उत्तराखण्ड
कांग्रेस-भाजपा दोनों ही दलों ने गढ़वाल को कर दिया ‘किनारे’
उत्तराखंड की राजनीति में पहले भाजपा ने गढ़वाल से बड़े नेताओं की मुख्यधारा से छुट्टी की और अब कांग्रेस ने भी उसी तरफ कदम बढ़ाते हुए प्रदेश अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष की बागडोर कुमाऊं के नेताओं को सौंप दी। राज्य गठन के बाद दोनों दलों में ऐसा पहली बार हुआ, जब गढ़वाल से फिलहाल दोनों दलों ने ही किनारा किया।
गढ़वाल के नेताओं की उत्तराखंड की राजनीति में शुरूआत से अच्छी-खासी धमक रही है। पूर्व मुख्यमंत्री बीसी खंडूड़ी, डा. रमेश पोखरियाल निशंक, विजय बहुगुणा, त्रिवेंद्र रावत और तीरथ रावत इसके उदाहरण भी है, लेकिन इस बार ऐसे पुराने चेहरों के साथ ही नए नेताओं की मुख्यधारा से दूरी हो चुकी है।
भाजपा की तरफ से सबसे पहले केंद्र में शिक्षा मंत्री रहे डा. रमेश पोखरियाल निशंक से जुलाई, 21 में इसकी शुरूआत हुई। तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कैबिनेट में हुए फेरबदल में निशंक के स्थान पर नैनीताल-ऊधमसिंहनगर के सांसद अजय भट्ट को केंद्रीय राज्यमंत्री के रूप में जगह दी गई।
इसी माह राज्य के मुख्यमंत्री रहे तीरथ रावत की भी कुर्सी हिली और उनके स्थान पर खटीमा से विधायक रहे पुष्कर धामी को नई जिम्मेदारी सौंपी गई। वहीं, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष के रूप में हरिद्वार विधायक मदन कौशिक की ताजपोशी की गई। इसी साल फरवरी माह में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा को 47 सीटें मिली थी। इनमें 29 सीटें गढ़वाल मंडल से मिली थी। तब माना जा रहा था कि उत्तराखंड के बड़े नेताओं की अहम जिम्मेदारी मिल सकती है, लेकिन यह बाजी भी फिसल गई।
भाजपा हाईकमान ने धामी पर अपना भरोसा कायम रखते हुए दोबारा मुख्यमंत्री के रूप में उन्हें कमान सौंपी। गढ़वाल मंडल से अगर हरिद्वार जिले को छोड़ दें तो भाजपा को देहरादून, पौड़ी, रुद्रप्रयाग, चमोली, टिहरी और उत्तरकाशी से 26 सीटों पर जीत दर्ज की थी। इसके बावजूद संगठन में प्रदेश अध्यक्ष की अहम जिम्मेदारी तक इन जिलों के बड़े नेताओं को नहीं मिल पाई।
दोनों दल नहीं साध पाए क्षेत्रीय समीकरण
भाजपा और कांग्रेस हाईकमान इस बार गढ़वाल और कुमाऊं मंडल के बीच क्षेत्रीय समीकरण नहीं साथ पाए हैं। अक्सर दोनों दल अभी तक ठाकुर और ब्राह्मण को सरकार और संगठन में मुख्य पद देकर तालमेल बैठाते रहे। दोनों दल अगर मुख्यमंत्री ठाकुर जाति से बनाते थे तो फिर प्रदेश अध्यक्ष या फिर नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी ब्राह्मण चेहरे को सौंपते रहे।
हालांकि, भाजपा में अभी यह समीकरण है, लेकिन प्रदेश अध्यक्ष हरिद्वार से होने की वजह से पर्वतीय जिलों में खालीपन महसूस किया जा रहा है। वहीं, कांग्रेस ने प्रदेश अध्यक्ष ठाकुर तो नेता प्रतिपक्ष दलित वर्ग से बनाया है। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि ऐसा समीकरण लंबा खिंचने की उम्मीद कम हैं, अन्यथा भविष्य में दोनों दलों को इसकी भरपाई करना मुश्किल माना जा रहा है।
कांग्रेस ने कुमाऊं साधा, गढ़वाल की झोली खाली
प्रदेश अध्यक्ष, नेता प्रतिपक्ष और विधायक दल के उपनेता के पद पर नियुक्ति का फैसला कांग्रेस हाईकमान ने खास रणनीति के तहत किया है। गढ़वाल-कुमाऊं और ठाकुर-ब्राह़मण के बीच ही शीर्ष पद रखने की परंपरा को तोड़ने का साहसिक फैसला लेते हुए कांग्रेस ने अपनी भावी रणनीति की झलक भी दिखाई है। कांग्रेस का फोकस राज्य के 19 फीसदी से ज्यादा बड़े एससी वर्ग पर होने जा रहा है।
वहीं, इस विधानसभा चुनाव में 19 में 11 सीट देने वाले कुमाऊं मंडल में कांग्रेस खुद को और मजबूत करने की कोशिश करेगी।
सूत्रों के अनुसार पिछले महीने विधानसभा चुनावों में हार की समीक्षा करने देहरादून आए देहरादून आए राष्ट्रीय महासचिव अविनाश पांडे ने 21 और 22 मार्च को बारीकी से समीक्षा की थी। सूत्रों के अनुसार कांग्रेस हाईकमान ने पाया कि राजनीतिक लिहाज से इस वक्त यशपाल आर्य सबसे लाभकारी चेहरा साबित होंगे।
प्रीतम सिंह मजबूत नेता तो हैं लेकिन वो जिस एसटी वर्ग से आते हैं, वो राज्य की राजनीति में बदलाव करने की क्षमता नहीं रखता। जबकि आर्य का एक एससी वर्ग में एक अलग पहचान है।आर्य की उस वर्ग पर अच्छी पकड़ है। दूसरी तरफ, प्रदेश अध्यक्ष पद पर ठाकुर करन माहरा और उप नेता पद पर ब्राह्मण भुवन कापड़ी की नियुक्ति से कांग्रेस ने जातीय फार्मूले को भी साध लिया है। साथ ही दो युवाओं को अहम जिम्मेदारी देकर नए नेतृत्व को उभारने का संदेश भी दिया है।
गढ़वाल में रहा कमजोर प्रदर्शन
कांग्रेस का गढ़वाल में काफी कमजोर प्रदर्शन रहा है। गढ़वाल के छह जिलों में कांग्रेस महज तीन सीट ही जीत पाई। साढ़े चार साल प्रदेश अध्यक्ष और और आठ महीना नेता प्रतिपक्ष रहे प्रीतम सिंह के लोकसभा क्षेत्र टिहरी में 14 में केवल दो सीट ही सीट कांग्रेस को मिली। पूर्व प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल के गृह जनपद पौड़ी में इस बार भी कांग्रेस का सूपड़ा साफ ही रहा। साभार न्यू मीडिया।

