Connect with us
रक्षाबंधन का पवित्र पर्व हर साल श्रावण शुक्ला पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस बार कई लोग इस कन्फ्यूजन में हैं कि राखी 30 अगस्त को बांधी जाए या 31 को। क्यों है यह कन्फ्यूजन और क्या है राखी बांधने का सही समय आइए जानते हैं आचार्य कृष्णदत्त शर्मा से।

धर्म-संस्कृति

Raksha Bandhan Kab Hai: इसलिए भद्राकाल में नहीं बांधी जाती राखी, जानें राखी बांधने का सही समय और शुभ मुहूर्त

खबर शेयर करें -

रक्षाबंधन पर राखी कब बांधी जाएगी, इसको लेकर हर साल की तरह इस साल भी भारी असमंजस की स्थिति बनी हुई है। कुछ लोगों का मानना है कि रक्षाबंधन को 30 अगस्‍त को मनाया जाएगा तो कुछ कह रहे हैं कि रक्षाबंधन 31 अगस्‍त को मनाया जाएगा। दरअसल इस साल भी रक्षाबंधन पर भद्रा का साया है और इसी वजह से असमंजस की स्थिति उत्‍पन्‍न हुई है। आइए आपको बताते हैं कि राखी बांधने का शुभ महुर्त क्‍या है।

रक्षाबंधन का शुभ मुहूर्त :

इस वर्ष कई पंचांगों में रक्षाबंधन 30 अगस्त बुधवार को रात्रि 9 बजकर 5 मिनट के बाद लिखा है, जो सैद्धांतिक दृष्टि से ठीक हो सकता है, मगर व्यावहारिक दृष्टि से बिल्कुल ठीक नहीं। इसलिए 31 अगस्त सन् 2023 ई. गुरुवार को प्रातः 9 बजे श्रवण पूजन के उपरांत सायंकाल 5 बजे तक रक्षाबंधन राज-समाज के लिए कल्याणकारी सिद्ध होगा।

भद्राकाल में क्यों नहीं बांधी जाती राखी

रक्षाबंधन में अपराह्न व्यापिनी पूर्णिमा तिथि आवश्यक है। इसमें भद्रा वर्जित है। पुराणों में विष्टि करण (भद्रा) को सूर्य की पुत्री और शनि की बहन बताया गया है। सभी प्रकार के शुभ कार्यों में भद्रा का होना अशुभ माना जाता है। भविष्योत्तर पुराण के इस श्‍लोक में भद्रा के बारे में बताया गया है।

भद्रायां द्वैन कर्त्तव्ये श्रावणी फाल्गुनी तथा।
श्रावणी नृपतिहान्ति, ग्राममं दहति फाल्गुनी

भद्रा में रक्षाबंधन से राजा का अनिष्ठ और होलिका दहन से प्रजा का अहित होता है। रक्षाबंधन के दिन भाई-बहन को सुबह स्नान करके देवता, पितृ और ऋषियों का स्मरण करना चाहिए। उसके बाद रक्षासूत्र भाई की कलाई पर बांधना चाहिए। रक्षासूत्र बांधते समय निम्नलिखित मन्त्रोच्चारण करना आवश्यक है।

।। येन बद्धो बली राजा दान वेन्द्र। महाबला।।
।। तेन त्वामनु बघ्नामि रक्षो मा चल मा चलः।।

जब इंद्राणी ने तैयार किया था देवराज के लिए रक्षा सूत्र

रक्षा बंधन के संदर्भ में एक कथा प्रचलित है। प्राचीन काल में एक बार बारह वर्षों तक देवासुर-संग्राम होता रहा, जिसमें देवताओं का पराभव हुआ और असुरों ने स्वर्ग पर आधिपत्य कर लिया। दुखी, पराजित और चिंतित देवराज इंद्र अपने गुरु बृहस्पति के पास गए और कहने लगे कि इस समय न तो मैं यहां सुरक्षित हूं और ना ही यहां से कहीं निकल ही सकता हूं। ऐसी दशा में मेरा युद्ध करना ही अनिवार्य है, जबकि अब तक के युद्ध में हमारी पराजय ही हुई है। इस वार्तालाप को इंद्राणी भी सुन रही थीं। उन्होंने कहा कि कल श्रावण शुक्ल पूर्णिमा है। मैं विधानपूर्वक रक्षासूत्र तैयार करूंगी। आप स्वस्ति वाचन पूर्वक ब्राह्मणों से बंधवा लीजिएगा। इससे आप अवश्य विजयी होंगे। दूसरे दिन इंद्र ने रक्षा-विधान और स्वास्ति वाचन पूर्वक रक्षाबंधन करवाया। इसके बाद एरावत हाथी पर चढ़कर जब इंद्र रणक्षेत्र में पहुंचे तो असुर ऐसे भयभीत होकर भागे जैसे काल के भय से प्रजा भागती है। रक्षा विधान के प्रभाव से इंद्र की विजय हुई। तब से यह पर्व मनाया जाने लगा। इस दिन बहनें मंगल विधान कर अपने भाइयों की कलाई पर रक्षा सूत्र (राखी) बांधती हैं।

श्रवण पूजा और रक्षा सूत्र

श्रावण शुक्ल पूर्णिमा को ही पितृभक्त बालक श्रवण कुमार रात्रि के समय अपने अंधे माता-पिता के लिए जल लेने गया। वहीं कहीं मृग के शिकार की ताक में चक्रवर्ती राजा दशरथ जी छिपे हुए थे। उन्होंने जल के घड़े के शब्द को पशु का शब्द समझकर शब्द भेदी बाण छोड़ दिया, जिससे श्रवण की मृत्यु हो गई। श्रवण की मृत्यु का समाचार सुनकर श्रवण के नेत्रहीन माता-पिता विलाप करने लगे। तब दशरथ जी ने अज्ञानता में हुए अपराध की क्षमा याचना करके श्रावणी के दिन सर्वत्र श्रवण पूजा का प्रचार किया। उसी दिन से संपूर्ण सनातनी श्रवण पूजा करते हैं और सर्वप्रथम रक्षा सूत्र उसी को अर्पण करते हैं।

Continue Reading

संपादक - कस्तूरी न्यूज़

More in धर्म-संस्कृति

Recent Posts

Facebook

Trending Posts

You cannot copy content of this page