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दैशिक-शास्त्र का ऐतिहासिक महत्व रेखांकित किया गया धर्म संसद में
हल्द्वानी। शीशमहल कैलाश द्वार में आयोजित धर्म संसद में लिए गए महत्वपूर्ण संकल्पशीश महल कैलाश द्वार में आयोजित धर्म संसद में समाज, धर्म, और युवाओं के सशक्तिकरण के लिए कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए। इस धर्म संसद में लक्ष्य 2047: संपूर्ण स्वतंत्रता परिणिति राम राज्य का संकल्प एक स्वर में पारित किया गया। इस संकल्प का आधार दैशिक-शास्त्र होगा, जिसे भारतीय समाज और संस्कृति के उत्थान का पथप्रदर्शक माना गया है।
दैशिक-शास्त्र का ऐतिहासिक महत्व भी इस सभा में रेखांकित किया गया। यह ग्रंथ 1921 में काकड़ीघाट में क्रांतिकारी श्री बद्रीसाह ठुलघरिया द्वारा लिखा गया, जो नीम करौली बाबा के गुरु सोमवारी महाराज के मार्गदर्शन और बाल गंगाधर तिलक के निवेदन पर तैयार हुआ। इस ग्रंथ का प्रकाशन पुणे से किया गया था और इसे भारतीय आध्यात्मिक और सामाजिक पुनर्जागरण का प्रमुख स्तंभ माना जाता है।प्रयागराज कुंभ में भी धर्म और समाज के सशक्तिकरण के लिए विचार-विमर्श जारी है। उत्तराखंड के आध्यात्मिक जागरण को गति देने के लिए 2026 में आयोजित होने वाली नंदा रात जात यात्रा और कैलाश द्वार (रानीबाग) में हर वर्ष आयोजित होने वाली कत्यूरी जागर यात्रा में सभी जनपदों की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करने पर विशेष जोर दिया गया।
इस धर्म संसद में निम्नलिखित प्रस्ताव पारित किए गए:1. मंदिरों की सक्रियता बढ़ाने हेतु सामूहिक हनुमान पाठ और मंगल मिलन का आयोजनमंदिर को सामाजिक और आध्यात्मिक गतिविधियों का केंद्र बनाते हुए सामूहिक हनुमान पाठ और मंगल मिलन का नियमित आयोजन किया जाएगा।
2. अभावग्रस्त हिंदुओं के स्वावलंबन हेतु कार्यसमाज के आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को स्वावलंबी बनाने के लिए प्रभावी कार्ययोजनाएं तैयार की जाएंगी।
3. राष्ट्रीय भावना की रक्षाकिसी भी प्रकार की अ-राष्ट्रीय गतिविधियों से सतर्क रहते हुए समाज में राष्ट्रभक्ति और चेतना का प्रसार किया जाएगा।
4. वार्षिक राम कथा और धर्म सभा का आयोजनवर्ष में कम से कम एक बार राम कथा और धर्म सभा का आयोजन सुनिश्चित किया जाएगा, जिससे समाज में धार्मिक और नैतिक मूल्यों का विस्तार हो।
5. युवाओं के स्वावलंबन और समाज के सशक्तिकरण पर जोरसभी सामाजिक और धार्मिक संगठन मंदिर को केंद्र मानकर युवाओं के स्वावलंबन, समाज के संगठन, और सशक्तिकरण के लिए कार्य करेंगे। यह प्रयास रामराज्य की परिकल्पना को साकार करने में सहायक होगा।यह संकल्प मंदिरों की भूमिका को केवल पूजा स्थलों तक सीमित न रखते हुए, उन्हें समाज सुधार और सशक्तिकरण का केंद्र बनाने की दिशा में एक ठोस पहल है।