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क्या साहब भी किसी के न मरने की दुआ करते होंगे?

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स्ट्रेट ड्राइव
मनोज लोहनी
क्या पता कहां मौत टूटी सड़क पर ताक पर बैठी है। इस बात से किसे सरोकार। लोगों का काम बेमौत मारा जाना है क्या? खुद की नहीं तंत्र की गलती से। चौफुला रोड पर पल-पल मौत का डेरा। मौत का यह इंतजाम किसने किया? जिस घर में आज मातम है, उनके अपनों की मौत के लिए कौन जिम्मेदार? हत्या का मुकदमा होगा क्या? किसके खिलाफ? यही तो सवाल है जिस पर अमल नहीं हुआ अब तक। होता तो क्या होता? यह होता कि शायद ऐसा नहीं होता जो हुआ, भगवान न करे आगे ऐसा हो। किसी के नहीं मरने की दुआ क्या अधिकारी भी करते होंगे? अगर करते तो सड़कों की बीमारी का सही पता लगाकर उसका इलाज तो करते। कम से कम इतना तो कर देते कि अपनी फैलाई बीमारी की तरफ लोगों को न जाने देते, मरने के लिए..।

जनता को रौंदने के लिए सारे अधिकार तो हैं ही आपके पास हुजूर। तो बैन कर देते सड़क तब तक, जब तक ताक पर बैठे गड्ढे किसी को अपना शिकार बनाने लायक नहीं रहते। मगर आपको क्या, गड्ढों से निकलता मौत का शोर आपके भला क्यों परेशान करे। कहा कि डेंजर जोन चिन्हित कर बड़े बोल्डर हटवाएंगे, क्या हुआ? अभी कुझ महीने पहले पांच महिलाओं पर लोहाली के पास मौत झपटी, कोई नहीं बचा। तंत्र जागा, फरमान हुआ, डेंजर जोन चिन्हित कर वहां से बोल्डर हटाए जाएंगे। यह तो कोई इलाज नहीं था, था भी तो अधूरा। कौन सी पहाड़ी भीतर ही भीतर कटने के बाद कब धसकने के तैयार बैठी है, क्या इसका मालूम है आपको। तो क्या मौत के तांडव के बाद केवल अपनी जिम्मेदारी तय भर करने के लिए आगे खतरा है..?

घोर लापरवाही कहने भर से क्या अपनी जिम्मेदारी से कोई पल्ला झाड़ लेगा? तो नहर कवरिंग से पहले अखबारों में विज्ञापन छपाकर आपने ऐसा क्यों नहीं कहा कि उस तरफ कोई जाएगा तो अपनी मौत के लिए जिम्मेदार होगा। बनवा देते एक एफि डेबिट कि विकास के साथ जनता की बलि भी तय है। सवाल बड़ा है, मगर जनता के लिए साहब हुजूर के लिए नहीं। इंतजाम तो खैर जो होते मौत का इंतजाम रोकने के, मगर लोगों की आवाजाही तो आप रोक सकते थे। कम से कम इस बहाने मौत की आवाजाही तो रुकती। जनता थोड़ा लंबे रास्ते का फेरा लगा लेती। यहां तकनीक की बात करना तो बेमानी है।

अपने यहां तकनीक की ठेकेदारी कहां होती है? तकनीक केवल इस बात की कि कुछ भी हो, गड्ढे बनाओं, कवर मत करो, बाद में जो हो देखा जाएगा। देख ही रहे हैं, एक के बाद एक मौत का नाच। अब आप आगे क्या करोगे? ट्रेजरी का पैसा ठिकाने लगाना है जल्दी तो इसके लिए हर तकनीक है। फि लहाल कवरिंग अभी काफी बाकी है। तकनीक की ऐसी-तैसी, बेतरतीब होकर बनाए गए गड्ढे साजिश तो नहीं कर रहे? इस बात से हुजूर को क्या फर्क पड़ता है। जनता कम से कम तुम तो मत जाओ उस तरफ जहां हुजूर की मेहरबानी से मौत की झालर सड़क के नीचे है, कभी भी किसी को लील सकने के लिए।

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संपादक - कस्तूरी न्यूज़

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