उत्तराखण्ड
उत्तराखंड की सबसे हॉट सीट खटीमा पर भाजपा और कांग्रेस में है सीधा मुकाबला
खटीमा : उत्तराखंड की हॉट सीट बनी खटीमा पर हर मतदाता की नजर है। उसकी वजह साफ है कि यहां के विधायक पुष्कर सिंह धामी प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं। पिछले दो बार से लगातार यहां विजय ध्वजा लहरा रहे धामी क्या इस बार हैट्रिक मार पाएंगे इसको लेकर लोग तरह तरह के कयास लगा रहे हैं। स्थानीय स्तर पर हुए विकास कार्य जहां धामी की मजबूती का आधार बन रहे हैं तो विपक्षी दलों के प्रत्याशियों के लिए स्थानीय मुद्दों के साथ राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय मुद्दों का सहारा है। कुल मिलाकर यहां करीब आधा दर्जन प्रत्याशी मैदान में मुख्यमंत्री को घेरने की कोशिश कर रहे हैं, मगर सीधा मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच ही माना जा रहा है।
सीएम लगातार दो बार जीते चुनाव
वर्ष 2012 में भारतीय जनता पार्टी ने पुष्कर सिंह धामी को भाजपा का प्रत्याशी बनाया था। तब पहली बार उनका मुकाबला कांग्रेस के देवेंद्र चंद से हुआ था। धामी ने देवेंद्र चंद को 5394 वोटों से हराया था। लेकिन सरकार कांग्रेस की बनी। इसमें युवक कांग्रेस के युकां प्रदेशाध्यक्ष होने के नाते भुवन कापड़ी को मंडी समिति का अध्यक्ष बनाया गया। 2017 में जब फिर चुनाब हुआ तो कांग्रेस से भुवन कापड़ी प्रत्याशी बने और धामी ने इन्हें भी 2709 वोटों से पराजित किया।
सीएम के दावेदारी का मजबूत आधार
दो बार विधायक और छह माह पहले ही मुख्यमंत्री बने पुष्कर सिंह धामी ने खटीमा क्षेत्र में बहुतायत में रहने वाले थारू जनजाति समाज के बच्चों के लिए एकलव्य आवासीय विद्यालय खुलवाया है, पूर्व सैनिकों के लिए कैंटीन की स्थापना, खेल स्टेडियम, बस अड्डा, इंजीनियरिंग कालेज, केंद्रीय विद्यालय, शहीद स्मारक पार्क, पर्यटकों के लिए क्रोकोडाइल पार्क व जंगल सफारी व खटीमा का सुंदरीकरण आदि कार्य कराया है। यही धामी की मजबूती का आधार बन रहे हैं। अगर कमजोरी देखें तो यहां बरसात में जलभराव मुख्य समस्या है, जिसे विपक्ष मुद्दा बना रहा है।
कांग्रेस प्रत्यशी की मजबूती का आधार
कांग्रेस प्रत्यशी भुवन कापड़ी की मजबूती का आधार क्षेत्र में सघन संपर्क, मुख्यमंत्री से 2017 का चुनाव मात्र 2709 वोटों से हारना और कोरोनकाल में क्षेत्र के लोगों की की गई सेवा है। इसके अलावा मुस्लिम समाज व सिख समुदाय में भाजपा के प्रति जबरदस्त गुस्सा भी कापड़ी को मजबूत कर रहा है। आर्थिक स्थिति कमजोर होना, जनप्रतिनिधि न होने के कारण अभी कोई उल्लेखनीय विकास कार्य का न करा पाना आदि कमजोरियां हैं।
भगत दा और हरदा बनाते- बिगाड़ते हैं यहां के समीकरण
सीमांत क्षेत्र खटीमा में यूं तो भाजपा में पुष्कर सिंह धामी ही लोकप्रिय हैं। जब से वह मुख्यमंत्री बने हैं तब से तो वह प्रदेश में भी पार्टी का चेहरा बन गए हैं। अगर भाजपा में धामी के अलावा किसी दूसरे नेता के नाम का जिक्र आता है तो वह पूर्व मुख्यमंत्री व महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी हैं। कांग्रेस में कापड़ी का भी कुछ ऐसा ही आधार है। कापड़ी युवक कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष बनाए गए थे, तब उन्होंने अपनी मेहनत के दम पर युवक कांग्रेस में एक तरह से जान फूंक दी। उनकी इसी मेहनत का नतीजा है कि उन्हें पार्टी ने कार्यकारी अध्यक्ष बना दिया। आज वह खुद में सक्षम नेता हैं और अन्य सीटों पर भी प्रत्याशियों के पक्ष में प्रचार करने का काम कर रहे हैं। उनके अलावा यहां पूर्व मुख्यमंत्रि हरीश रावत की पकड़ मजबूत मानी जाती है।
दोनों दलों के प्रत्याशियों के मुद्दे अलग-अलग
मतदाताओं को जिन मुद्दों पर लुभाया जा रहा है। उनमें भाजपा और कांग्रेस दोनों के सुर इस चुनाव में अलग दिख रहे हैं। मुख्यमंत्री बनने के बाद पुष्कर सिंह धामी ने जो कार्य कराए हैं वह तो उन्हीं को आधार बनाकर सियासी रण में मतदाताओं को लुभा रहे हैं, मगर कांग्रेस अल्पसंख्यक समाज में असुरक्षा की भावना के अलावा जो काम अभी नहीं हो पाए हैं, उनके आधार पर भाजपा को घेरने का काम कर कर रही है। अब देखना यह है कि मतदाता किसे गले लगाते हैं।