उत्तराखण्ड
अजब हाल: उत्तराखंड में 350 विधायकों पर 100 करोड़ का खर्च, देखें माननीयों की 20 साल में कैसे बड़ी मौज
देहरादून. उत्तराखंड में जिस तरह से माननीयों के ठाठ-बाट हैं, सरकारी खर्चे हैं, उससे दूर-दूर तक इस बात का एहसास नहीं किया जा सकता कि यह वही उत्तराखंड है, जो हज़ारों करोड़ रुपये के कर्ज़ में डूबा हुआ है. अगर आप विधायकों के सरकारी खर्च का डेटा देखें या सुनें तो आपको भी हैरत हो सकती है. उत्तर प्रदेश से अलग होकर 2000 में उत्तराखंड बना था और तबसे देखा जाए तो माननीयों पर सरकारी खज़ाने का 100 करोड़ रुपया खर्च हो चुका है, यानी 2000 से अब तक 5 बार 350 एमएलए पर 100 करोड़ खर्च।
पहले आंकड़े देखते हैं. उत्तराखंड राज्य की 2021-22 में अनुमानित जीडीपी 2.78 लाख करोड़ रुपये आंकी गई, जिसमें से कुल खर्च 57,400 करोड़ रुपये का रहा. इसके बरक्स 1 करोड़ से कुछ ही ज़्यादा की आबादी वाले इस छोटे राज्य पर 60,000 करोड़ रुपये से ज़्यादा का कर्ज़ चढ़ा हुआ है. इन आंकड़ों के बाद यह भी एक फैक्ट है कि सरकारी कामकाज में खर्च पर कंट्रोल के निर्देश अक्सर जारी होते हैं, लेकिन विधायकों के खर्च का आंकड़ा लगातार बढ़ रहा है.

20 साल में 20 गुना हो गया खर्च?
निर्वाचित सरकार में पहले साल 2002-03 में माननीयों के वेतन भत्ते पर एक साल का जो कुल खर्चा 80 लाख रुपये का था, वो अब बढ़कर हर साल 14 से 15 करोड़ तक पहुंचने लगा है. हालत ये है कि ये कुल खर्चा अब तक करीब 100 करोड़ पर पहुंच चुका है. इन आंकड़ों का खुलासा तब हुआ, जब आरटीआई के तहत इस तरह की जानकारी मांगी गई. अब इस स्थिति पर विशेषज्ञ भी चिंता जता रहे हैं.
पंजाब की तर्ज़ पर लेना होगा एक्शन!
सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 के तहत आरटीआई एक्टिविस्ट नदीमुद्दीन के आवेदन पर यह आधिकारिक जानकारी दी गई. आरटीआई के इस खुलासे पर वरिष्ठ पत्रकार नीरज कोहली का कहना है कि जिस तरह पंजाब ने विधायकों के खर्चों में कटौती की है ताकि राज्य की माली हालत बेहतर हो, उसी तरह उत्तराखंड सरकार को भी सोचना होगा. गौरतलब है कि पंजाब पर 3 लाख करोड़ रुपये का कर्ज़ है, जिसके लिए भगवंत मान सरकार ने विधायकों की पेंशन में कटौती का बड़ा फैसला किया.
क्या कह रही है बीजेपी?
एक तरफ जानकार मान रहे हैं कि उत्तराखंड की भाजपा सरकार को इस बारे में विचार करना होगा, वहीं, बीजेपी विधायक खजान दास का कहना है, ‘खर्चों में कटौती करना मुख्यमंत्री का विवेक है. अगर खर्चों में बढ़ोत्तरी हो रही है, तो इसमें कमी होनी आवश्यक है क्योंकि प्रदेश लगातार कर्ज़ में है.’

