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उत्तराखण्ड

जब बैलगाड़ी में बैठ देहरादून पहुंच धर्म परिवर्तन रोका स्वामी दयानन्द सरस्वती ने, अल्मोड़ा का हैप्पी क्लब बनने की कहानी…, प्रो. अजय रावत की कलम से…

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  • कस्तूरी न्यूज के सुधी पाठकों का मनोज लोहनी का नमस्कार। आपके स्नेह से कस्तूरी न्यूज धीरे-धीरे देश-दुनिया में अपनी पहचान बनाएगा ऐसा मेरा भरोसा है। पिछले एक वर्ष में कस्तूरी न्यूज वेबसाइट ने खबरों को प्रसारित करने में पूरी कोशिश की है कि पाठकों तक हर छोटी-बड़ी घटना समय पर पहुंच सके। अब कस्तूरी न्यूज विषयांतर बातें करते हुए इस कोशिश में है कि पाठकों तक समसामयिक विषयों के साथ विमर्श की शुरुआत भी हो। इसी क्रम में कस्तूरी न्यूज ने उत्तराखंड को फोकस करते हुए कुछ विषय सामने रख रहे हैं। जाहिर है इस बात इतिहास से सीधा संबंध स्थापित होता है। लिहाजा राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जयंती के दिन से इस काम को करने का विचार सामने आया। इसे मूर्त रूप दिया जा है प्रो. अजय रावत लिखित पुस्तक ‘उत्तराखण्ड का समग्र राजनैतिक इतिहास (पाषाण युग से 1949 तक)’ से। इसमें उल्लिखित शब्दावली और भाषा इसी पुस्तक से हूबह ली जा रही है। मनोज लोहनी, संपादक, कस्तूरी न्यूज।

देहरादून में राजनीतिक चेतना जाग्रत करने का प्रमुख श्रेय आर्य समाज को है। सन 1897 में स्वामी दयानन्द ने हरिद्वार कुंभ के मेले के अवसर पर पाखण्ड कन्डनी पताका फहराई। देहरादून के तत्कालीन प्रमुख व्यक्ति महन्त नारायण दास, दरोगा लाल सिंह आदि हरिद्वार गये और वहां स्वामी जी के सारगर्भित भाषणों को सुनकर प्रभावित हुए। उस समय देहरादून में ईसाई व मुस्लिम धर्म का व्यापक प्रभाव था। देहरादून के कुछ भद्र हिन्दू पुरुष अपना धर्म परिवर्तित कर रहे थे। उन्हें धर्म परिवर्तन से रोकने के लिए स्वामी दयानन्द को बैलगाड़ी में बिठाकर देहरादून लाया गया।

स्वामी जी के प्रभाव से लोग धर्म परिवर्तन से बच गए। प्रसिद्ध क्रांतिकारी रासबिहारी बोस ने फारेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट, देहरादून म्ें एक कर्मचारी के रूप में नौकरी कर वहां गुप्त रूप से क्रांतिकारी संगठनों की स्थापना की। यहां टैगोर विला में क्रांतिकारियों की सभा होती थी। यहां लॉर्ड हार्डिंग पर बम फेंकने की योजना बनी और निश्चित तिथि पर रासबिहारी बोस व बसन्त कुमार देहरादून से दिल्ली पहुंचे। उन्होंने चांदनी चौक में स्थित एक मकान की छत से लार्ड हार्डिंग पर बम फेंका, किन्तु हार्डिंग बच निकले। बम फेंकने के पश्चात रासबिहारी बोस अपने क्रांतिकारी साथियों सहित पुन: देहरादून आये और गुप्त रूप से एक सभा आयोजित की गई जिसमें लार्ड हार्डिंग के बच निकलने पर शोक प्रकट किया गया। इसके बाद जब रासबिहारी बोस को प्रतीत हुआ कि उनको संदेह की नजरों से देखा जा रहा है, तो वे वहां से फरार हो गये।


सन 1903 में अल्मोड़ा में गोविंद बल्लभ पंत तथा हरगोविंद पंत के प्रयत्नों से हैप्पी क्लब की स्थापना हुई। इसका मुख्य उद्देश्य नवयुुवकों में राजनीतिक चेतना का संचार करना था। इसकी सदस्य संख्या सीमित रखी गयी तथा इसकी अधिकांश बैठकों शहर से बाहर किसी एकांत स्थान पर होती थी।


सन 1905 में बंगाल विभाजन के विरोध में अल्मोड़ा के नवयुवकों ने जनता को संगठित कर सभायें आयोजित कीं तथा जनता को ब्रिटिश सरकार के अत्याचारों से अवगत कराया। धीरे-धीरे उत्तराखंड का राजनीतिक वातावरण गर्म होने लगा।
गढ़वाल यूनियन की ओर से सन 1905 में देहरादून में गढ़वाली नामक पत्र का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ। यह पत्र प्रारम्भ में पाक्षिक था और 1913 में साप्ताहिक बना दिया गया। इस पत्र के माध्यम से गढ़वाल में सामाजिक एवं राजनीतिक चेतना का प्र्रादुर्भाव हुआ।


सन 1905 से 1911 तक उत्तराखंड में कोई विशेष राजनीतिक घटना नहीं घटी। सन 1913 में अल्मोड़ा अखबार बद्रीदत्त पाण्डे के सम्पादकत्व में आ जाने के कारण वह एक विशुद्ध राष्ट्रीय पत्रिका के रूप में परिवर्तित हो गया। उसकी मांग एब तीस गुना बढ़ गई। सन 1913 में स्वामी सत्यदेव परिव्राजक अमेरिका भ्रमण के पश्चात अल्मोड़ा पहुंचे। वहां उन्होंने शुद्ध साहित्य समिति की स्थापना कर जनसाधारण में राष्ट्रीय चेतना उत्पन्न की। सन 1914 में मोहन जोशी, चिरंजीलाल, हेमचन्द्र व बद्रीदत्त पाण्डे आदि नेताओं ने अल्मोड़ा में होम रूम लीग की एक शाखा स्थापित की। इसी समय स्वामी विचारानन्द सरस्वती ने इलाहाबाद से आकर देहरादून को अपना क्षेत्र निर्धारित किया। 1918 में उन्होंने देहरादून में होम रूम लीग की एक शाखा स्थापित की। सन 1916 में कुमाऊं कमिश्नरी की राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक तथा शिक्षा सम्बंधी प्रश्नों पर विचार-विमर्श हेतु नैनीताल में कुमाऊं परिषद की स्थापना की गई।


सन 1917 में अल्मोड़ा व नैनीताल में स्वराज सभाएं आयोजित की गईं जिसमें जनसाधारण को स्वतंत्रता के महत्व से अवगत कराया गया। नैनीतालवासियों ने नन्दा देवी के मन्दिर में तिरंगा झण्डा फहराया और तत्पश्चात इलाहाबाद बैंक के समीप गोविन्द बल्लभ पंत की अध्यक्षता में एक सभा हुई। क्रमश:
अगली बार…कुमाऊं में होम रूप की स्थापना और जड़ें, हल्द्वानी में कुमाऊं परिषद का द्वितीय अधिवेशन…।

प्रो. अजय रावत लिखित पुस्तक ‘उत्तराखण्ड का समग्र राजनैतिक इतिहास (पाषाण युग से 1949 तक)’ से।

नोट- जल्द ही प्रो. अजय रावत लिखित पुस्तक ‘उत्तराखण्ड का सांस्कृतिक इतिहास (पाषाण युग से 1949 तक)’ जल्द प्रकाशित हो रही है।

  • प्रो. अजय सिंह रावत का जन्म 1 सिंतबर 1948 को ग्राम रावतसेरा, बेरीनाग जिला, पिथौरागढ़ में हुआ। ख्याति प्राप्त इतिहासविद, लेखक, पर्यावरण और वानिकी शोध के क्षेत्र में प्रतिनिधि हस्ताक्षर हैं। प्रो. रावत कुमाऊं विवि नैनीताल के इतिहास विभाग के अध्यक्ष पद से सेवानिवृत्त हुए हैं, तदोपरांत वे हल्द्वानी स्थित मुक्त विवि के सामाजिक तथा मानविकी निदेशक भी रह चुके हैं। वे वानिकी तथा वानिकी के इतिहास में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जाने जाते हैं, तथा इंटरनेशनल यूनियन ऑफ फॉरेस्ट रिसर्च ऑर्गनाइजेशनर-6.7.01 वियाना (आस्ट्रिया) के 10 वर्ष मनोनीत अध्यक्ष भी रह चुके हैं। वे पहले एशियाई थे जिन्होंने इस पद को सुशोभित किया। उन्हें अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार ‘ऑर्डर ऑफ द गोल्डन आर्क’ से भी सम्मानित किया जा चुका है। उन्हें तीन राष्ट्रीय फैलोशिप भी मिल चुकी हैं। उन्हें बेस्ट आरटीआई सिटिजन ऑफ इण्डिया, ग्लोरी ऑफ इण्डिया गोल्ड मेडल, विजय श्री, गौडफ्री फिलिप सोशल ब्रेवरि अवार्ड गोल्ड मेडल ( दो बार) आदि से सम्मानित किया जा चुका है।
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संपादक - कस्तूरी न्यूज़

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