राष्ट्रीय
प्रसिद्ध लेखिका हेमा उनियाल लिखित केदारखंड, मानसखण्ड और जौनसार-बावर महत्वपूर्ण दस्तावेज, ई-बुक में भी सामने
हेमा उनियाल साहित्य जगत का एक चिर- परिचित नाम है। उत्तराखंड नैनीताल की सुरम्य वादियों में जन्मी (सन 1963),वहीं से शिक्षा, दीक्षा प्राप्त और कालांतर में “हिमालय पुत्री” जैसे अलंकारिक नाम से विभूषित हेमा उनियाल ने 20- 22 वर्षों के अथक परिश्रम,शोध,लेखन,संपादन और अनेक यात्राओं के उपरांत स्वतंत्र रूप से केदारखण्ड,मानसखण्ड और जौनसार – बावर जैसे अनुपम, वृहद शोध पूर्ण ग्रंथ लिखकर साहित्य जगत में अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है। उन्होंने इन तीनों पुस्तकों को ई- बुक फॉर्म में लाने का भी महत्वपूर्ण कार्य किया है।
हेमा उनियाल ने उत्तराखंड के सम्पूर्ण तेरह जनपदों में स्थित प्रसिद्ध धार्मिक,ऐतिहासिक,पुरातात्विक स्थलों का स्वयं भ्रमण कर स्वतंत्र रूप से यह कार्य किया जिसमें उत्तराखंड के विभिन्न प्रसिद्ध स्थलों की फोटोग्राफी, छायांकन के माध्यम से भी उनका संकलन किया गया। उनके इस कार्य को देखते हुए प्रसिद्ध समीक्षकों द्वारा उनके लिखे ऐतिहासिक ग्रथों को 21वीं सदी के केदारखण्ड, मानसखण्ड की संज्ञा दी गई और उन्हें इस तरह का कार्य करने वाली “भारत की पहली महिला” करार दिया गया। हेमा उनियाल का कार्य क्षेत्र व्यापक रहा है। डॉक्यूमेंट्री फिल्म निर्माण ,निर्देशन ,आलेखन के माध्यम से भी उनका कार्य रहा,जिसे खूब सराहना मिली।
उनकी शिक्षा कुमाऊं विश्वविद्यालय ,नैनीताल से एम. ए. अर्थशास्त्र (सन 1984)और भातखंडे संगीत विद्यापीठ लखनऊ से संगीत विशारद ( गायन) रही है। आगे चलकर मंच संचालन, राष्ट्रीय कवि सम्मेलन में सहभागिता,संस्कृत अकादमी ,दिल्ली में संगीत विषयक निर्णायक भूमिका में संलग्न, हिन्दी निदेशालय भारत सरकार के शोध पत्रों ( थिसेस) में “विषय विशेषज्ञ” के रूप में भी कार्य किया। संगीत में रुचि और विधिवत संगीत विशारद होने से आकाशवाणी दिल्ली से मान्यताप्राप्त गायिका रही साथ ही विभिन्न पत्र- पत्रिकाओं,स्मारिकाओं में उनके लेख भी प्रकाशित होते रहे हैं।
भारतीय वायुसेना में पति के सेवाकाल में वह “अफवा”( एयर फोर्स वाइफ वेलफेयर एसोसिएशन) केंद्र की निर्वाचित सदस्या (सन 1992- 1996) रहीं जिसके अंतर्गत कई सामाजिक कार्यों से जुड़ी रही। तत्कालीन राष्ट्रपति श्री शंकर दयाल शर्मा जी की धर्मपत्नी श्रीमती विमला शर्मा द्वारा सम्मानित भी हुईं। वर्तमान में हेमा उनियाल अपने अन्य शोध पूर्ण कार्यों के साथ ही “उत्तराखंड सरकार पर्यटन विभाग” के अंतर्गत चल रहे “मानसखण्ड मंदिर माला मिशन” के अंतर्गत “विषय विशेषज्ञ ” के रूप में नामांकित हैं साथ ही सांस्कृतिक,धार्मिक दृष्टि से भारत- नेपाल के आपसी संबंधों पर आधारित अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन नेपाल में भाग ले चुकी हैं और वर्तमान में भी इस कार्य में संलग्न हैं।
- सम्मान
- विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान,इलाहाबाद द्वारा “मैथलीशरण गुप्त सम्मान” ( फरवरी 2006),”
- विद्या वाचस्पति सम्मान”( मानद डॉक्टरेट,सन 2014)अहिल्याबाई होल्कर सेवा सम्मान ( देहरादून)।
- चंद्र कुंवर बर्तवाल साहित्य सेवा श्री सम्मान , गाजियाबाद
- हिंदी अकादमी दिल्ली द्वारा साहित्यिक कृति सम्मान।
- अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर गौरा देवी सम्मान(दिल्ली DPMI)
- राष्ट्रीय उत्तराखंड सभा , पटियाला द्वारा मां नंदा शक्ति सम्मान।
- भारत संस्कृत परिषद्,(दिल्ली)द्वारा संस्कृत विद्वत सम्मान।
- पारंपरिक लोक संस्था “परंपरा” (नैनीताल) आदि द्वारा , व अनेक संस्था- संस्थानों द्वारा सम्मानित हो चुकी हैं।
- हेमा उनियाल की कलम से
देवतात्मा हिमालय की गोद में बसा उत्तराखंड राज्य 53,484 वर्ग कि.मी क्षेत्रफल में फैला दो मंडलों कुमाऊँ एवं गढ़वाल में बंटा हुआ है जिसके अंतर्गत 13 जनपद विस्तार लिए हुए हैं। पुरातन में केदारखंड नाम जिसे आज ‘गढ़वाल’ कहा जाता है और मानसखंड जो आज ‘कुमाऊँ’ नाम से जाना जाता है । इस सम्पूर्ण उत्तराखंड क्षेत्र का सन 2005 से 2014 के बीच किया गया शोध मेरे द्वारा लिखित ‘केदारखंड’ एवं ‘मानसखंड’ में विस्तार से दिया गया है जो नूतन,मौलिक एवं यात्रा प्रधान है और उत्तराखंड को व्यापक रूप से जानने-समझने की इच्छा रखने वालों के लिए विशेष महत्वपूर्ण है। इन पुस्तकों में पौराणिक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, भौगोलिक, धार्मिक, पुरातात्विक, नदी-तालाबों,प्राचीन मार्गों, क्षेत्र के प्रसिद्ध संत-महात्माओं,अनेक पर्यटक एवं तीर्थस्थलों का सचित्र विवरण दिया गया है।
‘केदारखंड’ पुस्तक बड़े आकार में 314 फोटॉग्राफस के साथ 552 पेजों में है वहीं ‘मानसखंड’ भी उसी साइज़ में 512 पेजों में 367 फोटॉग्राफस के साथ प्रकाशित है।जौनसार- बावर जो जनपद देहरादून से लगा जनजातीय क्षेत्र है यह पुस्तक 2018 में प्रकाशित ,280 पृष्ठों में 323 फोटॉग्राफस के साथ प्रकाशित हुई है। विशेष शोध एवं यात्रा प्रधान कार्यों के उपरान्त जब मेरे द्वारा लिखे गए दो वृहद ग्रंथ “केदारखण्ड” एवं “मानसखंड” समाज के सम्मुख आये तो हिमालय क्षेत्र उत्तराखंड के कुछ प्रमुख विद्वानों ने इन ग्रंथों एवं सम्पूर्ण कार्य को ऐतिहासिक कार्य बताते हुए अपने समीक्षात्मक विचार इस प्रकार प्रस्तुत किये—लोक संस्कृति संग्रहालय गीताधाम(भीमताल) के संस्थापक एवं प्रसिद्ध पुराविद एवं तत्वज्ञानी डॉ यशोधर मठपाल( पद्मश्री )के अनुसार–“अंततः जो कार्य उत्तराखंड राज्य के संस्कृति,पुरातत्त्व व पर्यटन विभाग,दो विश्वविद्यालय,साधन व अधिकार सम्पन्न प्रशासन,नाना विद्वान मंडलियाँ,अखाड़े,साधु समाज और सहस्रों स्वयं सेवी संस्थाएँ नहीं कर पाए वह एक जीवट महिला( संदर्भ :हेमा उनियाल) ने कर दिखाया।”
शिक्षाविद एवं प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ हरिदत्त भट्ट शैलेश (मसूरी) के अनुसार–“सद्य प्रकाशित केदारखण्ड उत्तराखंड की महिमामयी जानी-मानी लेखिका हेमा उनियाल की एक अनूठी कृति है।हेमा जी भारत की क्या,दुनियाँ की ऐसी एकमात्र महिला हैं जिन्होंने पूरे उत्तराखंड के सारे जनपदों के समस्त मंदिरों की परिक्रमा की है।सभी मठों,धामों,तीर्थ स्थानों,पर्यटन स्थलों,ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक क्षेत्रों की यात्राएँ कीं…। हेमा उनियाल ने वास्तव में इस दिशा में अपना एक नया कीर्तिमान स्थापित किया है।”केंद्रीय हिन्दी निदेशालय के पूर्व निदेशक एवं शिक्षाविद डॉ गंगा प्रसाद विमल के अनुसार–” विदुषी लेखिका ने दोनों खण्डों (संदर्भ में केदारखण्ड एवं मानसखंड) में अनेकानेक तीर्थों का सचित्र विवरण देकर सूचना संग्राहकों की झोली में एक अनिवार्य सी सामग्री प्रस्तुत की है….।लेखिका ने सिर्फ मंदिरों,देवालयों ,मूर्तियों का उल्लेख नहीं किया,उनके साथ-साथ अन्य दृष्टियों से भी उत्खनन किया है जो समूची मानवजाति के लिए अर्थवान है।”शिक्षाविद एवं साहित्यकार प्रो.डी डी शर्मा (पद्मश्री )के अनुसार “धार्मिक एवं सांस्कृतिक महत्व का वैदिक साहित्य ,महाभारत एवं पुराणों में गुणगान किया गया है।उसका लेखिका ने अपने इस ग्रंथ (संदर्भ में केदारखण्ड) में विस्तृत एवं प्रामाणिक विवरण देकर,उसे चित्रों के माध्यम से दृश्यमान रूप में प्रस्तुत करने का महनीय प्रयास किया है।क्षेत्र विशेष से संबद्ध जिन विवरणों का केवल कल्पनात्मक रूप में ही अनुमान लगाया जा सकता था उन्हें एक विशाल चित्रपट की भाँति प्रस्तुत करके जीवन्त रूप में प्रस्तुत कर दिया है।……किसी आराम कुर्सी पर बैठकर लिखने वाले लेखक का यह काम नहीं था।अस्तु लेखिका इस अभूतपूर्व प्रयास के लिए निःसंदेह बधाई की पात्र हैं।”