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टीएमयू में भगवान वासुपूज्य मोक्षकल्याणक महोत्सव पर यज्ञ
- तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी में कुलाधिपति आवास- संवृद्धि पर 29 सितंबर को प्रातः सात बजे से होगा पारणा
- कुलाधिपति परिवार को मिलेगा सैकड़ों श्रावक और श्राविकाओं के आतिथ्य का सौभाग्य
ख़ास बातें
- कुलाधिपति परिवार ने की भगवान शांतिनाथ विधान के मुख्य कलश की स्थापना जिनवाणी की स्थापना सुश्री नंदिनी जैन, दीप संस्थापन श्री अक्षत जैन ने कियारिद्धि-सिद्धि भवन में सैकड़ों श्रावकों को मिला श्रीजी के अभिषेक का सौभाग्य
- भजनों पर झूम उठा रिद्धि-सिद्धि भवन, श्रावक और श्राविकाएं हुए भक्ति में लीनटीएमयू कैंपस में आठ अक्टूबर को बड़ी धूमधाम से होगा भव्य रथयात्रा महोत्सव105 श्री सृष्टि भूषण माता जी के साथ श्री विश्वयशमति माता जी का रहेगा सानिध्य
तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी में उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म दिवस एवम् भगवान वासुपूज्य मोक्षकल्याणक महोत्सव पर हवन किया गया। इस मौके पर श्री शांतिनाथ विधान, नवदेवता पूजा, समुच्चय चौबीसी पूजन, वासुपूज्य जिन पूजन, सोलहकारण पूजन, रत्नत्रय पूजन, जिनवाणी पूजन प्रतिष्ठाचार्य ऋषभ जैन शास्त्री जी के सानिध्य में हुए। कुलाधिपति श्री सुरेश जैन, फर्स्ट लेडी श्रीमती वीना जैन, जीवीसी श्री मनीष जैन, श्रीमती ऋचा जैन, एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर श्री अक्षत जैन और सुश्री नंदिनी जैन ने भगवान शांतिनाथ विधान के मुख्य कलश की स्थापना की। जिनवाणी की स्थापना सुश्री नंदिनी जैन, जबकि दीप संस्थापन श्री अक्षत जैन ने किया।
भोपाल से आई सुनील सरगम एंड पार्टी के संगीतमय भजनों पर रिद्धि-सिद्धि भवन झूम उठा और पूजा-अर्चना करते हुए भक्तिनृत्य में लीन हो गया। दूसरी ओर कुलाधिपति आवास- संवृद्धि पर कल यानी शुक्रवार प्रातः सात बजे से श्रावक/श्राविकाओं के लिए पारणा होगा। दूसरी ओर ऑडी में सांस्कृतिक सांझ की शुरुआत सीसीएसआईटी के स्टुडेंट्स ने केसरिया केसरिया…, आया पर्व पर्युषण…, मेरे देव के जैसा कोई नहीं…, जैन ब्रेथलेस…, बाजो रे ढोल… पर मंगलाचरण से की। इससे पूर्व ऑडी में प्रो. आरके द्विवेदी, प्रो. आरके जैन, श्री मनोज जैन, श्री विपिन जैन, प्रो. प्रवीन जैन, डॉ. आशीष सक्सेना, डॉ. नीलिमा जैन आदि ने मां सरस्वती के समक्ष दीप प्रज्ज्वलन करके कल्चरल ईवनिंग का श्रीगणेश किया।
उल्लेखनीय है, टीएमयू कैंपस में बड़ी धूमधाम से भव्य रथयात्रा महोत्सव 08 अक्टूबर को निकलेगी, जिसमें आर्यिका रत्न 105 श्री सृष्टि भूषण माता जी और आर्यिका 105 श्री विश्वयशमति माता जी की गरिमामयी मौजूदगी रहेगी, जबकि आर्यिका रत्न ससंघ का टीएमयू में 06 अक्टूबर को ही मंगलप्रवेश होगा।रिद्धि-सिद्धि भवन में भगवान शांतिनाथ विधान के चतुष कोण कलश स्थापना श्रीमती अंजलि आशीष सिंघई, श्रीमती विनीता विपिन जैन, श्रीमती प्रीति आदित्य जैन, श्रीमती शीला जैन ने की। आर्यिकारत्न 105 श्री पूर्णमति माताजी द्वारा रचित शांतिनाथ विधान, सिद्ध भक्ति और मंगलाचरण कर सम्पन्न किया गया। प्रथम वलय में 8 अर्घ्य है। द्वितीय वलय में 16 अर्घ्य है। तृतीय वलय में 32 और चौथे वलय में 64 अर्घ्य है। प्रथम वलय अडिल्ल छंद में, द्वितीय वलय नरेंद्र छंद, तृतीय वलय विष्णुपद छंद, सखी छंद, नरेंद्र छंद में और चतुर्थ वलय नरेंद्र छंद में रचित काव्यों से युक्त है। प्रथम वलय में सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान, सम्यक चारित्र्य के साथ पांच परमेष्ठियों को 8 अर्घ्य समर्पित किये गए। द्वितीय वलय में सर्वविघ्न विनाशन और सर्वविभव विनाशन हेतु ॐ और हिरिम जैसे बीजाक्षरों से युक्त मंत्रो के साथ 16 अर्घ्य अर्पित किए गए। तृतीय वलय में आत्मवैभव प्राप्त करने के लिए विभिन्न बीजाक्षरों के साथ, अष्टकर्म विनाशक और केवलज्ञान प्रदान करने वाले अर्घ्य चढ़ाए गए। चतुर्थ वलय में बुद्धि रिद्धि के अठारह भेद बताए गए, विक्रिया रिद्धि के ग्यारह भेद, चरण रिद्धि के नौ भेद, तप रिद्धि के सात भेद, बल रिद्धि के तीन भेद, औषधि रिद्धि के आठ भेद, रस रिद्धि के छह भेद बताए गए हैं, जिनके 64 अर्घ्य चढ़ाए गए। पूर्णर्घ्य चौबोला छंद में चढ़ाया गया। जयमाला ज्ञानोदय छंद में थी।उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म दिवस पर श्रीजी का प्रथम स्वर्ण कलश से डॉ. एसके जैन, द्वितीय स्वर्ण कलश से डॉ. काव्य जैन, तृतीय कलश से श्री पीयूष जैन और चतुर्थ स्वर्ण कलश से श्री मनोज जैन को अभिषेक करने का सौभाग्य मिला। श्रीजी की स्वर्ण कलश से शांतिधारा करने कुलाधिपति श्री सुरेश जैन, जीवीसी श्री मनीष जैन और एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर श्री अक्षत जैन और रजत कलश से शांति धारा करने का सौभाग्य हर्षित, अभि, एकांश, लक्ष्य, आयुष, शोभित और आदित्य जैन को मिला।
साथ ही अष्ठ प्रातिहार्य का सौभाग्य अष्ठ कन्याओं- प्रियल जैन, तनीषा, अनन्या, इशिका, सोनल, खुशी, अतिशा और कु अंशिका जैन ने प्राप्त किया। वासुपूज्य भगवान के मोक्ष कल्याणक का लाडू चढ़ाने का सौभाग्य अतिशय, दक्ष, अनंत चौधरी, आदिराज, सुहित, उज्जवल और आदित्य ने ने प्राप्त किया। सीसीसएआईटी के स्टुडेंट्स की ओर से ऑडी में एक शाम वैराग्य के नाम के तहत पंचकल्याणक नाटिका को कुछ संवाद और कुछ गीतों-गर्भकल्याणक की बधाई हो बधाई…, आज मेरे प्रभु घर आएंगे…, जन्म कल्याणक आया छाई खुशियां…, रेशम की पगड़ी है जैसे चांद सितारे…, मीठे रस से भरी…, नगरी आज सजाओ न बेला अलबेली है आई… के जरिए प्रस्तुत किया। स्टुडेंट्स ने शीश नवा अरिहंत को सिद्ध करो प्रणाम…, पारसनाथ जगत हितकारी… गीतों पर नृत्य के साथ भगवान पारसनाथ की जिनचर्या का अत्यंत मनमोहक प्रदर्शन किया। भगवान आदिनाथ की जन्म से लेकर मोक्ष तक की यात्रा का प्रदर्शन भी छात्र-छात्राओं ने किया। अंत में सीसीएसआईटी और एग्रीकल्चर कॉलेज के अंतिम वर्ष के छात्रों को सम्मानित किया गया। संचालन उज्जवल जैन और अर्चित जैन ने किया। प्रतिष्ठाचार्य ऋषभ जैन शास्त्री ने बताया, वासुपूज्य भगवान के सारे कल्याणक चम्पापुर से हुए। मुनियों में ऐसी ऋद्धियाँ होती है, उनके कर कमलों में आहार स्वादिष्ट होकर धन्य हो जाता है।
शांति विधान की जयमाला में बताया गया है कि सोलहवें तीर्थंकर भगवान शांतिनाथ के बाद से सम्पूर्ण विश्व मे जैन धर्म और प्रसन्नता की धारा फैल गयी और तभी से शांतिधारा की जाने लगी। उत्तम आकिंचन पर रिद्धि-सिद्धि भवन में सीसीएसआईटी के स्टुडेंट्स की ओर से संध्या की आरती की गई। शास्त्री जी ने श्री मानतुंगाचार्य द्वारा रचित भक्तांबर स्त्रोत का पाठ वाचन किया गया। ऑडिटोरियम में पंडित जी ने प्रवचन की शुरुआत णमोकार मंत्र से की। उन्होंने बताया, मनुष्य अकेले ही जन्म और अकेले ही मृत्यु को प्राप्त करता है, केवल यही एक सत्य है।
जैन विवाह विधि फेरों की विधि को बताते हुए कहा, महिला कितना भी पाप कर ले वह छठे नरक से नीचे नहीं जाती, किंतु पुरुष छठे नरक से नीचे जा सकते हैं। अंतरंग परिग्रह 14 तथा बहारीय परिग्रह 10 प्रकार के होते हैं। सामान्य मनुष्य के पास 24 परिग्रह और चक्रवर्ती के पास 23 परिग्रह होते हैं। सनातन धर्म के अनुसार गंगा में स्नान करने से मनुष्य के सात जन्म के पाप धुल जाते हैं। हमें जो भी जीवन में प्राप्त हो रहा है या जा रहा है वह पुण्य से ही हो रहा है। पंडित जी ने पिता-पुत्र की कहानी के जरिए बताया कि मनुष्य अपने से जुड़ी चीजों के लिए दुख का अनुभव करता है। प्रतिष्ठाचार्य ने उत्तम आकिंचन के विषय में बताया, आत्मा के अपने गुणों के सिवाय जगत में अपनी अन्य कोई भी वस्तु नहीं है। इस दृष्टि से आत्मा आकिंचन है।
आकिंचन रूप आत्मा-परिणति को आकिंचन करते हैं। सुनील सरगम एंड पार्टी के आस्थामय भजनों- रंगमा रंगमा रंगमा म्हरे रंग में रंग गये रे…, ओ यहां-वहां सब जगह जिह्वां ई मां…, प्रभु चरणों मे गीत गाता चल…, महावीरा बोलो महावीरा…, पंखिड़ा ओ पंखिड़ा…, पिच्छी-पिच्छी में धर्म मार्ग छिपा…, निर्मल कोमल पवन शीतल मेरी पूर्णमति माताजी…, थिरकने लगे हमारे कदम विद्यासागर के संग-संग… पर रिद्धि-सिद्धि भवन भक्तिनृत्य में लीन हो गया। इस दौरान ब्रहमचारिणी कल्पना दीदी, डॉ. रत्नेश जैन, डॉ. नम्रता जैन, डॉ. विनोद जैन, श्री आशीष सिंघई, डॉ. विनीता जैन, श्रीमती आरती जैन, डॉ. आर्जव जैन, श्री आदित्य जैन, श्रीमती विनीता जैन, श्रीमती निकिता जैन, श्रीमती रितु जैन, श्रीमती स्वाति जैन भी उपस्थित रही।

