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सुप्रीम कोर्ट पहुंचा मामला, बैंकों में पड़ा चार हजार करोड़ आखिर किसका!
नई दिल्ली। निष्क्रिय या बंद अकाउंट में पड़े हजारों करोड़ रुपये उनके कानूनी हकदारों को दिलाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गई है। कहा गया है कि इन पैसों का उपयोग अलग-अलग नियामक कर रहे हैं और सही लोगों को इसका लाभ नहीं मिलता। इस पर शीर्ष अदालत ने सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।
जस्टिस अब्दुल नजीर और जस्टिस जेके माहेश्वरी की पीठ ने कहा कि यह एक बहुत महत्वपूर्ण मुद्दा है। याचिका में वित्त मंत्रालय, रिजर्व बैंक, कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय और सेबी को निर्देश देने की मांग की गई है। ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि यह पैसा शिक्षा और जागरूकता कोष (डीईएएफ), शिक्षा और सुरक्षा कोष (आईईपीएफ) और वरिष्ठ नागरिक कल्याण कोष के माध्यम से सरकार के स्वामित्व वाले फंड में स्थानांतरित हो जाए। वहां से लोगों का डेटा लेकर कानूनी वारिसों को इसे लौटा दिया जाए। याचिका सुचेता दलाल ने दायर की है।
याचिकाकर्ता ने कहा कि निष्क्रिय बैंक खातों से पैसा जो डीईएएफ को हस्तांतरित किया गया है, ये पैसा यूं ऐसी ही पड़ा रहता है क्योंकि मृत बैंक खाताधारकों के कानूनी उत्तराधिकारी और नामांकित व्यक्ति अक्सर मृतक के बैंक खातों के अस्तित्व से अनजान होते हैं। ऐसे मामलों में, बैंक ऐसे खातों के अस्तित्व के बारे में पता लगाने और उन्हें सूचित करने में विफल रहे हैं।
मृत निवेशकों की जानकारी जिनकी जमा, डिबेंचर, लाभांश, बीमा और डाकघर निधि आदि आईईपीएफ को हस्तांतरित की गई है, आईईपीएफ की वेबसाइट पर आसानी से उपलब्ध नहीं है। आईईपीएफ उन लोगों के नाम प्रकाशित करता है, जिनका पैसा आईईपीएफ वेबसाइट पर फंड में ट्रांसफर किया गया है, वेबसाइट देखते करते समय कई तकनीकी गड़बड़ियां सामने आती हैं।
परिणामस्वरूप, लोगों को अपना पैसा पाने के लिए बिचौलियों को शामिल करने के लिए मजबूर होना पड़ता है। इसके कारण, आईईपीएफ के पास पड़ी राशि 1999 में 400 करोड़ रुपये से शुरू हुई, और मार्च 2020 के अंत में 10 गुना बढ़कर 4,100 करोड़ रुपये हो गई है।

