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जो वहां रह रहे हैं वह भी इंसान हैं, अदालत निर्दयी नहीं हो सकती… रेलवे भूमि अतिक्रमण मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा, फिलहाल बेदखल नहीं होंगे 4000 घरों में रहने वाले 50000 लोग

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उत्तराखंड के हलद्वानी में रेलवे की जमीन पर अतिक्रमण के मामले में बुधवार को सुनवाई हुई. इस दौरान कोर्ट ने कहा,’ रेलवे ने अब तक कोई कार्रवाई नहीं की है. अगर आप लोगों को बेदखल करना चाहते हैं तो नोटिस जारी करें. जनहित याचिका के सहारे क्यों? इसका इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है.’

उत्तराखंड के हल्द्वानी के बनभूलपुरा में रेलवे की 29 एकड़ जमीन पर अवैध कब्जे के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अहम टिप्पणी की है. नैनीताल हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान SC ने कहा कि जो वहां रह रहे हैं वो भी इंसान हैं. वे दशकों से रह रहे हैं. अदालतें निर्दयी नहीं हो सकतीं. अदालतों को भी संतुलन बनाए रखने की जरूरत है. राज्य को भी कुछ करने की जरूरत है.

कोर्ट ने कहा,’रेलवे ने अब तक कोई कार्रवाई नहीं की है. अगर आप लोगों को बेदखल करना चाहते हैं तो नोटिस जारी करें. जनहित याचिका के सहारे क्यों? इसका इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है.’ वहीं, रेलवे की तरफ से कहा गया कि वे वहां वंदे भारत चलाना चाहते हैं. इसलिए प्लेटफॉर्म को बड़ा करने की जरूरत है.

दरअसल पिछले साल जनवरी में हल्द्वानी में नियोजित बेदखली अभियान से संबंधित मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अतिक्रमण हटाने पर रोक लगा दी थी. जस्टिस सूर्यकांत ने कहा था कि सबसे बड़ी बात यह है कि वे इंसान हैं, और वे दशकों से रह रहे हैं. अदालतें निर्दयी नहीं हो सकतीं. अदालतों को भी संतुलन बनाए रखने की जरूरत है और राज्य को भी कुछ करने की जरूरत है.

बेदखली के लिए जारी करें नोटिस

जस्टिस भुइयां ने कहा रेलवे ने अब तक कोई कार्रवाई नहीं की है. अगर आप लोगों को बेदखल करना चाहते हैं तो नोटिस जारी करें? जनहित याचिका के सहारे क्यों? इसके लिए जनहित याचिका का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम रेलवे की बात को समझ रहे हैं, लेकिन इसमें बैलेंस करने की जरूरत है. हम बस ये जानना चाहते हैं कि पुनर्वास को लेकर क्या योजना है?

रेलवे को जमीनों की जानकारी नहीं

रेलवे ने रिकॉर्ड पर कहा है कि उन्हें अपनी जमीनों के बारे में जानकारी नहीं है. आगे बढ़ने का एक रास्ता है. हमें आगे बढ़ने का रास्ता खोजना होगा. SC ने कहा की पुनर्वास के लिए विकल्प तलाशने की जरूरत है. जस्टिस सूर्यकांत ने कहा आप क्या कर रहे हैं? कुछ नहीं करने की वजह से हमें आपके कलेक्टरों को जिम्मेदार क्यों नहीं ठहराना चाहिए?

4 हजार से ज्यादा घर, 50 हजार लोग

कोर्ट ने कहा,’अगर आप (कलेक्टर्स) वह जमीन का हिस्सा चाहते हैं तो पहले हमें बताएं कि आपको कितनी जमीन चाहिए और फिर आप पुनर्वास कैसे करेंगे? फॉरेस्ट एरिया को छोड़ कर किसी दुसरे लैंड को लेकर विकल्प को तलाशने की जरूरत है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि इस मामले में जल्द कार्रवाई की जरूरत है. वहां पर 4365 घर हैं, जिनमें 50 हजार लोग रह रहे हैं.’

सालों से रह रहे हैं कई परिवार

‘कोर्ट ने कहा,’सुनवाई के दौरान हमें कुछ वीडियो और फोटो दिए गए हैं, जिनसे पता चलता है कि कई परिवार तो सालों से वहां रह रहे हैं.’ कोर्ट ने उत्तराखंड सरकार और केंद्र सरकार को कहा कि वो जमीन की पहचान करें, जहां लोगों को शिफ्ट किया जा सके. इस मामले में केंद्र सरकार को नीतिगत निर्णय लेना चाहिए. उत्तराखंड के चीफ सेक्रेटरी और केंद्र सरकार के संबंधित विभाग के अधिकारी पुनर्वास योजना को लेकर आपस में बैठक करें.’पुनर्वास में सबकी सहमति जरूरीकोर्ट ने निर्देश दिया कि ये पुनर्वास योजना ऐसी हो, जिसमें सब सहमत हों. जो परिवार प्रभावित है उनकी तुरंत पहचान होनी चाहिए. चार हफ्तों के भीतर इस योजना पर काम हो जाना चाहिए. हम पांच हफ्ते बाद 11 सितंबर को मामले की सुनवाई करेंगे.

कोर्ट से स्टे हटाने की मांग

सुनवाई के दौरान ASG ऐश्वर्या भाटी ने कहा,’2023 में सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी थी. अब हम उस स्टे को हटाने की मांग कर रहे हैं. इसकी वजह से रेलवे स्टेशन में बहुत नुकसान हुआ है. कोर्ट ने पूछा कि रेलवे की अतिक्रमित जमीन से दाईं ओर नदी और रेलवे लाइन है. मान लीजिए आपको रेलवे लाइन को बहाल करना है और खतरा आसन्न है, तो आप क्या प्रस्ताव दे रहे हैं?’

सुनवाई के बीच दिखाया Video

जब वरिष्ठ डिवीजन इंजीनियर ने कहा कि मानसून से पहले हमने एक योजना बनाई थी तो कोर्ट ने पूछा कि क्या इस रेलवे लाइन को दीवार बनाकर संरक्षित किया जा सकता है? वकील ने कोर्ट को बताया कि हम इसके लिए एक वीडियो दिखाना चाहेंगे. कोर्ट ने फिर पूछा कि यह रिटेनिंग वॉल है जो बह गई है? इस पर कोर्ट मे पेश इंजीनियर ने बताया कि यह मानसून से पहले की हैं. यह रेलवे लाइन शहर की तरफ शिफ्ट करनी पड़ेगी.पुनर्वास के लिए बनानी होगी योजनाASG ने कहा यह पहाड़ियों के शुरू होने से पहले का अंतिम स्टेशन है. वंदे भारत जैसी योजना की परिकल्पना की गई है. उस अतिक्रमण हटाए बिना हमारे पास जगह नहीं है. कोर्ट ने कहा कि हम उन लोगों की बात कर रहे हैं जो आज़ादी से पहले या बाद में दशकों से वहां रह रहे हैं. वरिष्ठ वकील कॉलिन गोंसाल्वेस ने कहा 2022 में ट्रैक पर पानी भर गया. रेलवे ने तुरंत कार्रवाई की और दीवार को बनाए रखना शुरू कर दिया. कोर्ट ने कहा राज्य को यह योजना बनानी होगी कि इन लोगों का पुनर्वास कैसे और कहां किया जाएगा

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संपादक - कस्तूरी न्यूज़

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