राष्ट्रीय
संघ मामले में तमिलनाडु सरकार को सुप्रीम झटका…यह निर्णय दिया उच्चतम न्यायालय ने
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट से तमिलनाडु में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) को बड़ी राहत मिली है। कोर्ट ने आरएसएस को रूट मार्च निकालने की इजाजत देते हुए मद्रास हाईकोर्ट के इजाजत देने के फैसला को बरकरार रखा है। इस निर्णय को तमिलनाडु सरकार के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है। २७ मार्च को रूट मार्च निकालने की इजाजत देने वाले मद्रास हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ तमिलनाडु सरकार की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा था. सुप्रीम कोर्ट को तय करना था कि क्रस्स् रूट मार्च की इजाजत दी जाए या नहीं।
न्यायमूर्ति वी रामसुब्रमण्यम और न्यायमूर्ति पंकज मित्तल की पीठ के समक्ष राज्य सरकार के वकील मुकुल रोहतगी ने दलील दी थी कि मार्च निकालने का पूरी तरह अधिकार नहीं हो सकता, ठीक जिस तरह ऐसे मार्च निकालने पर पूरी तरह प्रतिबंध नहीं हो सकता. इसके बाद पीठ ने फैसला सुरक्षित रखा. सुनवाई के दौरान रोहतगी ने कहा था, क्या कोई संगठन जहां चाहे, वहां मार्च निकालने का अधिकार निहित रख सकता है. राज्य सरकार ने आरएसएस को कुछ मार्ग विशेष पर मार्च निकालने की अनुमति दी है, वहीं उसे अन्य क्षेत्रों में इस तरह के आयोजन बंद जगहों पर करने का निर्देश दिया गया है. सार्वजनिक व्यवस्था और अमन-चैन बनाये रखने के लिए यह किया गया.ÓÓ
आरएसएस की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता महेश जेठमलानी ने कहा था कि अनुच्छेद 19 (1)(बी) के तहत बिना हथियारों के शांतिपूर्ण तरीके से एकत्रित होने के अधिकार को बिना किसी बहुत मजबूत आधार के रोका नहीं जा सकता. उन्होंने इस आधार पर कुछ क्षेत्रों में आरएसएस को मार्च निकालने पर सरकार की रोक पर सवाल खड़ा किया था कि हाल में पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया पर भी पर पाबंदी लगाई गयी. जेठमलानी ने कहा, च्च्जहां ये माचज़् निकाले गये, उन क्षेत्रों से हिंसा की एक भी घटना सामने नहीं आई.ÓÓ उन्होंने कहा था कि जहां आरएसएस के स्वयंसेवक शांतिपूर्ण तरीके से बैठे थे, वहां उन पर हमला हुआ.
उन्होंने कहा, तथ्य यह है कि एक प्रतिबंधित, आतंकवादी समूह ने संगठन के सदस्यों पर हमला जारी रखा और कोई दंडनीय कारज़्वाई नहीं की गयी जो गंभीर चिंता का विषय है.
यह शर्मनाक है, खासकर तब जब राज्य सरकार को पीएफआई और सहयोगी संगठनों पर और भी सख्ती से नकेल कसनी चाहिए. लेकिन, या तो वे इसे नियंत्रित नहीं कर सकते, या वे इसे नियंत्रित नहीं करना चाहते, क्योंकि उनकी सहानुभूति पीएफआई के साथ है.ÓÓ आरएसएस की ओर से ही वरिष्ठ अधिवक्ता मेनका गुरुस्वामी ने दलील दी थी कि किसी संगठन के शांतिपूणज़् तरीके से जमा होने और माचज़् निकालने के अधिकार को तब तक रोका नहीं जा सकता, जब तक टकराव बढऩे के मजबूत कारण नहीं हों. पीठ ने दलीलों पर सुनवाई के बाद कहा कि वह राज्य सरकार की याचिका पर आदेश सुनाएगी.
उच्चतम न्यायालय ने 17 माचज़् को मद्रास उच्च न्यायालय के निदेज़्श को चुनौती देने वाली तमिलनाडु सरकार की याचिका पर सुनवाई टाल दी थी. तब न्यायालय को बताया गया था कि राज्य सरकार ने पिछले साल 22 सितंबर के मूल आदेश को चुनौती दी है, जिसमें तमिलनाडु पुलिस को आरएसएस के अभ्यावेदन पर विचार करने और बिना किसी शर्त के कार्यक्रम आयोजित करने देने का निर्देश दिया गया था. गत तीन मार्च को तमिलनाडु सरकार ने न्यायालय में कहा था कि वह पांच मार्च को राज्य भर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रस्तावित रूट मार्च और जनसभाओं की अनुमति देने के पूरी तरह खिलाफ नहीं है, हालांकि राज्य सरकार ने खुफिया रिपोर्ट का हवाला देते हुए यह भी कहा कि यह कायज़्क्रम प्रदेश के हर गली, नुक्कड़ में आयोजित करने नहीं दिया जा सकता.
