बुलाने का कोई कानून नहीं है।पाॅच वर्ष का अखण्ड राज्य संरक्षित हो गया।
मुफ्तखोरी के अतिरञ्जित वायदे करने पर प्रतिबन्ध लगाने हेतु देश में कोई कानून नहीं है।सामान्य व्यक्ति यदि ऐसा करे तो छल,प्रवञ्चना,प्रसंविदा भञ्जन आदि के कानून उपलब्ध हैं,किंतु राजनीतिक दल करें तो कुछ नहीं।सरकारें दलों की ही होती हैं और वे ऐसा कानून बनायेंगे भी नहीं क्योंकि अवसर पा कर सभी इस रास्ते लाभ उठाने का यत्न करते हैं।जो जितनी बाजी मार ले जाय।तब फिर क्या?क्या जनता ऐसे ही छली जाती रहेगी?इससे तो देश बरबाद होते देखे गये हैं।बेनेजुएला और लंका इसके उदाहरण हैं।ऐसे में आशा की एक किरण सुप्रीमकोर्ट से ही झलकती दिखाई दे रही है।2013 में इस आला अदालत ने एक फैसले में चुनाव आयोग को निर्दिष्ट किया था कि वह पार्टियों को इस सम्बन्ध में दिशा निर्देश दे;आयोग ने कुछ निर्देश जारी भी किये;पर नतीजा ढाख के तीन पात ही रहा।यहाॅ का चुनाव आयग शक्तिहीन है।जरूरत है सर्वोच्च न्यायालय द्वारा समादेश जारी करने की।अश्विनी उपाध्याय एडवोकेट की एतत्सम्बन्धी याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई चल रही है।चुनाव आयोग ने इस अदालत में अपने शपथपत्र में अपनी शक्तिहीनता का रोना रोया है।
आशा की जानी चाहिये कि सर्वोच्च न्यायपीठ शीघ्र ही प्रभावी समादेश जारी करके इस दूषित प्रवृत्ति से देश को बचायेगी।यह राम और कृष्ण की भूमि है।यहाॅ ‘कर्म प्रधान विस्व रचि राखा’और ‘कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन’केउपदेश गूञ्जे हैं।
-----रघोत्तम शुक्ल

