राजनीति
११ साल चुनाव हारे…हमारा कुछ नहीं लगा क्या!
इधर चुनावी सरगर्मी के बीच लालकुआं विधानसभा हॉट सीट बनी हुई है। हॉट इसलिए कि हरीश रावत यहां पहुंचे, टिकट पहले किसी और को दिया, फिर खुद यहां पहुंचे, जनता से वोट सीएम के नाम मांगे जा रहे हैं। मगर यहां विधानसभा के भीतर बात कुछ और भी चल रही हैं, जिससे चुनावी चकल्लस में लोग खूब मौज ले रहे हैं। यहां भाजपा से टिकट कटा, टिकट कटा तो हमारी दुम से। कोई फर्क नहीं पड़ता…। अब बात हो रही है, इस बात की कि हम चुनाव हारे, एक दो नहीं, पूरे ११ चुनाव हारे, किसके लिए भई, जनता के लिए लड़े थे तो जनता के लिए ही हारे भी। तो हमारा कुछ नहीं लगा क्या! अब इन दिनों विधानसभा यह खूब चर्चा है कि एक युवा ने ऐसा क्यों कहा? किसने कहा? बात सीधी-सीधी सी है, कि हमे नहीं पता। यह आंखों देखी तो नहीं हो सकती, हां कानों सुनी जरूर है। टिकट-फिकट से इतर अब नेताजी लगे हैं चुनाव प्रचार में। नेताजी की संगठन के प्रति पूरी आस्था है, लिहाजा वह अपने संगठन के झंडे के साथ हो लिए। मगर आजकल के जवानों का क्या? उन्होंने जो कहना था कह दिया, तमाम लोगों ने सुना भी। हालांकि इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि किसने क्या कहा। मगर बुरा तो लगता है, इस बात से कि टिकट तो दिया ही जा सकता था। नहीं दिया, अब क्या करें। खैर, लोगों को बातें चाहिए, मुद्दे चाहिए, तो जनता तो बतियाती है, वह बतिया रही है। यह बात केवल गप्प है, लिहाजा लोगों को गप्पबाजी में आनंद तो आएगा ही। बहरहाल गप्पबाजी के और मुद्दे भी हैं, तमाम मुद्दे चल रहे हैं। हालांकि यह बात पुरानी होने वाली है, मगर हमने यह गप्प अभी-अभी सुनी है, और गप्प रखनी तो होती है नहीं, लिहाजा हमने सोचा इसे आगे बढ़ा ही दें, वैसे भी यहां चुनाव चकल्लस चलरिया….।

