Connect with us

बिजनेस

खलबली: 4 जून दूर पर पीएम मोदी के बयान से शेयर बाजार में अंगड़ाई, तो गारंटी पक्की इसलिए बाजार में ऊंचाई के तूफ़ान का संकेत, ध्यान दें शेयर कारोबारी

खबर शेयर करें -

देश में जारी लोकसभा चुनाव अंतिम चरण में पहुंच गए हैं। 4 जून को नतीजे आएंगे। शेयर बाजार पर इन नतीजों का क्या असर पड़ेगा इसे लेकर भी अटकलें जारी हैं। राजनीतिक दलों के आरोप-प्रत्यारोपों के बीच प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दावा किया है कि भारतीय जनता पार्टी रिकॉर्ड तीसरी बार सरकार बनाने की राह पर है। इसके साथ ही उन्होंने शेयर बाजार को लेकर भी बड़ा दावा किया। उन्होंने कहा है कि भाजपा की जीत से देश के शेयर बाजार में भी रिकॉर्ड छलांग दिखेगी। पीएम मोदी ने कहा, “मैं विश्वास के साथ कह सकता हूं कि 4 जून को भाजपा के रिकॉर्ड आंकड़े छूने के साथ ही शेयर बाजार भी नई रिकॉर्ड ऊंचाई को छू जाएगा।”

पिछले पांच वर्षों में सेंसेक्स 35,696.19 अंकों यानी 89.88% मजबूत होकर 75,410.39 अंकों पर पहुंच गया है। वहीं निफ्टी 11,034.30 अंक यानी 92.55% उछलकर 22,957.10 पर पहुंच गया है। बीते दिनों भारतीय बाजार ने पांच ट्रिलियन डॉलर के मार्केट कैप की उपलब्धि हासिल कर ली। बाजार पहले ही ऑल टाइम हाई पर है। ऐसे में पीएम मोदी का दावा बहुत मायने रखता है।

आम चुनावों के परिणामों की बारीकी से निगरानी करते हैं निवेशकभारत में आम चुनाव शेयर बाजार के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण हैं। यह देश के राजनीतिक परिदृश्य को आकार देते हैं। लोकसभा चुनाव भारत के शासन और नीतिगत निर्णयों की दिशा निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। शेयर बाजार और देश की अर्थव्यवस्था पर आम चुनावों का महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। चुनाव के बाद बनने वाली नई सरकार नियामक नियमों, मौद्रिक नीतियों, राजकोषीय नीतियों, सरकारी खर्च आदि पर निर्णय लेती है, ये निर्णय देश की दशा और दिशा तय करते हैं। इन फैसलों का कारोबार पर और शेयर बाजार पर स्पष्ट प्रभाव पड़ता है। शेयर बाजार के निवेशक चुनावी प्रक्रिया और उसके परिणामों की बारीकी से निगरानी करते हैं। इसलिए, देश की राजनीति और शेयर बाजार के बीच के प्रदर्शन के बीच संबंधों को समझना जरूरी और साथ ही दिलचस्प भी है।

2019 में भाजपा सरकार के इस फैसले ने तय की बाजार की चाल2019 के आम चुनावों में भाजपा की अगुवाई में एनडीए ने निर्णायक जीत हासिल की थी। चुनाव के बाद सितंबर 2019 में सरकार ने कॉरपोरेट टैक्स की दरें घटाने का निर्णय लिया। घरेलू कंपनियों के लिए कर की दर पहले के 30% से घटाकर 22% कर दिया गया। नई विनिर्माण कंपनियों के लिए यह दर 25% से घटाकर 15% कर दी गई थी। सरकार की ओर से कॉरपोरेट टैक्स दरों को कम करने के इस निर्णय ने कारोबार जगत और शेयर बाजार के लिए संजीवनी का काम किया। इसका बाजार पर तत्काल प्रभाव पड़ा सेंसेक्स और निफ्टी ने उस दौरान नई ऊंचाइयों की ओर छलांग मारी। सरकार के इस फैसले के बाद अलग-अलग सेक्टर के शेयरों में मजबूती आई। विशेष रूप से विनिर्माण, बुनियादी ढांचे और बैंकिंग क्षेत्र क्षेत्रों के शेयरों ने इस फैसले से बढ़त हासिल की थी। सेंसेक्स और निफ्टी पिछले पांच वर्षों में लगभग 90% तक उछले हैं।2008 में यूपीए सरकार के इस फैसले का बाजार को मिला लाभ2019 से एक दशक पहले भी कुछ ऐसा ही हुआ था तब केंद्र में यूपीए की सरकार थी।

2008 में वैश्विक वित्तीय संकट के बाद सरकार ने घरेलू मांग को प्रोत्साहित करने के लिए राजकोषीय प्रोत्साहन पैकेज की घोषणा की थी। प्रोत्साहन पैकेज के हिस्से के रूप में, सरकार ने बुनियादी ढांचा परियोजनाओं पर खर्च बढ़ाने, कुछ उद्योगों के लिए कर कटौती और व्यवसायों के लिए बढ़ी हुई ऋण उपलब्धता की शुरुआत की थी। इस राजकोषीय प्रोत्साहन पैकेज के एलान के बाद सेंसेक्स और निफ्टी में उछाल दिखा था। 2009 के आम चुनावों के बाद बाजार में सकारात्मक माहौल बना था।आम चुनावों और शेयर बाजार पर इसके असर का रहा है इतिहासवर्षों से, भारत में आम चुनाव शेयर बाजार में बढ़ती अस्थिरता से जुड़े रहे हैं।

ऐतिहासिक आंकड़े बताते हैँ कि चुनावी मौसम में शेयर बाजार में उतार-चढ़ाव बढ़ जाता है। यह उतार-चढ़ाव इस बार के चुनाव में भी दिख रहा है। बाजार का यह उतार-चढ़ाव उन हफ्तों के दौरान उफान पर होता है जब मतदान हो रहे होते हैं। चुनाव परिणामों की अनिश्चितता के कारण निवेशकों की जो प्रतिक्रिया आती है, वह बाजार पर असर डालती है।बीते कुछ आम चुनावों के उदाहरणों से जानिए चुनामी मौसम और परिणाम बाजार पर क्या प्रभाव डालतें हैं?

2009 का आम चुनाव2009 के आम चुनावों के बाद 12000 से 17000 तक पहुंचा सेंसेक्स2009 के आम चुनाव भारत में 16 अप्रैल से 13 मई के बीच हुए थे। इस अवधि के दौरान, निफ्टी और सेंसेक्स में सामन्य से अधिक उतार-चढ़ाव दिखा था। 16 अप्रैल 2009 को सेंसेक्स लगभग 11,732 अंकों पर बंद हुआ और चुनाव अवधि के दौरान इसमें उतार-चढ़ाव होता रहा। 13 मई, 2009 को जब चुनाव समाप्त हुए सेंसेक्स लगभग 12,173 अंक पर था। इस आम चुनावों से पहले, जनवरी 2009 और अप्रैल 2009 के बीच सेंसेक्स 9000 के स्तर के आसपास कारोबार करता दिखा था।मतदान के दौरान और बाद में क्या हुआ?जैसे-जैसे मतदान आगे बढ़ा, अप्रैल और मई के बीच बाजार में एक छोटी बढ़त दिखी। धीरे-धीरे सेंसेक्स 12,000 के स्तर को पार कर गया। जैसे ही चुनाव समाप्त हुए और 16-मई 2009 को परिणाम घोषित किए गए, सेंसेक्स ने बेड़ियों को तोड़ते हुए उड़ान भरी दिया।

वर्ष 2010 के अंत तक यह बढ़कर 17,800 पर पहुंच गया। यहां ध्यान देना जरूरी है कि यह अवधि (2009 से 2010) वित्तीय संकट के बाद का समय था और सेंसेक्स अपने निचले स्तर से आगे निकलने की कोशिश कर रहा था। चुनावों के बाद यह बेंचमार्क इंडेक्स 12,000 से 17,000 (40% ऊपर) की छलांग लगाने में सफल रहा।2014 के लोकसभा चुनावपीएम मोदी ने शपथ ली और सेंसेक्स पहली बार 25000 के पार पहुंचाजनवरी 2014 की शुरुआत में सेंसेक्स 21,140 अंकों के आसपास था। जनवरी और मार्च के बीच, सेंसेक्स में मामूली उतार-चढ़ाव दिखा, लेकिन अपेक्षाकृत यह स्थिर रहा। आम चुनावों से पहले निवेशक सर्तकता बरतते हुए नजर आ रहे थे। मार्च 2014 के अंत तक, सेंसेक्स लगभग 22,386 अंकों तक पहुंच गया था। बाजार पर संभावित परिणाम और आर्थिक सुधारों की अपेक्षाओं से जुड़ा आशावाद हावी। निवेशकों को लगने लगा था कि नई सरकार और नए आर्थिक सुधार अब दूर नहीं। अप्रैल 2014 (चुनाव पूर्व अवधि) में, जैसे-जैसे चुनाव की तारीखें नजदीक आईं, सेंसेक्स में अस्थिरता बढ़ गई। मतदान शुरू होने से पहले सेंसेक्स औसतन 21,700 के स्तर पर बना रहा, हालांकि रुझान सकारात्मक बने रहे।

मतदान के दौरान और बाद में क्या हुआ?

मतदान के दौरान (अप्रैल और मई) 7 अप्रैल से 12 मई के बीच, देश भर में चुनाव के विभिन्न चरणों के दौरान बाजार में उतार-चढ़ाव दिखा। 7 अप्रैल 2014 को सेंसेक्स लगभग 22,343 अंक कारोबार करता दिखा। इस अवधि के दौरान बाजार की चाल पर मतदान के आंकड़ों और राजनीतिक घटनाक्रमों पर निवेशकों की प्रतिक्रियाओं का असर पड़ा। मतदान के अंतिम दिन 12 मई, 2014 तक सेंसेक्स बढ़कर 23,551 अंक तक पहुंच गया। 2014 के आम चुनावों के परिणाम 16 मई 2014 को घोषित किए गए। इसमे भाजपा ने पहली बार बहुमत और निर्णायक जीत हासिल की। 16 मई को सेंसेक्स रिकॉर्ड 1,470 अंक उछलकर करीब 24,121 अंक पर बंद हुआ था। शुरुआती उछाल के बाद, सेंसेक्स ने आर्थिक सुधारों और व्यापार समर्थक नीतियों की उम्मीदों से प्रेरित होकर मजबूत प्रदर्शन जारी रखा। सेंसेक्स ने पहली बार 26 मई 2014 को 25,000 का आंकड़ा पार किया। यह वहीं दिन था जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहली बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी। सेंसेक्स ने आने वाले महीनों में अपनी छलांग जारी रखी। यह 28 नवंबर 2014 को 28,822 अंक के सर्वकालिक उच्च स्तर (उस समय तक) पर पहुंच गया था। इस उछाल को मजबूत एफआईआई प्रवाह और सकारात्मक आर्थिक आंकड़ों से समर्थन मिला।

अब बात 2019 के यानी पिछले आम चुनावों की2019 में चुनावों के बाद पहली बार 40,000 पार पहुंचा, फिर फिसला सेंसेक्सजनवरी 2019 की शुरुआत में सेंसेक्स 36,068 अंकों के आसपास था। जनवरी और फरवरी के दौरान, बाजार में हल्का उतार-चढ़ाव दिखा। इस दौरान बाजार घरेलू और वैश्विक आर्थिक कारकों से प्रभावित दिखा। ये चिंताएं आर्थिक विकास की धीमी गति और व्यापारिक तनाव से जुड़ी थीं। फरवरी 2019 के अंत तक सेंसेक्स बढ़कर 36,063 अंक पर पहुंच गया। यह यह साफ हो गया था कि चुनाव से पहले निवेशक फिर सर्तकता बरतने लगे थे। उसके बाद मार्च महीने में सेंसेक्स ने रफ्तार पकड़नी शुरू की। एक स्थिर सरकार आने की उम्मीदें पुख्ता होने लगी थीं। बालाकोट हवाई हमला 26 फरवरी 2019 को हुआ था। उसके बाद 29 मार्च 2019 को सेंसेक्स लगभग 38,673 अंकों पर बंद हुआ। यह चुनाव से पहले एक मजबूत रैली थी। अप्रैल की शुरुआत में भी सेंसेक्स में तेजी का सिलसिला जारी रहा। 1 अप्रैल 2019 को सेंसेक्स करीब 38,871 प्वाइंट्स पर करोबार करता दिखा। 10 अप्रैल तक वोटिंग शुरू होने से ठीक पहले सेंसेक्स करीब 38,585 अंक पर पहुंच गया।मतदान के दौरान और बाद में क्या हुआ?मतदान की अवधि में (अप्रैल-मई महीने में) सेंसेक्स में बड़ा उतार-चढ़ाव दिखा। 11 अप्रैल 2019 को वोटिंग के पहले दिन सेंसेक्स 38,607 के आसपास कारोबार कर रहा था। सेंसेक्स ने मतदान अवधि के दौरान विभिन्न जनमत सर्वेक्षणों और राजनीतिक घटनाक्रमों के बीच कुछ उतार-चढ़ाव के बावजूद लचीलापन दिखाया। 17 मई 2019 तक यानी चुनाव नतीजों से ठीक पहले सेंसेक्स करीब 37,930 अंक पर बंद हुआ। चुनाव परिणाम 23 मई, 2019 को घोषित किए गए। चुनाव परिणामों ने एक बार फिर भाजपा और एनडीए की निर्णायक जीत की पुष्टि की। चुनाव परिणाम के दिन 23 मई को सेंसेक्स 623 अंकों की तेजी के साथ करीब 38,989 अंकों पर बंद हुआ। चुनाव परिणाम के बाद जून 2019 में सेंसेक्स ने पहली बार 40,000 का आंकड़ा छुआ। इस शुरुआती उछाल के बाद, सेंसेक्स में कुछ उतार-चढ़ाव दिखा। अक्टूबर 2019 में सेंसेक्स गिरकर 34,500 के स्तर पर आ गया। यह गिरावट धीमी जीडीपी, आईएलएंडएफएस के पतन, राजकोषीय घाटे की चिंताओं, चीन और अमेरिका के बीच व्यापारिक तनाव और बैंकों के बढ़ते एनपीए के कारण आई। उसके बाद अक्टूबर और दिसंबर 2019 के बीच बाजार को मजबूती मिलनी शुरू हुई। दिसंबर 2019 में सेंसेक्स 41,600 के स्तर के अपने नए उच्चतम स्तर तक पहुंचा।

आम चुनावों के दौरान बाजार पर कौन से कारक प्रभाव डालते हैं?

राजनीतिक स्थिरता: शेयर बाजार में राजनीतिक स्थिरता एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। जब कोई सरकार स्थिर होती है, तो निवेशक अधिक आत्मविश्वास महसूस करते हैं। उनका मानते हैं कि नीतियां लगातार बनी रहेंगी। उदाहरण के लिए, भारत में 2014 के आम चुनावों के बाद, भाजपा के मजबूत जनादेश ने राजनीतिक स्थिरता की भावना पैदा की। इससे सेंसेक्स एक साल के भीतर 25% से अधिक बढ़ गया। इसके विपरीत, राजनीतिक अस्थिरता अनिश्चितता पैदा करती है। निवेशकों को अचानक नीतिगत बदलाव का डर सताए तो गिरावट की आशंका बढ़ती है। उदाहरण के लिए, 2004 के चुनावों के दौरान, कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व वाले गठबंधन की अप्रत्याशित जीत के कारण सेंसेक्स एक ही दिन में लगभग 12% गिर गया। यह गिरावट चुनावों के अप्रत्याशित परिणाम के कारण थी।आर्थिक नीतियां: नई सरकार की आर्थिक नीतियां शेयर बाजार को काफी प्रभावित कर सकती हैं। निवेशक व्यापार समर्थक नीतियों की उम्मीद में रहते हैं। जब वे कर कटौती या प्रोत्साहन की उम्मीद करते हैं, तो वे अधिक स्टॉक खरीदते हैं। दूसरी ओर, अगर सरकार उच्च टैक्स या प्रतिबंधात्मक नियमों पर संकेत देती है, तो निवेशक बिकवाली कर सकते हैं। ऐसा 2009 में हुआ था जब उच्च करों के डर से बाजार में उतार-चढ़ाव दिखा था, उस दौरान कांग्रेसनीत यूपीए गठबंधन चुनाव जीत गई थी। 2019 में भाजपा की अगुवाई वाली एनडीए सरकार ने करों में कटौती और बुनियादी ढांचे पर खर्च बढ़ाने का वादा किया था। इस पर बाजार ने सकारात्मक प्रतिक्रिया दी। चुनाव नतीजों के अगले दिन सेंसेक्स में करीब 1,000 अंकों की तेजी आई।

मार्केट सेंटीमेंट: बाजार की धारणा बाजार के प्रति निवेशकों के समग्र दृष्टिकोण को प्रभावित करती है। चुनाव के दौरान, भावना बेतहाशा स्तर से बाजार में उछाल गिरावट दिख सकती है। सकारात्मक भावना तब होती है जब निवेशकों का मानते हैं कि जीतने वाली पार्टी अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देगी। बाजार में नकारात्मक भावना तब पैदा होती है जब निवेशक राजनीतिक अस्थिरता या प्रतिकूल नीतियों पर चिंता जाहिर करते हैं। 2004 में जब आश्चर्यजनक चुनाव परिणाम आए (निवेशकों को उम्मीद थी कि तत्कालीन एनडीए सत्ता में वापसी करेगी) तो घबराहट में निवेशकों ने बिकवाली की। ऐसे में नए निवेशकों के लिए बाजार की धारणा को समझना महत्वपूर्ण है। अमर उजाला साभार

Continue Reading

संपादक - कस्तूरी न्यूज़

Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

More in बिजनेस

Recent Posts

Facebook

Trending Posts

You cannot copy content of this page