Connect with us
उत्तराखंड कांग्रेस ने चल रहे विवाद को देखते हुए आलाकमान ने पीएल पूनिया को पर्यवेक्षक बना कर प्रदेश भेजा है। पूनिया ने अपनी पंचायत में विधायक और पूर्व विधायकों से लेकर पूर्व सांसदों और संगठन के साथ 16 घंटे से अधिक समय तक बैठकें की।

राजनीति

क्या असंतुष्ट धड़े को मनाने में कामयाब रही पूनिया की पंचायत, 16 घंटे से अधिक देर तक चली बैठक

खबर शेयर करें -

देहरादून। प्रदेश कांग्रेस में पिछले एक साल से चल रहे बवाल के बाद आखिरकार आलाकमान को पीएल पूनिया को पर्यवेक्षक बना उत्तराखंड भेजना पड़ा। वरिष्ठ नेता पूनिया ने भी अपनी भूमिका से पूरा न्याय किया। तीन दिन तक पूनिया की पंचायत चली। विधायक और पूर्व विधायकों से लेकर पूर्व सांसदों और संगठन के साथ 16 घंटे से अधिक समय तक बैठकें की।

प्रदेश प्रभारी देवेंद्र यादव को लेकर असंतोष को भांप पूनिया ने इन बैठकों के दौरान उन्हें अलग ही रखा, ताकि असंतुष्ट धड़ा बेझिझक अपनी बात रख सके। विधायक तिलकराज बेहड ने पार्टी में क्षेत्रीय असंतुलन का जो मुददा उठाया था, लगता है वह भविष्य में रंग दिखाने जा रहा है। लोकसभा चुनाव को एक साल बचा है, कांग्रेस अपनी प्रतिद्वंद्वी भाजपा से मुकाबले की तैयारी के बजाय आपस में वार-पलटवार में उलझी है। अब पूनिया दिल्ली दरबार में जो रिपोर्ट देंगे, उससे पता चलेगा कि इसका जिम्मेदार है कौन।

मंत्री मांगें एसीआर लिखने का अधिकार

मंत्रियों को उनके विभागीय सचिवों की वार्षिक गोपनीय प्रविष्टि, यानी एसीआर लिखने का अधिकार देने का विषय पिछले कई महीनों से सत्ता के गलियारों में गूंज रहा है। पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज खुलकर इस तरह की मांग उठा रहे हैं। कैबिनेट की पिछली बैठक में फिर यह विषय आया। मंत्रियों के मुताबिक इस बारे में मुख्य सचिव को निर्देश दे दिए गए हैं।

यह भी पढ़ें 👉  पत्नी की हत्या कर फरार हो गया राजमिस्त्री, मायके वालों के पहुंचने के बाद खुला राज

खैर, मंत्रियों की बात अपनी जगह ठीक, लेकिन अब विपक्ष कांग्रेस ने मुददा लपक लिया है। कांग्रेस नेता सवाल कर रहे हैं कि मंत्रियों को एसीआर लिखने का अधिकार दे दिए जाने के बाद इस बात की क्या गारंटी है कि इससे व्यवस्था सुधरेगी। दरअसल, उत्तराखंड में यह व्यवस्था लागू न होने का मुख्य कारण यह है कि एक सचिव के पास कई मंत्रियों के विभाग हैं, क्योंकि आइएएस अधिकारियों की कमी है। ऐसे में कौन मंत्री किस सचिव की एसीआर लिखेगा, यह कैसे तय हो पाएगा।

धीरे धीरे बोल, सीएम सुन न लें

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की छवि सौम्य है, शायद ही उन्हें जनसभाओं के अलावा कभी जोर से बोलते किसी ने सुना भी हो। अफसर भी उन्हें संयमित ही मानते-समझते हैं, लेकिन हाल में एक उच्च स्तरीय बैठक में धामी ने जिस तरह सख्त रुख प्रदर्शित किया, उसने अफसरों की धारणा तोड़ दी।

मुख्यमंत्री धामी विपक्ष और निर्दलीय विधायकों के क्षेत्र में विकास कार्यों की समीक्षा कर रहे थे, कुल नौ विधायक इस बैठक में मौजूद थे। एवरीथिंग इज ग्रांटेड को मानने वाले दो अफसर मुख्यमंत्री और विधायकों की चर्चा को दरकिनार कर आपसी कानाफूसी में व्यस्त। पहले तो मुख्यमंत्री ने धैर्य दिखाया, मगर जब कानाफूसी जारी रही तो कब तक अनदेखा-अनसुना करते। अंतत: नौबत यह आई कि मुख्यमंत्री को हस्तक्षेप करना ही पड़ा। कुछ इस अंदाज में कि आपकी बातचीत निबट जाए तो बता दें, फिर बैठक में आगे चर्चा करेंगे। यह मत पूछिए कि ये अफसर थे कौन।

यह भी पढ़ें 👉  कुछ लोग तो भगवान को भी बता दें ब्रह्मांड कैसे बनाना है, अमरीका में प्रधानमंत्री पर राहुल गांधी का तंज, आरएसएस पर भी टिप्पणी

पोस्टकार्ड का जवाब इंटरनेट मीडिया पोस्ट

उत्तराखंड के दो दिग्गज, भगत सिंह कोश्यारी और हरीश रावत। दोनों इस राज्य के मुख्यमंत्री रहे हैं। इनकी राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता दशकों पुरानी है। कोश्यारी महाराष्ट्र के राज्यपाल का पद त्याग इन दिनों अध्ययन-मनन और भ्रमण कर रहे हैं। उधर, रावत उम्रदराज होने के बावजूद अब भी राजनीति में सक्रिय हैं। प्रतिद्वंद्वियों पर चुटकी लेना रावत की एक बड़ी खूबी है। आजकल कोश्यारी उनके निशाने पर हैं।

रावत ने कोश्यारी को अपने गांव मोहनरी आकर काफल (एक पहाड़ी फल) खाने का न्यौता दिया। साथ ही याद दिलाने की कोशिश की कि कोश्यारी के गांव की सड़क भी उनकी ही देन है। रावत का कहना है कि उन्होंने कोश्यारी से काफी कुछ सीखा है। बकौल रावत, जब वह सांसद थे, तब कोश्यारी उनकी बातों से असहमत होने पर उनके खिलाफ दर्जनों पोस्टकार्ड लिखवाकर अपना गुस्सा जाहिर करते थे। मतलब, अब इंटरनेट मीडिया में रावत की पोस्ट, तब के पोस्टकार्ड का जवाब हैं।

Continue Reading

संपादक - कस्तूरी न्यूज़

Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published.

More in राजनीति

Trending News

Follow Facebook Page

You cannot copy content of this page