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“दीपक” के हवाले रोशनी तो रास्तों का जगमगाना अब तय… स्ट्रीट लाइट्स का मर्ज छोटा मगर अब उपाय हो गया बड़ा
नैनीताल। कुमाऊं कमिश्नरी में जब भी कोई हलचल होती है तो उसकी कंपन तंत्र तक पहुंचती जरूर है। हलचल पहुंचती है तो उसके बाद करंट दौड़ता है, करंट किसी भी समस्या के समाधान का और समाधान न होने की स्थिति में उस समस्या को ठीक करने के लिए तंत्र को ठीक करने का। कमिश्नरी या कमिश्नरी कार्यालय से पहले आम जनता का सीधा संवाद बहुत कम देखने को मिलता था। आम इंसान शायद ही सोच पाता था कि वह कमिश्नर कार्यालय में जाकर अपनी किसी समस्या के बाबत बात सामने रख सके। मगर अब ऐसा होना कुमाऊं कमिश्नरी कार्यालय का एक नियम बन गया है। जनता यहां पहुंचती है समस्याएं रखती है, और हाथों-हाथ समाधान भी लेकर जाती है। कुमाऊंभर में जमीन से संबंधित विवादों का जिस त्वरित गति से कुमाऊं कमिश्नर के दरबार में अब समाधान हो रहा है, वह बात पहले कल्पनातीत ही थी। लैंड फ्रॉड के झमेले से निकलना आम इंसान के वश की बात कहां, मगर अब इस मामले में जब कहीं भी कोई गलती पकड़ आ रही है तो दोषी पर सीधा मुकदमा ही हो रहा है। हाथों हाथ समाधान के तौर पर कई मामले ऐसे सामने आए जब पीड़ित पक्ष को उसकी जमीन का सीधा हक मिला या फिर उससे ठगे गए पैसे हाथों हाथ मिल गए, जैसा कि अभी हाल ही में हुआ और 36 लख रुपए की रकम पीड़ित को मिली। यानी जिस तरफ कुमाऊं कमिश्नर दीपक रावत की नजर गई समस्या का वहां समाधान होना तो लाजिमी ही रहा है।
मूल खबर पर आने से पहले यह भूमिका बनाना यहां जरूरी था, क्योंकि रोशनी से संबंधित इस समस्या के समाधान के लिए अब दीपक रोशनी बिखरने को तैयार है। सरकारी ऑफिस में कर्मचारियों के कार्य करने के तरीके को ठीक करने की बात हो, गलत काम करने पर उन्हें तत्काल ही कार्रवाई के दायरे में लाने का विषय हो या फिर आम जनता के किसी भी काम के न होने की स्थिति में अधिकारियों को काम करने का तरीका सिखाना हो, कुमाऊं कमिश्नर दीपक रावत की अदालत में इसकी रोशनी फैलती जरूर है।
अब बात करते हैं रोशनी की। शहरों में नगर निकाय स्ट्रीट लाइट का प्रबंधन करती हैं। स्ट्रीट लाइट्स का प्रबंध कैसा होता है और कहां तक उनकी रोशनी पहुंचती है यह जनता को बहुत भली-भांति मालूम है। लाइट लगे तो उसके बाद पहली चुनौती उसके जलने की, जलने के बाद उसके टूट-फूट या फिर खराब होने की स्थिति में रोशनी चले जाने के बाद रोशनी के पुनः लौटने की बड़ी चुनौती, इसलिए कि खराब स्ट्रीट लाइट की यह रोशनी तब लौटेगी जब इस बारे में संदर्भित निकाय को शिकायत पहुंचाई जाएगी। अब स्ट्रीट लाइट खराब होने जैसे छोटे से विषय को लेकर पहले तो शिकायत पहुंचाए कौन, अगर कोई शिकायत पहुंचा भी दे तो वह शिकायत फाइलों से बाहर कैसे निकले, अगर शिकायत फाइलों से बाहर निकल भी गई तो वह ठीक होने के लिए पोल तक कैसे पहुंचे, यानी कि स्ट्रीट लाइट लगने से उसके खराब होने के बाद फिर ठीक होने की यह एक लंबी और अवैज्ञानिक प्रक्रिया है, जिस पर कोई विज्ञान का सूत्र नहीं काम करता बल्कि एक ही सूत्र काम करता है और वह है सिस्टम को कसकर रख काम करवाना। बस यहीं से कुमाऊं कमिश्नर दीपक रावत की भूमिका शुरू हो जाती है। मामला यहां भी स्ट्रीट लाइट्स का ही है। मगर सवाल इस बात का कि स्ट्रीट लाइट से संबंधित समस्याओं के समाधान के लिए सही नस अब तक नहीं पकड़ी जा रही थी, पर अब उस पर सुधार होगा ऐसा अवश्यमभावी है।
खबर से पहले यह थी खबर की समीक्षा और अब आप खबर पढ़ने के बाद खुद ही समझ जाएंगे कि यह भूमिका क्यों बनाई गई थी आखिर एक इतने छोटे से विषय के लिए।
- यहां खबर यानि समस्या
नगर निकायों में लगातार स्ट्रीट लाईटें खराब होने की शिकायत प्राप्त होने पर आयुक्त दीपक रावत ने कहा कि नगर निकाय के कार्मिक उन्ही स्ट्रीट लाईटों को ठीक करने की कार्यवाही करते हैं जिन स्ट्रीट लाइटों में खराब होने की शिकायत प्राप्त होती है। उन्होंने कहा नगर निकाय में काफी खराब स्ट्रीट लाईटों को नहीं देखा जाता है, जिनकी शिकायत नहीं आती है। उन्होंने कहा कि नगर निकाय का यह दायित्व है कि अपने क्षेत्र के अन्तर्गत जितनी भी स्ट्रीट लाईटें हैं, प्रत्येक स्ट्रीट लाईट का नियमित चैकिंग कर खराब स्ट्रीट लाईटों को समय से ठीक करना सुनिश्चित करें।
- यह रहा समाधान
आयुक्त श्री रावत ने मण्डल के सभी जिलाधिकारियों को आदेशित किया है कि जनपदों में अपने स्तर से प्रत्येक नगर निकाय को आदेशित कर नगर निकायों में लगाई गई स्ट्रीट लाईटों के निरीक्षण हेतु नगर निकाय कार्मिकों को दायित्व सौपें, और प्रतिदिन प्रत्येक स्ट्रीट लाईट का निरीक्षण कर खराब स्ट्रीट लाईट को ठीक करना सुनिश्चित करें तथा स्ट्रीट लाईट के नियमित चैकिंग हेतु समीक्षा भी करना सुनिश्चित करें।

