उत्तराखण्ड
UK Politics: कैसे मुख्यमंत्रियों के लिए सीट छोड़ते रहे विधायक? क्यों ND तिवारी फॉर्मूले पर चले CM धामी?
देहरादून. उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के लिए चंपावत के विधायक कैलाश गहतोड़ी ने सीट खाली की, तो कई तरह की चर्चाएं शुरू हो गईं और कुछ अटकलों पर विराम भी लग गया. धामी ने चंपावत से चुनाव लड़ने को सौभाग्य बता दिया, गहतोड़ी ने इसे मामूली त्याग कह दिया, तो कांग्रेस ने चंपावत में डटकर मुकाबला करने की बात भी कही, लेकिन कांग्रेस वास्तव में किसी विधायक के टूटने की चिंता से मुक्त हुई. अब सवाल यह है कि धामी ने चंपावत सीट बीजेपी विधायक से खाली करवाकर उत्तराखंड के सियासी इतिहास की किस धारा में जगह बनाई.
एक वाक्य में कहें तो धामी अपने पूर्ववर्ती मुख्यमंत्रियों बीसी खंडूरी और विजय बहुगुणा के रास्ते पर नहीं चले, बल्कि उन्होंने वह रास्ता चुना, जिस पर हरीश रावत चले थे और जिसकी शुरूआत नारायण दत्त तिवारी ने की थी. उत्तराखंड में पहले विधानसभा चुनाव के बाद जब 2002 में कांग्रेस ने सत्ता संभाली थी, तब तिवारी सीएम बनाए गए थे, लेकिन वह सांसद थे, विधायक नहीं. तब उन्हें विधानसभा चुनाव लड़ना था और इसके लिए कांग्रेस के तत्कालीन विधायक वायएस रावत ने तिवारी के लिए रामनगर सीट छोड़ी थी.
पहले भी एनडी तिवारी की विरासत हथियाने को लेकर कांग्रेस और भाजपा सुर्खियों में रह चुकी हैं.
इसके बाद, हरीश रावत ने भी यही फॉर्मूला इख्तियार किया था, जब बहुगुणा सरकार के बाद उन्हें मुख्यमंत्री बनाया गया था. तब धारचूला के विधायक हरीश धामी ने रावत के लिए अपनी सीट छोड़ी थी. इसके उलट दो बार ऐसा हुआ, जब मुख्यमंत्रियों के लिए विपक्षी दल के विधायक ने सीट छोड़ी.
जब मुख्यमंत्रियों पर लगे आरोप
2007 में भुवनचंद्र खंडूरी के लिए कांग्रेसी विधायक टीपीएस रावत ने धुमाकोट सीट से इस्तीफ़ा दिया था और इसी तरह 2012 में जब विजय बहुगुणा मुख्यमंत्री बने थे, तब सितारगंज के भाजपाई विधायक किरन मंडल ने अपनी सीट का त्याग किया था. हालांकि दोनों बार मुख्यमंत्रियों पर विधायकों को तोड़ने और सीट खरीदने बेचने के आरोप लगे थे. इस बार भी हालात कुछ ऐसे थे कि कांग्रेस की जान हलक में थी.
कांग्रेस ने क्यों ली राहत की सांस?
असल में, गुटबाज़ी और पदों को लेकर असंतोष के चलते कांग्रेस के भीतर कई विधायक नाराज़ थे. माना जा रहा था कि इन असंतुष्टों में से कोई भी भाजपा के पाले में जा सकता था और सीएम धामी के लिए सीट छोड़कर कांग्रेस को झटका दे सकता था, लेकिन धामी ने अपनी ही पार्टी के विधायक के चुनाव क्षेत्र से लड़ने का फैसला कर दलबदल की राजनीति को एक तरह से अंगूठा दिखाने का काम तो किया.
क्या एक संयोग और दोहराया जाएगा?
इधर, इस पूरे घटनाक्रम में एक और समानता दिख रही है. जब हरीश रावत के लिए हरीश धामी ने सीट छोड़ी थी, तब बदले में उन्हें वन विकास निगम की कुर्सी मिली थी. अब गहतोड़ी को भी सीट छोड़ने के एवज़ यह भूमिका मिलने की चर्चा है. गौरतलब है कि मुख्यमंत्री अगर विधायक नहीं है, तो उसे पद संभालने के भीतर विधानसभा का सदस्य बनना होता है. गहतोड़ी के इस्तीफे के बाद चंपावत सीट के लिए उपचुनाव की घोषणा पर अब सबकी नज़र है.

