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Earth: कहीं कम तो कहीं ज्याादा क्यों हो रही नाइट्रोजन की मात्रा
पृथ्वी के वायुमंडल (Atmosphere of Earth) में 78 प्रतिशत नाइट्रोजन (Nitrogen) है. यह गैस आमतौर पर प्रतिक्रिया नहीं करती है. हम इंसान जो हवा सांस के रूप में शरीर के अंदर लेते हैं उसमें नाइट्रोजन भी होती है. लेकिन नाइट्रोजन समृद्ध संसार में उसकी अधिकता या कमी (Too Much and too little Nitrogen) से भी नुकसान हो सकता है. यह एक बहुत बड़ा सवाल है. लेकिन बहु संस्थानिक शोध में लगी टीम ने पाया है कि नाइट्रोजन समृद्ध दुनिया में नाइट्रोजन की कमी हो रही है. कई जगहों पर ज्यादा नाइट्रोजन जमा होने लगा है और तो दूसरी तरफ कई जैविक प्रक्रियाओं में भी नाइट्रोजन की कमी के कारण उसकी मांग बहुत बढ़ गई है
कम या अधिक भी हो जाती है नाइट्रोजन
20वीं सदी के मध्य से ही कई शोध में इस बात की पड़ताल की गई है कि धरती और पानी के पारिस्थितिकी तंत्र में अधिक या फिर कम नाइट्रोजन के होने के क्या क्या दुष्प्रभाव हो सकते हैं. इस संबंध में नए प्रमाण संकेत दे रहे हैं क दुनिया में नाइट्रोजन की मौजूदगी को लेकर दो तरह के अनुभव एक साथ हो रहे हैं.
चिंता का कारण बनी नाइट्रोजन
सालों के अवलोकनों से वैज्ञानिकों ने पाया है कि वातावरण में अधिक नाइट्रोजन अब इस बात के लिए नई चिंताएं पैदा कर दी हैं कि दुनिया में मानवीय गतिविधियों के कारण नाइट्रोजन कई जगह कम होता दिख रहा है. ऐसे इलाकों में नाइट्रोजन की पहुंच पर्याप्त नहीं रह गई है. यह अध्ययन साइंस जर्नल में प्रकाशित हुआ है.
कम और ज्यादा दोनों स्थितियां
इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने यह भी बताया है कि कम होती नाइट्रोजन के क्या कारण हैं और यह पारिस्थितिकी कार्यों को कैसे प्रभाव कर रहा है. इस अध्ययन के प्रमुख लेखक और नेशनल सोशियो-एन्वायर्नमेंटल सिंथेसिसि सेंटर के पोस्ट डॉक्टोरल स्कॉलर रेचल मैसन ने बताया कि पृथ्वी पर एक ही समय में दोनों बहुत ज्यादा और बहुत कम नाइट्रोजदन की स्थितियां मौजूद हैं.
क्या होता है ज्यादा नाइट्रोजन से
पिछली एक सदी में इंसानों ने औद्यौगिक और कृषि गतिविधियों के जरिए मानवजनित क्रियाओं से नाइट्रोजन का उत्सर्जन दोगुने सी भी ज्यादा कर दिया है. ये नाइट्रोजन नालों, झीलों, समुद्रतटीय पानी, आदि में जमा हो रहा है जिससे सुपोषण, कम ऑक्सीजन वाले मृत इलाके और शैवाल प्रस्फुटन जैसी घटनाओं में इजाफा होता जा रहा है.
कमी भी हो रही है नाइट्रोजन की
अत्याधिक नाइट्रोजन के इस नकारात्मक प्रभाव के कारण ही वैज्ञानिक नाइट्रोजन को एक प्रदूषकतौर पर देखने लगे हैं. दूसरी तरफ यह भी सच है कि कार्बन डाइऑक्साइड बढ़ने से और वैश्विक बदलावों के कारण पौधो और सूक्ष्म जीवों को अब ज्यादा नाइट्रोजन की जरूरत है या फिर उन्हें पर्याप्त नाइट्रोजन नहीं मिल रही है.

