उत्तराखण्ड
लोकसभा की हार, नहीं जा रही रार !!! वरिष्ठ नेता हरीश रावत वरिष्ठों के चुनाव लड़ने से इंकार की बात पर विरोधियों पर आक्रामक, चुन चुनकर टारगेट कर हरीश उवाच…
हाल ही में उत्तराखंड में पांचो लोकसभा सीटों पर हुए चुनाव में कांग्रेस को एक भी सीट नसीब नहीं हो पाई। कांग्रेस में टिकट बंटवारी से पूर्व कार्यकर्ताओं का यह कहना था कि वरिष्ठ नेताओं को लोकसभा चुनाव में खुद उतरना चाहिए। मगर ऐसा नहीं हुआ और पांचो ही सीटों पर अपेक्षाकृत कम अनुभवी नेताओं को कांग्रेस ने टिकट थमा दिया। वरिष्ठ नेता हरीश रावत, प्रीतम सिंह और यशपाल आर्य से चुनाव लड़े जाने की बात कही जा रही थी। मगर तीनों ही नेताओं ने लोकसभा चुनाव लड़ने से साफ इनकार कर दिया था। चावन के नतीजे आए तो कांग्रेस चारों नहीं बल्कि पांचों खाने चित्त थी।
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अब इस हार के बाद कांग्रेसियों में रार मचना स्वाभाविक था। पहले से ही गुटों में बाटी कांग्रेस में अंदरूनी कलह इस हार के बाद खुलकर सामने आने लगी। खासकर हरीश रावत विरोधी एक खेमा इस बात को प्रचारित करने में लग गया कि वरिष्ठ कांग्रेसियों के चुनाव न लड़ने की वजह से ही कांग्रेस कार्यकर्ता हतोत्साहित हुए और उन्हें जीत नहीं मिल पाई।
अब पिछले दिनों केंद्रीय द्वारा भेजे गए पर्यवेक्षक पीएल पुनिया हर की समीक्षा और फैक्ट फाइंडिंग कमेटी के रूप में उत्तराखंड पहुंचे थे। उनकी दिल्ली वापसी होने के बाद समाचार पत्रों में यह बात फिर से प्रचारित की गई कि कांग्रेस की वरिष्ठ नेताओं के चुनाव लड़ने के इनकार का सीधा असर कार्यकर्ताओं के मनोबल पर पड़ा और पूरे उत्तराखंड में कांग्रेस बिखर गई। यहां से कांग्रेस की वरिष्ठ नेता और उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत मोर्चा संभालते आगे आए। अपनी फेसबुक वॉल पर इस बात की चर्चा करते हुए हरीश रावत ने कहा कि चुनाव नहीं लड़ना लड़ना वरिष्ठों का हार की असली वजह नहीं है। उन्होंने अपनी फेसबुक वॉल पर एक लंबा चौड़ा लेख लिखा देखिए हरीश रावत के इस मुद्दे पर विचार और उनके आक्रामक रवैया….
हरीश उवाच….
#मंगलौर और श्री #बद्रीनाथ के उपचुनाव के बाद कांग्रेस में एकजुटता का वातावरण बना। अब समाचार पत्रों में सिलेक्टिव लिक आ रही है कि फैक्ट फाइंडिंग कमेटी को यह कहा गया कि #चुनाव में हारने का कारण वरिष्ठ नेताओं का चुनाव न लड़ना है। दूसरा कारण यह छपाया गया है कि पार्टी ने कमजोर उम्मीदवार खड़े किये और पीएससी के सुझावों को नहीं माना अन्यथा चुनाव के परिणाम सुखद होते। कांग्रेस का प्रत्येक छोटा बड़ा नेता अपने सुझाव देने देहरादून आया और कांग्रेस नेता पीएल पुनिया ने प्रत्येक दिन 8-8, 9-9 घंटे लगातार उन्हें सुना, इस सिलेक्टिव लिक विशेषज्ञ द्वारा इस तथ्य को प्रमुखता से नहीं छपवाया गया। वरिष्ठ नेताओं को कार्यकर्ताओं की नजर में गिराने से क्या पार्टी को लाभ होगा? मैं जानता हूं एक तथाकथित कमजोर कैंडिडेट हार के साथ ही ग्राम कांग्रेस के गठन में जुट गए हैं। कांग्रेस के पांचों उम्मीदवारों ने दुर्घर्ष से संघर्ष किया जिसके लिए उनकी प्रशंसा की जानी चाहिए थी। वरिष्ठ नेताओं के पास चुनाव न लड़ने के कुछ कारण होंगे, क्या उन्हें भी इसी प्रकार लिक का सहारा लेना चाहिए? जिस समय हम सब केदारनाथ बाबा का आशीर्वाद लेकर चुनावी विजय के लिए कमर कस रहे हैं, पार्टी के आंतरिक सुझावों को इस प्रकार सार्वजनिक करना उचित नहीं है।
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