राजनीति
नैनीताल रोड पर जानवरों की जुगाली !
मनोज लोहनी
डिस्क्लेमर: यहां राजनीति, नेताजी, वोट, शराब, रेता आदि शब्दों का किसी भी नेता से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कोई लेना-देना बिलकुल भी नहीं है। नैनीताल रोड पर बीच सड़क गायों की जुगालीकरण क्रिया सतत, सनातन है। जुगालीकरण की इस क्रिया की कोई प्रतिक्रिया नहीं। इस क्रिया में पेट में गया माल फिर से मुंह की तरफ आता है। उसे अच्छी तरह चबाया जाता है। जुगाली में गायों के मुंह के किनारे से झाग आउटपुट के रूप में निकलता है, यानि जुगाली करने का आउटपुट जरूर है। जाहिर है, जुगाली वहीं होती है जहां पेट में माल होता है। जानवरों को जुगाली करते हुए देख मन में ख्याल आया, जानवरों के बीच जानवर-तंत्र आगे बढ़ाकर उनके बीच राजनीति और चुनाव होता तो! गायों के जुगालीकरण की क्रिया के बीच में चुनाव जैसा बेहद टेक्निकल टमज़् कहां से ? जुगाली करने और राजनीति में कुछ समानता तो है। जुगाली करने के लिए पहले पेट भरकर चरना होता है। नेता भी तो पेट भरते हैं..। अमां यार टॉपिक क्यों चेंज कर रहे हो, हम जानवरों के चरने, उनकी जुगाली की बात पर आगे बढ़ रहे हैं। सवाल जानवरों के बीच चुनाव का उठा है तो इसका मतलब यह कतई नहीं है कि हम अपने नेताओं के चुनाव के बीच कोई जानवरीकरण जैसी चीज घुसेड़ रहे हैं, समझे..। ठीक है, पर नेता भी तो जुगाली करते हैं…। अमां यार तुम तो कतई, खड़ी बोली पर ही आ गए। अच्छा चलो मान गए, नेता जी जुगाली करते हैं। मगर उनके और गाय के जुगाली करने में कोई फकज़् तो होगा! फकज़् है, गाय और नेताजी की जुगाली दिखने या नहीं दिखने का। एक और फकज़् है, गाय घास की जुगाली करती है और नेता जी…कोई सस्पेंस नहीं है भाई, जाहिर है वोट की नहीं करते हैं। वह तो वोट मिलने के बाद जीतने पर जलवा दिखाते हैं। नेता जी की जुगाली केवल चुनाव के दिनों में ही नहीं होती है…चुनाव जीतने पर फिर सतत जुगाली कायज़्क्रम। अब यह भी बताना पड़ेगा कि जुगाली काहे की, वह भी चुनाव जीतने के बाद..। वैसे फाइलों की जुगाली भी तो होती होगी! तुम ना यार.., कहलवाना जरूरी है क्या? मैंने तो सुना है कि रेते की भी जुगाली होती है..। अच्छा, एक काम करो..तुम ही बोल लो सब कुछ..। मैं कहां, बोल रहा हूं,..मैंने तो केवल सुनाभर है। देखा कहां है? देखना! वह तो बेटा तुम क्या तुम्हारे उस्ताद भी नहीं देख पाएंगे..। मगर पता तो सबको है। तो उससे क्या फकज़् पड़ता है। तुमने भी यार कतई भटका दिया है, मुद्दे से। इस मुद्दे के लिए अच्छा खासा माद्दा चाहिए होता है..दिमाग का। वैसे शराब की भी जुगाली होती है क्या? तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है क्या..जुगाली करने के लिए चीज चबाई जाती है..और तुम्हें पता नहीं शराब..क्या चबाई जा सकती है? अब इतना मुझे नहीं पता, मगर मैं तो बस यूं ही कह रहा था। मैं सब समझता हूं तुम्हारी ‘यूं हीÓ वाली बातों का मतलब। समझते हो तो फिर भुड़भुड़ा क्यों रहे हो और मैंने गलत क्या कहा? अच्छा छोड़ो, वापस नैनीताल रोड चलते हैं, जहां जानवर जुगाली कर रहे हैं। जानवर आखिर बीच सड़क नैनीताल रोड पर बैठकर ही अपने जुगालीकरण का विशेष सत्र क्यों बुलाते होंगे? वह भी ट्रैफि क दोनों तरफ से रोकते हुए। लोगों को निकलना पड़ता है, दाएं-बाएं से किसी तरह उनके सत्र में बिना किसी छोड़छाड़ किए। अब देखो, यह उनका विशेषाधिकार है कि वह अपना सत्र कहां आयोजित करें..उन्हें पूरी आजादी है। यह आजादी दी किसने? जाहिर है नेताजी ने ही दी होगी, उनके..। अच्छा मैं तो चला भाई, तुम देखते रहो जुगाली…और सोचते रहो। हम जुगाली कब करेंगे? नेता बन सकते हो? मैं चला भाई जी, नमस्कार…। (री-पोस्ट)
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