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राजनीति

यूपी में बसपा का एक मात्र विधायक और कांग्रेस के केवल 2 विधायक, जानिए कौन हैं ये विलक्षण विधायक

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उत्तर प्रदेश में 2007 के विधानसभा चुनाव में मायावती की बहुजन समाज पार्टी 206 सीटें जीतकर अपने दम पर सत्ता में आई थी.

15 साल बाद बीएसपी एक सीट पर सिमट कर रह गई. बीएसपी के वोट शेयर में भी भारी गिरावट आई है. 2017 में बीएसपी का वोट शेयर 22 फ़ीसदी था जो इस बार कम होकर 12.8% हो गया है.

2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बीएसपी को केवल रसड़ा विधानसभा सीट से जीत मिली है. जीतने वाले उम्मीदवार हैं- उमाशंकर सिंह.

उमाशंकर सिंह ने बीएसपी की हार पर मीडिया से कहा है कि पार्टी इस पर आत्ममंथन करेगी. 2017 में भी बीएसपी को कम सीटें मिली थीं लेकिन तब वोट शेयर समाजवादी पार्टी से 1.9 फ़ीसदी ज़्यादा था.

कहा जाता है कि उमा शंकर सिंह की रसड़ा में रॉबिनहुड की छवि है. उमा शंकर सिंह कॉन्ट्रैक्टर का काम भी करते हैं. कहा जाता है कि उमाशंकर सिंह की पार्टी की सरकार राज्य में नहीं रहती है तब भी अपने विधानसभा क्षेत्र में काम करवा लेते हैं.

पिछले साल नवंबर महीने में मायावती ने उमाशंकर सिंह को विधायक दल का नेता बनाया था. उमाशंकर सिंह मूलतः बलिया के हैं. पहले टर्म में उन्हें तत्कालीन राज्यपाल राम नाइक ने रिप्रेज़ेंटेशन ऑफ़ द पीपल एक्ट के उल्लंघन के मामले में अयोग्य ठहरा दिया था.
मायावती की हार को भारत की दलित राजनीति की धार कमज़ोर होने के तौर पर भी देखा जा रहा है. पंजाब में बीएसपी का शिरोमणि अकाली दल के साथ गठबंधन था. बीएसपी को पंजाब में एक सीट मिली है और वोट शेयर 1.7% रहा. पंजाब में भारत के सभी राज्यों की तुलना में दलितों का वोट शेयर सबसे ज़्यादा है. चुनाव के दौरान भी बीएसपी कैंपेन से बाहर रही थी.

यूपी में बीजेपी का वोट शेयर 2017 में 39.7% था जो इस बार के चुनाव में बढ़कर 42% हो गया है. कहा जा रहा है कि बीएसपी का दलित वोट बीजेपी में शिफ़्ट कर गया है.

यूपी चुनाव में क़रारी हार के बाद बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने शुक्रवार को बयान जारी किया. अपने बयान में मायावती ने कहा, ”उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बसपा की उम्मीद के विपरीत जो नतीजे आए हैं, उससे घबराकर पार्टी के लोगों को टूटना नहीं है. उसके सही कारणों को समझकर और सबक सीखकर हमें अपनी पार्टी को आगे बढ़ाना है और आगे चलकर सत्ता में ज़रूर आना है.”

मायावती ने कहा, ”पूरी प्रदेश से मिले फ़ीडबैक के अनुसार, जातिवादी मीडिया ने अपनी अनवरत गंदी साज़िशों और प्रायोजित सर्वे के साथ नकारात्मक प्रचार के ज़रिए मुस्लिम समाज के अलावा भाजपा विरोधी हिन्दू समाज को भी गुमराह किया है. ये प्रचार किया कि बीएसपी बीजेपी की बी टीम है. मीडिया ने प्रचार किया कि हम मज़बूती से चुनाव नहीं लड़ रहे हैं.”
कांग्रेस के दो विधायक कौन हैं?
कांग्रेस पार्टी का भी इस चुनाव में यही हश्र रहा है. कांग्रेस को महज़ दो सीटों पर जीत मिली है. 2017 में कांग्रेस के कुल सात विधायक थे. इस बार वोट शेयर भी 2.33% पर सिमट गया है. रामपुर ख़ास से कांग्रेस के वरिष्ठ नेता प्रमोद तिवारी की बेटी अराधना मिश्रा मोना ने बीजेपी के नागेश प्रताप सिंह उर्फ़ छोटे सरकार को 14741 मतों से हराया है. रामपुर ख़ास प्रतापगढ़ ज़िले में है. कांग्रेस को दूसरी जीत फरेंदा सीट पर मिली है. यह महाराजगंज ज़िले में है. यहाँ से कांग्रेस के विरेंद्र चौधरी ने भारतीय जनता पार्टी के बजरंग बहादुर सिंह को 1246 मतों से हराया है.

हालांकि कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू तमकुही राज सीट से दूसरे नंबर पर भी नहीं रहे. यहां बीजेपी के असीम कुमार ने समाजवादी पार्टी के उदय नारायण को 66,472 मतों से हराया है. प्रियंका गांधी ने उन्नाव रेप पीड़िता की माँ को टिकट दिया था, लेकिन उन्हें एक हज़ार वोट भी नहीं मिला.

रामपुर ख़ास से अराधना मिश्रा पहली बार 2014 में उपचुनाव में जीती थीं. उसके बाद उन्हें 2017 में फिर से जीत मिली. यहाँ से इनके पिता प्रमोद तिवारी नौ बार से विधायकी का चुनाव जीतते रहे हैं. जीत के बाद अराधना मिश्रा ने ट्वीट कर कहा है, ”मेरे रामपुर ख़ास की जनता ने बता दिया कि यहाँ खोखली बातें नहीं विकास बोलता है. मेरे आदर्श पिता आदरणीय प्रमोद तिवारी जी के साथ 42 वर्षों से रामपुर ख़ास सतत विकास का साक्षी रहा, वह निरंतर विकास के अध्याय लिखता रहेगा. अपने जनादेश के लिए मेरे रामपुर ख़ास की जनता का ह्रदय से आभार.”

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संपादक - कस्तूरी न्यूज़

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