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आज मार्गशीर्ष मास की उत्पन्ना एकादशी है और इस दिन खान-पान को लेकर कुछ बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए। एकादशी पर जो सबसे वर्जित काम है वो चावल का सेवन करना। आइए जानते हैं आखिर एकादशी पर चावल खाने कि क्यों मनाही।

धर्म-संस्कृति

आखिर एकादशी के दिन चावल खाना क्यों है वर्जित? इसके पीछे जुड़ी है ये प्रचलित कथा

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यह मार्गशीर्ष मास का पवित्र महीना चल रहा है और आज कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि है। आज सभी वैष्णव भक्त एकादशी का व्रत पूर्ण विधि विधान से भगवान नारायण के प्रति रखते हैं। शास्त्रों में बताया गया है कि इस दिन फलाहार चीजों को खाना चाहिए और अन्न बिल्कुल नहीं ग्रहण करना चाहिए। जो लोग इस दिन व्रत नहीं भी रखते उनको भी आज के दिन एक जरूरी बात ध्यान में रखनी चाहिए।

दरअसल एकादशी के दिन चावल खाना विशेष रूप से वर्जित माना जाता है और जो लोग इस दिन चावल का सेवन करते हैं। वो लोग शास्त्रों के अनुसार नरकगामी कहलाए जाते हैं। हिंदू धर्म में कुछ चीजों के लिए बड़े सख्त नियम बताए गए हैं। उसमें से एक है एकादशी के दिन चावल खाना, मान्यता है कि जो लोग एकादशी के दिन चावल खाते हैं वह महापापी कहलाए जाते हैं और वैष्णव द्रोही का कलंक इनके सिर पर लगता है। आइए जानते हैं आखिर एकादशी के दिन चावल न खाने के पीछे क्या कारण है।

एकादशी के दिन महर्षि मेधा समा गईं थीं धरती में

पौराणिक कथा के अनुसार एक समय की बात है महर्षि मेधा ने देवी शक्ति के प्रकोप से स्वयं को बचाने के लिए अपनी योग शक्ति का प्रयोग किया और वह धरती के अंदर समा गईं। फिर उनका जन्म जौ और चावल के रूप में हुआ। मान्यता है की जिस दिन यह घटना हुई थी वह एकादशी का दिन था। ऐसा माना जाता है कि एकादशी के दिन जो लोग चावल खाते हैं उनकी तुलना महर्षि मेधा के अंग को खाने के समान माना जाता है और इस कारण एकादशी के दिन चावल खाना घोर पाप की श्रेणी में आता है।

नष्ट हो जाते हैं अर्जित किए हुए पुण्य

विष्णु पुराण समेत अन्य धर्म ग्रंथों में बताया गया है कि भगवान विष्णु  की सबसे प्रिय तिथि एकादशी होती है। इस दिन भगवान विष्णु को फलाहार व्रत रख कर उनका आशीर्वाद प्राप्त किया जा सकता है। वैसे तो भगवान विष्णु को जगत का पालनहार कहा जाता है। उनके निमित्त इस दिन व्रत रख कर पुण्य कमाया जा सकता है। लेकिन जो लोग इस दिन व्रत नहीं भी रखते हैं और चावल खाते हैं। उनके जन्म-जन्मांतर के संचित किए पुण्य मात्र एक चावल के अंश को खाने से क्षय हो जाते हैं और उन्हें इसका पाप भोगना पड़ता है।

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं। इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। कस्तूरी न्यूज़ एक भी बात की सत्यता का प्रमाण नहीं देता है।)

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संपादक - कस्तूरी न्यूज़

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