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कुछ अलग: सेना में रहते मौत के बाद भी अग्निवीर की अंत्येष्टि सैन्य सम्मान के साथ नहीं…आखिर क्यों, जानिए वजह
नई दिल्ली। किसी भी सैनिक की अगर सेना में सर्विस के दौरान मौत हो जाए तो उसकी अंत्येष्टि पूरे सैन्य सम्मान के साथ की जाती है। बकायदा इसके लिए सेना और स्थानीय प्रशासन के लोग मौके पर पहुंचकर शहीद को पूरा सम्मान देते हैं। मगर देश के एक अग्निवीर के साथ ऐसा नहीं हुआ और उनकी अंत्येष्टि सैन्य सम्मान के साथ नहीं की गई। ऐसा क्यों किया गया। दरअसल सेना में हर मामले में तमाम खास नियम हैं। सैन्य सम्मान के साथ भी एक ऐसा ही विषय जुड़ा है जिसमें अगर इस परिस्थिति में सैनिक की मौत होती है तो उसे सैन्य सम्मान अंत्येष्टि के दौरान नहीं दिया जाएगा। ऐसा ही वाकया यहां सैनिक के साथ हुआ।
दरअसल अग्निवीर अमृतपाल सिंह ने संतरी ड्यूटी के दौरान खुद को गोली मारकर आत्महत्या कर ली थी। सेना ने बताया कि अमृतपाल सिंह का अंतिम संस्कार सैन्य सम्मान के साथ नहीं किया गया क्योंकि खुद को पहुंचाई गई चोट से होने वाली मौत के मामले में ऐसा सम्मान नहीं दिया जाता है।
सेना ने इस बात पर जोर दिया कि वह सैनिकों के बीच इस आधार पर भेदभाव नहीं करती कि वे ‘अग्निपथ योजनाÓ के कार्यान्यवन से पहले या बाद में सेना में शामिल हुए थ।. ऐसे आरोप थे कि सिंह के अंतिम संस्कार में सैन्य सम्मान नहीं दिया गया क्योंकि वह एक अग्निवीर सैनिक थे।
सेना के नगरोटा मुख्यालय स्थित व्हाइट नाइट कोर ने शनिवार कहा कि सिंह ने राजौरी सेक्टर में संतरी ड्यूटी के दौरान खुद को गोली मारकर आत्महत्या कर ली थी। बयान में सेना ने कहा कि सिंह की दुर्भाग्यपूर्ण मौत से संबंधित तथ्यों की कुछ ‘गलतफ हमी और गलत बयानीÓ हुई है।
सेना ने साथ ही बताया कि मौजूदा प्रथा के अनुरूप सैनिक के पार्थिव शरीर को चिकित्सीय-कानूनी प्रक्रियाओं के संचालन के बाद, सेना की व्यवस्था के तहत एक एस्कॉटज़् पाटीज़् के साथ अंतिम संस्कार के लिए उनके मूल स्थान पर ले जाया गया. बयान में कहा गया है, ‘सशस्त्र बल उन सैनिकों के बीच अंतर नहीं करते हैं जो अग्निपथ योजना के कायाज़्न्वयन से पहले या बाद में हकदार लाभ और प्रोटोकॉल के संबंध में शामिल हुए थे.Ó
भारतीय सेना ने आगे इस बात पर जोर दिया कि आत्महत्या या खुद को लगी चोट से होने वाली मौत की दुभाज़्ग्यपूणज़् घटनाओं, प्रवेश के प्रकार की परवाह किए बिना, सशस्त्र बलों द्वारा परिवार के साथ गहरी और स्थायी सहानुभूति के साथ-साथ उचित सम्मान दिया जाता है. हालांकि, ऐसे मामले वषज़् 1967 के सेना आदेश के अनुसार सैन्य अंत्येष्टि के हकदार नहीं हैं.
