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विश्व गौरेया दिवस: गौरेया कहां कितनी, किस हाल में, जल्द सच आएगा सामने

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देहरादून। भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्लूआइआइ) व बांबे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी (बीएनएचएस) ने राज्य में गौरैया की स्थिति को लेकर अध्ययन शुरू कर दिया है। इससे गौरेया की संख्या के बारे में सच सामने आएगा।

वन विभाग से वित्त पोषित तीन साल के इस प्रोजेक्ट के अंतर्गत प्रदेशभर में गहन सर्वे कराया जा रहा है। इससे यह पता चल सकेगा कि कहां इसकी संख्या कम है और कहां ज्यादा। साथ ही कारणों की पड़ताल में यह भी देखा जाएगा कि खेती में रासायनिक उर्वरकों व कीटनाशकों के उपयोग के कारण गौरैया पर कोई असर तो नहीं पड़ा है।

उत्तराखंड की पक्षी विविधता बेजोड़ है। देशभर में मिलने वाली पक्षियों की 1300 प्रजातियों में से आधे से अधिक यहां चिह्नित हैं। इसके बावजूद राज्य में गौरैया की संख्या में कमी देखी गई है। यद्यपि, इसे लेकर कोई बेसलाइन डाटा नहीं है, लेकिन पिछले वर्षों की संख्या के आधार पर ये अनुमान लगाया जा रहा है।

इस सबको देखते हुए वन विभाग ने प्रदेश में गौरैया की स्थिति को लेकर सर्वे कराने का निर्णय लिया। पिछले वर्ष इस संबंध में वन विभाग, डब्लूआइआइ व बीएनएचएस के मध्य समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर हुए। इससे पहले कि यह प्रोजेक्ट शुरू हो पाता, कोरोना संकट ने इसकी राह में बाधा खड़ी कर दी। अब इसे शुरू किया गया है।

प्रोजेक्ट से जुड़े डब्लूआइआइ के वैज्ञानिक डा सुरेश कुमार के अनुसार राजाजी टाइगर रिजर्व से लगे क्षेत्रों के अलावा रुद्रप्रयाग, बदरीनाथ के आसपास सर्वे शुरू कर दिया गया है। इसी तरह यह पूरे राज्य में होगा। इससे गौरैया को लेकर वास्तविक तस्वीर सामने आएगी। इसके साथ ही गौरैया को लेकर पारिस्थितिकीय अध्ययन भी किया जा रहा है, जिसमें देखा जाएगा कि उच्च शिखरीय व निचले क्षेत्रों में ये कब-कब और कितनी बार घोंसले बनाते हैं। साथ ही गौरैया के जैनेक्टिस पर भी अध्ययन होगा। कृषि क्षेत्र में रासायनिक उर्वरकों व कीटनाशकों के प्रयोग से गौरैया पर कोई असर पड़ा है या नहीं, इसके सैंपल भी लिए जाएंगे।

डा धनंजय मोहन (निदेशक, भारतीय वन्यजीव संस्थान) ने कहा कि गौरैया के संबंध में प्रदेशभर में विस्तृत अध्ययन किया जा रहा है। हर जिले के लिए सर्वे प्लान बनाया गया है। अध्ययन रिपोर्ट से गौरैया के संरक्षण को लेकर महत्वपूर्ण दिशा मिलेगी। सर्वे के दौरान जनसामान्य को इस पक्षी के संरक्षण के मद्देनजर जागरूक किया जाएगा।

गौरैया को लेकर शहरी क्षेत्रों में चिंता बढ़ रही तो गांवों में इसकी अच्छी-खासी संख्या सुकून देती है। गौरैया को लेकर लंबे समय से अध्ययन कर रहे देहरादून निवासी एसोसिएट प्रोफेसर कमलकांत जोशी के अध्ययन में यह बात सामने आई है। जोशी के मुताबिक देहरादून, हरिद्वार, रुड़की समेत अन्य शहरों में यह पक्षी काफी कम दिखाई पड़ रहा है।

शहरी क्षेत्रों में लगातार उगता सीमेंट-कंक्रीट का जंगल, घोंसले बनाने के लिए स्थान की कमी और भोजन की अनुपलब्धता इसकी मुख्य वजह है। इसके उलट ग्रामीण क्षेत्रों में गौरैया के लिए बेहतर वासस्थल है तो भोजन की कमी नहीं है। जोशी का कहना है कि गौरैया पारिस्थितिकी का महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसके संरक्षण के लिए प्रत्येक व्यक्ति को आगे आना होगा।

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संपादक - कस्तूरी न्यूज़

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