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राजनीति

बिग बिग ब्रेकिंग: हरियाणा में नेतृत्व परिवर्तन, नायब सिंह सैनी होंगे राज्य के नए मुख्यमंत्री

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मंगलवार को हरियाणा में भारतीय जनता पार्टी की सरकार में बहुत बड़ा उलटफेर होते हुए केंद्र ने नेतृत्व परिवर्तन कर दिया है। मनोहर लाल खट्टर की जगह अब नायब सिंह सैनी को हरियाणा का नया मुख्यमंत्री बनाया गया है जो कि ओबीसी समुदाय से आते हैं। हरियाणा में 5 साल पुराना भाजपा जजपा गठबंधन टूटने के बाद यह परिवर्तन हुआ है।

हरियाणा में पांच साल पुराना भाजपा जजपा गठबंधन टूट गया है। मंगलवार को दिन चढ़ते ही प्रदेश में राजनीतिक गतिविधियां शुरू हुईं जो दोपहर होते होते एक सियासी भूचाल में बदल गई। भाजपा विधायक दल की बैठक के बाद मनोहर लाल ने पूरी कैबिनेट के साथ इस्तीफा दे दिया। कुरुक्षेत्र से सांसद नायब सिंह सैनी हरियाणा के नए सीएम चुन लिए गए हैं। भाजपा विधायक दल की बैठक में उनके नाम पर मुहर लगी।

ओबीसी समुदाय के बड़े नेताओं में शामिल सैनी मनोहर लाल के करीबी हैं।

नायब सैनी 25 जनवरी 1970 को अंबाला के गांव मिर्जापुर माजरा में सैनी परिवार में जन्मे थे। वे बीए और एलएलबी हैं। सैनी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े हैं। सैनी ओबीसी समुदाय से आते हैं। उन्हें संगठन में काम करने का लंबा अनुभवहै। उनके इस्तीफा के बाद कयास लगाए जा रहे हैं कि पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर अब लोकसभा का चुनाव लड़ेंगे।

हरियाणा में हुई बड़ी ‘सियासी सर्जरी’ से भारतीय जनता पार्टी ने एक साथ कई निशाने साध लिए हैं। नायब सिंह सैनी को सीएम बना कर पिछड़ों को साधने की कोशिश की है। जिससे हरियाणा में सियासी समीकरण एकदम से बदल गए हैं, जिसके बाद वहां मुकाबला जाट बनाम जाट हो जाएगा। गुजरात की तर्ज पर सजाई गई सियासी चौसर से भाजपा नेतृत्व को न सिर्फ लोकसभा, बल्कि उसके बाद होने वाले विधानसभा चुनावों की भी तस्वीर नजर आने लगी है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि भारतीय जनता पार्टी की ओर से उठाए गए इस सियासी कदम का पार्टी को बड़ा माइलेज मिलने वाला है। दरअसल हरियाणा में उठाए गए सियासी कदम की आहट राजनीतिक गलियारों पहले से ही हो रही थी। वहीं इस बड़ी सियासी उठापटक में जजपा के लिए बड़ी चुनौतियां सामने आ गई हैं।

हालांकि कांग्रेस इसे एक सोची समझी सियासी रणनीति बता रही है। वहीं राजनीतिक जानकारों का यह भी मानना है कि भाजपा और जजपा का समझौता टूटना दोनों पार्टियों के लिए सुखद है। दोनों दलों का वोट बैंक अलग है। वहीं अब चुनाव से ठीक पहले जजपा सभी सीटों पर चुनाव लड़ेगी और ज्यादा संभावना है कि जाट वोट में सेंध लगाएगी, जिसका खामियाजा कांग्रेस को झेलना पड़ सकता है।

हरियाणा में जजपा की ओर से सीटें मांगे जाने के बाद यहां की सियासत गर्म हो गई। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि इस सियासी उठापटक में भारतीय जनता पार्टी के रणनीतिकारों ने दूर की सियासत को नजर में रखते हुए बड़े फैसले लेने की योजना बनाई है। इसके चलते सबसे पहले कैबिनेट का इस्तीफा देकर दोबारा मंत्रिमंडल की शपथ लेने की तैयारी की गई है। राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार अरविंद धीमान कहते हैं कि हरियाणा की पूरी सियासी उठापटक को अगर देखा जाए उसके कई मायने मुख्य रूप से सामने आए हैं। पहले यह कि भारतीय जनता पार्टी ने लोकसभा चुनावों और विधानसभा चुनावों के नजरिए से बड़ा सियासी दांव खेला है। धीमान कहते हैं कि भारतीय जनता पार्टी ने एंटी इनकंबेंसी जैसी जो भी परिस्थितियां बन रही थीं, उन्हें एक तरह से तोड़ने का यह बड़ा सियासी दांव चला है। उनका मानना है कि अगर पूरी कैबिनेट, जिसमें मुख्यमंत्री के चेहरे तक को बदला जाता है, तो भारतीय जनता पार्टी को बड़े स्तर पर सियासी फायदा होने का अनुमान लगाया जा रहा है।

सियासी जानकारों का मानना है कि जिस तरह से गुजरात में विधानसभा चुनावों से ठीक पहले मुख्यमंत्री से लेकर पूरी कैबिनेट को बदल दिया था। कुछ उसी तर्ज पर हरियाणा में भी राजनीति की चौसर बिछाई गई है। बस इस सियासी चौसर में बड़ी चाल के तौर पर जजपा को बाहर कर दिया गया है। राजनीतिक विश्लेषक धीमान कहते हैं कि इस पूरी सियासी उठापटक में भारतीय जनता पार्टी जहां खुद को राजनीतिक तौर पर चार कदम आगे मानकर चल रही है। वहीं जजपा के लिए यह घटनाक्रम किसी बड़ी चुनौती से कम भी नहीं है।सियासी जानकार बताते हैं कि दुष्यंत चौटालाा के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि वह पहले अपने विधायकों को बचाएं और उससे निकलने वाले संदेश को न सिर्फ लोकसभा, बल्कि उसके कुछ महीने बाद होने वाले विधानसभा चुनावों में भी जाने से रोकें। राजनीतिक विश्लेषक प्रवीण शर्मा कहते हैं कि लोकसभा और विधानसभा चुनावों से ठीक पहले जजपा की पूरी सियासी गणित को भारतीय जनता पार्टी ने फिलहाल बिगाड़ दिया है। शर्मा मानते हैं कि जजपा को अलग कर भारतीय जनता पार्टी ने हरियाणा में जातिगत समीकरणों के लिहाज से भी अपनी सभी चालें दुरुस्त की हैं। कहा यही जा रहा है कि हरियाणा की सियासत में जाटों के बड़े वोट बैंक की आपस में ही सेंधमारी होगी, जिसका फायदा भारतीय जनता पार्टी को गैर जाट बिरादरी के वोट बैंक के तौर पर मिलना तय माना जा रहा है।

राजनीतिक जानकार बताते हैं कि भारतीय जनता पार्टी ने जिस तरीके से जजपा को अलग किया है, उससे पार्टी को फायदा होता हुआ नजर आ रहा है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि बीते कुछ समय में जिस तरह से जजपा के विधायक क्षेत्र से लेकर विधानसभा तक में अपनी पार्टी के विरोध में माहौल बना रहे थे, उसी का फायदा भारतीय जनता पार्टी को इस बड़ी सियासी सर्जरी को करने में मिला है। राजनीतिक विश्लेषक प्रवीण शर्मा के साथ मुताबिक इस वक्त जो सियासी चर्चा है, वह यही है कि जजपा के कई विधायक अपनी पार्टी के साथ नहीं हैं। ऐसे में जब लोकसभा के चुनाव सिर पर हैं, तो किसी भी पार्टी के लिए विधायकों का टूटना या उनका विरोध में आना सियासी दल के लिए सबसे बड़ी चुनौती हो जाता है।गठबंधन टूटने पर कांग्रेस सांसद दीपेंद्र हुड्डा ने कहा कि कैबिनेट के इस्तीफा देने का पूरा नाटक तैयार किया गया है। वह कहते हैं कि उन्होंने तीन महीने पहले ही बता दिया था कि भाजपा-जजपा में समझौता तोड़ने की अघोषित सहमति बन गई है। इस बार भाजपा के इशारे पर जजपा और इनेलो कांग्रेस की वोट में सेंध मारने के लिए फिर से जनता के बीच जायेंगे.।

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संपादक - कस्तूरी न्यूज़

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