Connect with us
भाजपा के रणनीतिकार महागठबंधन के वोटों की ताकत को समझ रहे हैं। इसलिए लालू प्रसाद और जंगलराज की वापसी का डर उसका प्रधान चुनावी नारा बनने जा रहा है। यही वह नारा था जिससे राजग को जबरदस्त मदद मिलती रही है।

राजनीति

नीतीश के ‘एक के मुकाबले एक’ फार्मूले से भाजपा में बेचैनी, NDA के लिए 2014 का प्रदर्शन दोहराना नहीं होगा आसान

खबर शेयर करें -

विपक्षी एकता की पहल के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का एक के मुकाबले एक का फार्मूला राजग को डराता है तो महागठबंधन को उत्साहित करता है। 2014 लोकसभा चुनाव में पड़े वोटों की गिनती कर महागठबंधन उत्साहित है। दूसरी तरफ राजग अभी से काट खोजने में लगा है।

हिसाब यह बनता है कि 2024 के चुनाव में अगर भाजपा के उम्मीदवार के मुकाबले विपक्ष की ओर से एक उम्मीदवार दिया गया और राजद, जदयू, कांग्रेस और वाम दलों के वोट एकसाथ आ गए तो भाजपा को अपनी 17 सीटों के अलावा एकीकृत लोजपा की छह सीटों को बचाने में परेशानी होगी।

इस समय भाजपा को लोजपा के दोनों गुटों के अलावा राष्ट्रीय लोक जनता दल का साथ मिला है। यही समीकरण 2014 में भी था। अंतर सिर्फ यह है कि रालोसपा का नाम बदल कर राष्ट्रीय लोक जनता दल हो गया है। एक उम्मीद विकासशील इंसान पार्टी से है। 2014 में यह पार्टी नहीं बनी थी। हालांकि, इसके संस्थापक मुकेश सहनी भाजपा के साथ थे। अभी वह दुविधा में हैं।

ऐसे हुआ था वोटों का बंटवारा

2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को 29.40, लोजपा को 8.40 और रालोसपा को तीन प्रतिशत वोट मिला था। तीनों को मिलाकर 38.80 प्रतिशत हुआ। दूसरी तरफ अलग लड़कर जदयू को 15.80, गठबंधन में लड़कर राजद को 20.10, कांग्रेस को 8.40 और राकांपा को 1.20 प्रतिशत वोट मिला था।

यह भी पढ़ें 👉  उत्तराखंड के 3 लाख कर्मचारियों को CM धामी ने दिया बड़ा तोहफा, पूरी हुई बरसों पुरानी मांग

2024 में ये सभी दल साथ लड़ें और वाेट भी पहले की तरह मिले तो 45 प्रतिशत से अधिक वोट महागठबंधन के पक्ष में गोलबंद होने की कल्पना की जा रही है।

इन सीटों पर राजग को मिली थी बढ़त 

वाल्मीकिनगर, पश्चिम चंपारण, पूर्वी चंपारण, सीतामढ़ी, शिवहर, मुजफ्फरपुर, गोपालगंज, हाजीपुर, पटना साहिब, पाटलिपुत्र, आरा और काराकाट ऐसी 12 सीटें हैं, जहां राजग को जदयू और राजद या उसके सहयोगी दलों को मिलाकर मिले वोटों से अधिक मिला था। हालांकि, बाकी 28 सीटों पर वर्तमान महागठबंधन के वोटों का योग राजग उम्मीदवारों को मिले वोटों से काफी अधिक था।

2015 में हो गई थी गोलबंदी

महागठबंधन के वोटों की गोलबंदी होती भी है। 2015 के विधानसभा चुनाव में जदयू महागठबंधन के साथ आया। राजद, जदयू और कांग्रेस को मिलाकर 41.19 प्रतिशत वोट मिला। उधर, राजग का वोट 34.1 प्रतिशत पर सिमट गया।

यह भी पढ़ें 👉  उत्तराखंड : आंधी-तूफ़ान ने मचाई तबाही, 3 लोगों की मौत, कई जगह गिरे पेड़

उस समय तक हिन्दुस्तानी अवामी मोर्चा का गठन हो गया था। वह राजग का घटक था। इसी परिणाम को ध्यान में रखकर भाजपा ने 2019 के लोकसभा चुनाव में जदयू को साधा। उसे 2014 में जीती अपनी पांच लोकसभा सीटें दे दी। चमत्कारी परिणाम आया। राजग को 40 में से 39 सीटें मिल गईं।

मतदाताओं को याद करा रहे लालू का जंगलराज

भाजपा के रणनीतिकार महागठबंधन के वोटों की ताकत को समझ रहे हैं। इसलिए लालू प्रसाद और जंगलराज की वापसी का डर उसका प्रधान चुनावी नारा बनने जा रहा है। यही वह नारा था, जिससे राजग को जबरदस्त मदद मिलती रही है। 2005 में इसी के सहारे राजग बिहार की सत्ता में आया था। बाद में नीतीश कुमार ने विकास को बड़ा मुद्दा बनाया।

फिर भी हर चुनाव में राजग का अंतिम हथियार लालू प्रसाद का विरोध और जंगलराज की वापसी का खतरा ही रहा। भाजपा और उसके सहयोगी दल बहुत सावधानी से आम लोगों के दिमाग में यह डालने की कोशिश कर रहे हैं कि नीतीश कुमार धीरे-धीरे तेजस्वी को सत्ता सौंप रहे हैं। बिहार जंगलराज के पुराने दौर में लौट जाएगा।

Continue Reading

संपादक - कस्तूरी न्यूज़

Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published.

More in राजनीति

Trending News

Follow Facebook Page

You cannot copy content of this page