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महानिदेशक का पत्रकारों के साथ सटीक कम्युनिकेशन… सूचनाओं के सही प्रसारण और पत्रकार वेलफेयर के सामंजस्य को तिवारी हैं जरूरी
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मनोज लोहनी, हल्द्वानी। अब तक दैनिक अखबारों में काम करते हुए कभी ऐसा मौका नहीं लगा कि सूचना विभाग से संबंधित अधिकारियों से ज्यादा मिलना जुलना रहा हो। दैनिक अखबारों की रिपोर्टिंग का सीधा सा अर्थ है फील्ड में अपनी खबरों से मतलब और उसके बाद उन खबरों का सही क्रियान्वयन वह भी सटीक और समयबद्ध तरीके से। लिहाजा मतलब केवल और केवल बीट रिपोर्टिंग से रहता रहा। जिला सूचना अधिकारियों से कभी मुखातिब हुए भी तो थोड़ा समय के लिए। फिर बात सूचना महानिदेशक की हो, तो ऐसा तो संभव ही नहीं हुआ कि कम से कम हल्द्वानी में रहते हुए कभी ऐसा मौका मिले कि सूचना महानिदेशक से मिला जाए।
इस बीच पिछले 5 वर्षों में पत्रकारिता का स्वरूप बहुत बदला और पत्रकारिता में जन्म हुआ एक डिजिटल युग का। लिहाजा हमने भी इस ओर कदम रखा और इस तरह से जन्म हुआ कस्तूरी न्यूज़ डिजिटल पोर्टल का जिसका की नाम सीधे-सीधे हमारे राज्य पशु कस्तूरी से प्रभावित था। फिर उत्तराखंड सरकार की पॉलिसी के तहत डिजिटल पोर्टल को सूचना विभाग ने इंपैंनल किया। लगभग डेढ़ वर्ष हुआ डिजिटल पोर्टल चलाते हुए तो जाहिर सी बात है इसे लेकर मन में कई सवाल अब भी हैं। इस बीच आज सुबह सूचना विभाग से मालूम हुआ कि सूचना महानिदेशक बंशीधर तिवारी हल्द्वानी में पत्रकारों से मिलेंगे… तो तय किया गया कि उनसे मुलाकात की जाए।
तो तय समय पर हल्द्वानी नैनीताल रोड स्थित मीडिया सेंटर में पहुंचना हुआ। क्योंकि सूचना का महानिदेशक भारतीय प्रशासनिक अधिकारी यानी आईएएस होता है जिनका अंतर विभागीय स्थानांतरण और यहां से वहां आना-जाना लगा रहता है। ऐसे में मन में सवाल था कि सूचना महानिदेशक पत्रकारों की बातों को कितनी गंभीरता से लेते हुए उनकी समस्याओं की तरफ और पत्रकारिता के बारे में कैसा संज्ञान रखते होंगे। पत्रकारों द्वारा बुके आदि दिए जाने और सामान्य शिष्टाचार की बात बातें शुरू हुई पत्रकार और पत्रकार हितों की। अब सूचना महानिदेशक को लेकर मन में जो सवाल और तमाम विचार थे, जैसा कि एक प्रशासनिक अधिकारी को लेकर होते हैं… हुआ ठीक इसके उलट। पत्रकारों की छोटी-छोटी समस्याओं के साथ ही बड़े विषयों को जिस गंभीरता से सुनकर सूचना महानिदेशक उसे बारे में बात कर रहे थे तो ऐसा लग रहा था कि जैसे कोई पत्रकार ही सामने बैठा हो। ऐसा व्यक्ति जिसे पत्रकार, पत्रकारिता और इस पेशे से जुड़े सारे सरकारों के बारे में पूरी गंभीरता से मालूम हो और उसका इंवॉल्वमेंट भी विषयों को लेकर उतना ही हो। यही सब दिखाई दिया सूचना महानिदेशक बंशीधर तिवारी के भीतर, इन सब बातों के ऊपर उनका सरल और सहज व्यक्तित्व भी सभी पत्रकारों को सहज रूप से अपनी बातें सामने रखने के लिए प्रेरित ही कर रहा था। मित्रवत भाव से सभी की बातों को सुनते हुए सूचना महानिदेशक बंशीधर तिवारी की कोशिश थी कि सभी विषयों का समाधान निकले। पत्रकार हितों के अलावा खुद पत्रकारों को लेकर वह कितने संवेदनशील हैं, यह बात इस बात से सामने आई कि हाल ही में स्वास्थ्य कारणों से दो युवा पत्रकारों की मृत्यु के बाद वह पत्रकारिता पैसे से जुड़े लोगों को लेकर काफी चिंतित भी दिखे। सूचना अधिकारी ज्योति सुंदरियाल से उन्होंने मौके पर ही यह कहा कि सभी पत्रकारों की स्वास्थ्य जांच भी कराई जानी चाहिए जिसके लिए स्वास्थ्य शिविर का आयोजन हो। यह विषय किसी पत्रकार ने नहीं बल्कि खुद सूचना महानिदेशक ने उठाया।
पत्रकार हितों को लेकर जितने भी मुद्दों पर बात हुई सूचना महानिदेशक ने सभी विषयों पर गंभीरता से कार्य करने की बात सामने रखी और खुद भी समस्याओं को लेकर वह काफी गंभीर थे। बात फिर चाहे तहसील स्तर पर पत्रकारों की मान्यता की हो या सोशल मीडिया गाइडलाइन जारी करने की बात हो या फिर पत्रकारों के लिए तमाम अन्य सुविधाओं का विषय, पत्रकारों को सारे सवालों के संतोषजनक जवाब मिले।
अब बात डिजिटल पोर्टल की। डिजिटल पोर्टल का सीधा सा मतलब है इंस्टाग्राम फेसबुक या किसी भी अन्य माध्यम से सूचनाओं को जनता के बीच पहुंचने से, यही काम इस वक्त समाचार पोर्टल भी कर रहे हैं। उत्तराखंड सरकार सोशल मीडिया रेगुलेशन एक्ट के तहत कार्य कर रही है, मगर एक बात साफ है कि डिजिटल पोर्टल चलाने वाले लोग पत्रकारों की श्रेणी में नहीं आते बल्कि यह ठीक वैसे ही है जैसे कि कोई आम आदमी फेसबुक लाइव के माध्यम से सूचनाओं को जनता तक पहुंचा रहा हो और अगर उसकी व्यूवरशिप अच्छी है तो वह भी सूचनाओं के लिए एक पत्रकार जैसा ही माध्यम है। मगर, यहां पर एक बात साफ है कि कोई भी आम आदमी जो सोशल मीडिया इनफ्लुएंसर है वह पत्रकार नहीं हो सकता और न ही कोई पैसा पत्रकार जिसने पहले पत्रकारिता की हो और अब वह डिजिटल पोर्टल चला रहा है, वह भी सोशल मीडिया इनफ्लुएंसर की ही भूमिका में होगा न कि पत्रकार की। यानी कि न्यूज़ चैनल और समाचार पत्रों के इतर किसी भी माध्यम से मीडिया से जुड़ा हुआ कोई भी व्यक्ति पत्रकार और पत्रकारिता की श्रेणी में नहीं आता है, जैसा कि सूचना महानिदेशक से बातचीत में आज स्पष्ट हुआ।
प्रिंट मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और डिजिटल मीडिया तीनों ही काम तो मास कम्युनिकेशन का ही करते हैं, मगर डिजिटल मीडिया को पत्रकारिता की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता है। यह नतीजा मैंने आज सूचना विभाग से मिले इनपुट के आधार पर निकाला है और इसमें डिजिटल पोर्टल चलने वाले अलग-अलग व्यक्तियों की अलग-अलग राय भी हो सकती है। मगर सोशल मीडिया एवं डिजिटल पोर्टल के बीच, मैं जो थोड़ा बहुत फर्क समझता था वह फर्क बिल्कुल भी नहीं है और डिजिटल मीडिया में डिजिटल पोर्टल भी एक ही श्रेणी में आता है। एक ही श्रेणी से अर्थ है कि पत्रकारिता के विषय से डिजिटल मीडिया अलग है। अगर इस विषय में आपकी कोई राय हो तो आप कमेंट अवश्य करें। समाप्त।
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