राजनीति
पूर्वांचल की कमजोर कड़ियाँ और योगी का भव्य नामांकन
पूर्वांचल की कमजोर कड़ियां और योगी आदित्यनाथ का भव्य नामांकन
चुनाव में नामांकन यानी पर्चा दाखिल करना एक औपचारिकता है। हालांकि अब ये ताकत दिखाने का मौका बन गया है। योगी आदित्यनाथ आज गोरखपुर सदर विधानसभा सीट से पर्चा भरेंगे। ये मौका भारतीय जनता पार्टी जमकर भुनाना चाहती है। इसलिए अमति शाह और धर्मेंद्र प्रधान भी इस मौके पर होंगे और जनसभा भी होगी। पर इसकी जरूरत क्यों पड़ी, ये समझिए
नोएडा : उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) ताम-झाम के बीच शुक्रवार को पर्चा दाखिल करेंगे। गोरखपुर सदर (Gorakhpur Sadar Seat) सीट से। योगी की कर्मभूमि रही गोरक्षधाम की धरती से भारतीय जनता पार्टी (Bhartiya Janata Party) पूरे पूर्वांचल को संदेश देना चाहती है। इसलिए अमित शाह, धर्मेंद्र प्रधान, स्वतंत्र सिंह देव समेत तमाम बड़ी हस्तियां योगी के नामांकन पर मौजूद रहेंगी। योगी के खिलाफ ताल ठोक रहे चंद्रशेखर आजाद रावण ने चुटकी ली। कहा, गोरखपुर में मेरी बढ़ती लोकप्रियता देख बीजेपी हताश और निराश है। यह देखकर बाबा जी (सीएम योगी) का भी खुद से विश्वास उठ गया है। अभी तक सबको लड़ाने वाले सीएम योगी का पर्चा दाखिल कराने गोरखपुर में भाजपा की पूरी फौज आ रही है। अब सवाल उठता है कि भाजपा उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव (UP Assembly Election 2022) में योगी के नामांकन को इतना भव्य बना रही है।
योगी आदित्यनाथ के लिए चुनौती
इसके लिए लोकसभा चुनाव 2019 के कुछ नतीजे बताकर आपको आगे ले चलते हैं। भाजपा के कद्दावर नेता और 2017 में मुख्यमंत्री बनते-बनते रह गए मनोज सिन्हा गाजीपुर में एक लाख से ज्यादा वोटों से हार गए। केंद्रीय मंत्री और उत्तर प्रदेश भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष रहे महेंद्रनाथ पांडे चंदौली से मात्र 14 हजार वोटों से जीते। आजमगढ़, घोसी भी भाजपा हार गई। आजमगढ़ से खुद अखिलेश यादव जीते। श्रावस्ती, बस्ती, मछलीशहर, भदोही में बीजेपी 50,000 से कम वोटों से जीती। पूर्वांचल की 26 सीटों में सात पर भाजपा की हार हुई। तब ओमप्रकाश राजभर और स्वामी प्रसाद मौर्य भी भाजपा के साथ थे। अब नहीं हैं। 2017 में अगर भाजपा और सहयोगी दलों ने 26 जिलों की 156 सीटों में 128 पर कब्जा जमाया था। बदलते समीकरण में समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) की सीधी टक्कर भाजपा से है। इसलिए बहुजन समाज पार्टी (Bahujan Samaj Party) के कुछ वोटर सपा या भाजपा में शिफ्ट हो सकते हैं। अखिलेश यादव को उम्मीद है कि वो पूर्वांचल को फिर से सपा का गढ़ बना लेंगे। चुनाव से पहले के ओपिनियन पोल भी बता रहे हैं कि पूर्वांचल में सपा और भाजपा के बीच ज्यादा फासला नहीं है।
UP Election 2022 : योगी आदित्यनाथ के ‘सबसे बड़े विरोधियों’ ने उनका किला गिराने के लिए किस सीट को चुना?
उत्तर प्रदेश चुनाव का इतिहास देखें तो पूर्वांचल हमेशा जीतने वाली पार्टी के पक्ष में वोट करता रहा है। 2012 में जब अखिलेश यादव लखनऊ की गद्दी पर काबिज हुए थे तो उन्हें इन 156 सीटों में से 102 पर जीत हासिल हुई थी। बिहार से सटे और प्रभावित इस इलाके में यादव और मुसलमान वोट बैंक अखिलेश के साथ जा सकता है। असली टॉप अप मिला है राजभर और अनुप्रिया पटेल की मां यानी अपना दल कमेरावादी के साथ आने से। साथ ही स्वामी प्रसाद मौर्य के साथ आने से सपा कुछ मजबूत हो सकती है। यादव और कुर्मी के बाद मौर्य समाज ओबीसी में तीसरी सबसे बड़ी पार्टी है। ब्राह्मण वोट बैंक आठ जिलों में 18 प्रतिशत से ज्यादा है। इसलिए अखिलेश यादव ने हरिशंक तिवारी के बेटे और विधायक विनय शंक तिवारी को पाले में कर लिया। ये गोरखपुर की चिल्लापूर सीट से ही बसपा के टिकट पर विधायक बने थे।
ब्राह्मण वोट बांटने की रणनीति
समाजवादी पार्टी की कोशिश है किसी तरह योगी आदित्यनाथ पर हमला करते हुए सरकार को ब्राह्मणविरोधी करार देने की विपक्षी कोशिश को हवा मिले। सतीश चंद्र मिश्र भी इसी जुगाड़ में हैं और प्रियंका गांधी भी। बिकरू कांड के मास्टरमाइंड विकास दुबे के गुर्गे अमर दुबे का परिवार ही कांग्रेस में शामिल हो गया। दोनों एनकाउंटर में मारे गए थे। अमर दुबे की बीवी खुशी दुबे लगातार योगी आदित्यनाथ को ब्राह्मण विरोधी बता रही है। उसकी बहन नेहा दुबे को प्रियंका गांधी ने कल्याणपुर से टिकट दे दिया है। अखिलेश यादव को लगता है कि भले ही ब्राह्मण वोट न मिले लेकिन अगर ये बंट जाए तो भी सपा को फायदा हो सकता है।
इन तमाम जातीय कार्ड्स का मुकाबला करने के लिए भाजपा हिंदुत्व पर जोर दे रही है। इसका चेहरा योगी से बेहतर कोई नहीं हो सकता। इसीलिए पहले उन्हें अयोध्या से चुनाव मैदान में उतारने की तैयारी थी लेकिन पूर्वांचल को साधने के लिए ही उन्हें गोरखपुर की सीट दी गई। सरयू नहर जैसे विकास के एजेंडे के अलावा पूर्वांचल में अपराध पर लगाम लगाने में योगी की सफलता को भी बीजेपी आगे लेकर चल रही है। भले ही अखिलेश यादव ने तंज कसते हुए कहा हो की योगी ठोक दो की नीति पर चलते हैं, जनता इन्हें ठोक देगी लेकिन पश्चिमी उत्तर प्रदेश से लेकर पूर्वांचल तक लॉ एंड ऑर्डर पर योगी की लोकप्रियता बढ़ी है।
योगी की गोरक्षपीठ और खुद योगी आदित्यनाथ का प्रभाव पूर्वांचल के उन इलाकों में जाना जाता है, जो यूपी की सत्ता में निर्णायक भूमिका अदा करते रहे हैं। योगी के प्रभाव क्षेत्रों में कुशीनगर, देवरिया, संत कबीर नगर, महाराजगंज, गोरखपुर, बस्ती, कुशीनगर, आजमगढ़ और मऊ जैसे महत्वपूर्ण इलाके हैं। यहां की तमाम सीटों पर योगी खुद चुनाव लड़वाते रहे हैं। कुछ स्थानों पर योगी की हिंदू युवा वाहिनी का प्रभाव भी बहुत अधिक है। ऐसे में योगी को गोरखपुर भेजकर इस प्रभाव को कैश कराने की कोशिश की गई है। साथ ही गोरक्षनाथ धाम में दलितों और पिछड़ों सबकी आस्था रही है। इसीलिए योगी महाराणा प्रताप इंटर कॉलेज में अमित शाह के साथ रैली के बाद सीधे धाम पहुंचेंगे और पूजा अर्चना करेंगे। गौसेवा पर योगी की तारीफ तो होती है लेकिन ये बीजेपी के लिए नया संकट लेकर आया है। दरअसल योगी ने सत्ता में आने के बाद काउ प्रोटेक्शन लॉ को और कड़ा बना दिया। इसके बाद कानून के डर से लोगों ने दूध देने के बाद गायों को बेचान बंद कर दिया। अब उन्हें चुपके से खुला छोड़ दिया जाता है। अब इन आवारा पशुओं ने किसानों की जीना हराम कर दिया है। ये एक बड़ा मुद्दा बनकर उभरा है। इसलिए बीजेपी के मिशन 350 को पूर्वांचल में चुनौती मिल रही है।
साभार: नवभारत टाइम्स