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अल्मोड़ा

अंग्रेज अफसर पहाड़ के दौरे में होते थे तो उनके लिए निशुल्क कुलियों की व्यवस्था, पढि़ए कुली बेगार प्रथा, कुमाऊं परिषद तथा स्वतंत्रता संग्राम

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कस्तूरी न्यूज के सुधी पाठकों का मनोज लोहनी का नमस्कार। आपके स्नेह से कस्तूरी न्यूज धीरे-धीरे देश-दुनिया में अपनी पहचान बनाएगा ऐसा मेरा भरोसा है। पिछले एक वर्ष में कस्तूरी न्यूज वेबसाइट ने खबरों को प्रसारित करने में पूरी कोशिश की है कि पाठकों तक हर छोटी-बड़ी घटना समय पर पहुंच सके। अब कस्तूरी न्यूज विषयांतर बातें करते हुए इस कोशिश में है कि पाठकों तक समसामयिक विषयों के साथ विमर्श की शुरुआत भी हो। इसी क्रम में कस्तूरी न्यूज ने उत्तराखंड को फोकस करते हुए कुछ विषय सामने रख रहे हैं। जाहिर है इस बात इतिहास से सीधा संबंध स्थापित होता है। लिहाजा राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जयंती के दिन से इस काम को करने का विचार सामने आया। इसे मूर्त रूप दिया जा है प्रो. अजय रावत लिखित पुस्तक ‘उत्तराखण्ड का समग्र राजनैतिक इतिहास (पाषाण युग से 1949 तक)’ से। इसमें उल्लिखित शब्दावली और भाषा इसी पुस्तक से हूबह ली जा रही है। मनोज लोहनी, संपादक, कस्तूरी न्यूज।

डॉ. शेखर पाठक के अनुसार सन १९१६ से १९२६ तक कुमाऊं परिषद का इतिहास ही बड़ी सीमा तक उत्तराखंड में स्थानीय आन्दोलनों तथा राष्ट्रीय संग्राम का इतिहास भी है। कुमाऊं परिषद की प्रथम कल्पना अल्मोड़ा अखबार ने ३१ मार्च १९०८ के अंक में की थी, तब पत्र द्वारा यह स्पष्ट किया गया था कि पर्वतीय क्षेत्रों के सामाजिक, राजनीतिक तथा आर्थिक हालात सुधारने के लिए एक संगठन का होना आवश्यक है। इसी प्रकार १९११ में इलाहाबाद के समाचार पत्र लीडर ने २८ मई के अंक में बद्री दत्त पाण्डे ने उत्तराखंड में किसी महत्वपूर्ण राजनीतिक संगठन के अभाव के बारे में लिखते हुए यहां की जनता को उसकी उदासीनता और रूढि़वादिता के लिए फटकारा था। वे सन १९०८ में इस समाचार पत्र के सह सम्पादक के रूप में कार्य कर चुके थे।


डॉ. हीरा सिंह भाकुनी का मानना है कि स्थानीय स्तर पर जिस संगठन के गठन की बात सन १९०८ में उठ रही थी, उसकी स्थापना कुमाऊं की प्रारम्भिक जागृति का प्रतिफल था। कुमाऊं परिषद की स्थापना सितम्बर १९१६ में हरगोविंद पंत, गोविंद बल्लभ पंत, बद्री दत्त पाण्डे, इन्द्रलाल साह, मोहन सिंह दरमवाल, चन्द्रलाल साह, प्रेमबल्लभ पाण्डे, मोहन जोशी, लक्ष्मी दत्त शास्त्री आदि के प्रयासों के फलस्वरूप हुई। इस परिषद का मुख्य उद्देश्य उत्तराखंड के तत्काल राजनीतिक, सामाजिक तथा शिक्षा संबंधी प्रश्नों का हल ढूंढना था। प्रारम्भ में इसमें प्रत्येक विचारधारा के लोग सम्मिलित थे, जिसमें सरकार परस्त भी थे। सन १९१९ के पश्चात कुमाऊं परिषद का नेतृत्व गरम दलीय विचारधारा के हाथों में चला गया।


कुमाऊं परिषद का प्रथम अधिवेशन अल्मोड़ा में सितंबर १९१७ में हुआ। इसकी अध्यक्षता अवकाश प्राप्त डिप्टी कलेक्टर जय दत्त जोशी ने की। पहले अधिवेशन से ही परिषद में दो स्पष्ट विचारधाराएं अभिव्यक्त होने लगी। एक ओर सरकार परस्त अनुनय विनय से सुधारों को लाना चाहते थे और दूसरी ओर थे तिलक प्रभावित राष्ट्रवादी युवक जिन पर होम रूल लीग का गहरा असर हुआ।


प्रथम युद्ध के प्रारंभिक वर्ष सन १९१४ में जब तिलक ६ साल की सजा काटने के बाद रिहा हुए तो उन्होंने अपने साथियों के सहयोग से होम रूल लीग की स्थापना २८ अप्रैल १९१६ में की। तत्पश्चात सितंबर १९१६ में ऐनी बेसेंट ने भी होम रूल लीग की स्थापना कर डाली। फलस्वरूप होम रूल लीग की लोकप्रियता के कारण ब्रिटिश चिंतित होने लगे। उत्तराखंड भी इस देशव्यापी लहर से अछूता न रहा। एक दिन बद्री दत्त पांण्डे डिबेटिंग क्लब प्रेस में कुछ लिखने में व्यस्त थे कि उनके पास मोहन जोशी तथा चिरंजीलाल ने आकर अनुरोध किया कि अल्मोड़ा में भी होम रूल लीग की स्थापना होनी चाहिए। बद्री दत्त पाण्डे जैसे तैयार बैठे थे और उन्होंने तुरंत अपने साथियों के साथ होम रूप लीग की स्थापना कर डाली। होमरूल लीग के अन्य संस्थापकों में मोहन जोशी, चिरंजीलाल, हेम चंद्र जोशी, मोहन सिंह मेहता, गुरुदास साह आदि थे।


डॉ. भाकुनी का मानना है कि बद्री दत्त पाण्डे तिलक से अत्यधिक प्रभावित। उन्होंने एनीबेसेंट पर व्यंग्य करते हुए लिखा कि हमने छली बुढिय़ा बसंती की होमरूल लीग नहीं खोली है वरन लोकमान्य तिलक वाली लीग की स्थापना की है। बद्रीदत्त, तिलक से प्रथम बार सन १९०५ में बनारस कांग्रेस में मिले थे। सन १९१६ में जब वे कलकत्ता कांग्रेस में गए तो उन्होंने तिलक से कहा, महाराज मैं कुमाऊं पर्वत से आया हूं। एक बार अल्मोड़ा आकर हम लोगों को उत्साहित कीजिए…। जब बद्रीदत्त ने उनके चरण छुए और चरण रज माथे पर लगाई तो उन्होंने के शब्दों में, बदन में बिजली सी कौंध गई…। चौथी बार उन्होंने तिलक को अमृतसर कांग्रेस में देखा तथा घोषणा की कि तिलक के चार दर्शनों के उपरांत मानो उनकी चार धाम की यात्रा पूर्ण हो गई है।
कुमाऊं परिषद का द्वितीय अधिवेशन २४-२५ दिसंबर १९१८ को हल्द्वानी में हुआ। अधिवेशन के सभापति तारा दत्त गैरोला थे। उन्होंने बेगार से मुक्ति और जंगलात के अधिकार जनता को लौटाने संबंधी प्रस्ताव रखे। इससे पूर्व नवंबर १९१७ को बीरोंखाल, २८ अप्रैल १९१८ को बेरीनाग, मई तथा एक्टूबर १९१८ में चमोली तथा गंगोली में बेगार प्रथा का अप्रत्यक्ष रूप से विरोध किया गया था। कुला उतार, कुली बेगार तथा कुली बर्दायश को कम्पनी सरकार ने द रेग्यूलेशन ऑफ द गवर्नमेंट आफ फोर्ट विलियम, खण्ड-२ में इस प्रकार परिभाषित किया है:
जब ब्रिटिश अधिकारी पर्वतीय क्षेत्र में दौरे पर आते थे तो स्थानीय जनता के लिए अनिवार्य था कि वे उनके लिए निशुल्क कुलियों की व्यवस्था करें। इस प्रथा को कुली उतार कहा जाता था। यह व्यवस्था न केवल अधिकारियों के लिए होती वरन उनके साथियों और कर्मचारियों के लिए भी की जाती थी। इस सुविधा का लाभ ब्रिटिश पर्यटक भी लेते थे।
इसी प्रकार दौरे में आए अंग्रेज अधिकारियों के लिए भी स्थानीय जनता को निशुल्क कार्य करना आदेशात्मक था अथवा बेगार देनी पड़ती थी जिसे कुली बेगार की संज्ञा दी गई थी। सार्वजनिक कार्यों के लिए भी पर्वतीय जनता को को बेगार देनी पड़ती थी। कुली बेगार बर्दायश के अंतर्गत जब अंग्रेज अधिकारी पर्वतीय क्षेत्र में दौरे पर आते थे तो ग्रामीणों द्वारा उन्हें निशुल्क राशन देना पड़ता था। एक बार जब सोमेश्वर पट्टी के लोगों ने मुफ्त राशन देने में अपनी असमर्थता जाहिर की तो सर हैनरी रामजे जैसे लोकप्रिय अधिकारी ने भी उन्हें ५०० रुपये का अर्थ दण्ड लगाया था।


दिल्ली में १९१८ में होने वाले कांग्रेस अधिवेशन में उत्तराखण्ड का प्रतिनिधित्व ६० से अधिक लोगों ने किया, जिनमें अधिकतर कुमाऊं परिषद के सदस्य थे। इसी वर्ष बद्री दत्त पाण्डे कलकत्ता गये और उन्होंने गांधी जी के बेगार के बारे में अवगद कराया। गांधी जी के पास समय का अभाव था किंतु उन्होंने आशवासन दिया कि जब मौके लगेगा, कुमाऊं अवश्य आऊंगा।


सन १९१८ में ४८ वर्षों के प्रकाशन के पश्चात अल्मोड़ा अखबार के प्रकाशन को शासन विरोधी रूख अपनाने के कारण बंद कर दिया गया, वैसे भी बद्री दत्त पाण्डे के आने के पश्चात सन १९१३ से ही अल्मोड़ा अखबार शासन की नजरों को खटकने लगा था। अल्मोड़ा अखबार के होली अंक सन १९१८ में बद्रीदत्त पाण्डे ने एक गजल लिखकर तत्कालीन अल्मोड़ा जिले के डिप्टी कमिश्नर लोमस के काल कारनामों पर कुठाराघात किया। फलत: अल्मोड़ा अखबार पर १००० रूपये का जुर्माना कर दिया गया। जमानत न दोने पर अल्मोड़ा अखबार का प्रकाशन बंद हो गया और १९१८ में शक्ति साप्ताहिक का प्रकाशन प्रारम्भ किया गया। यह भी एक विशुद्ध राष्ट्रीय पत्रिका थी। १५ अक्टूबर १९१८ को बद्रीदत्त पाण्डे ने गुरुदास साह, मोहन सिंह मेहता, हरकिृष्ण पंत तथा हरगोविंद पंत आदि की सहायता से देशभक्त प्रेस की स्थापना कर शक्ति नाम साप्ताहिक का प्रकाशन प्रारम्भ किया। यह विशुद्ध राष्ट्रवादी पत्रकारिता की शुरुआत थी जिसमें कुली बेगार के उन्मूलन के प्रस्ताव को पारित किया गया।
क्रमश:

प्रो. अजय सिंह रावत का जन्म 1 सिंतबर 1948 को ग्राम रावतसेरा, बेरीनाग जिला, पिथौरागढ़ में हुआ। ख्याति प्राप्त इतिहासविद, लेखक, पर्यावरण और वानिकी शोध के क्षेत्र में प्रतिनिधि हस्ताक्षर हैं। प्रो. रावत कुमाऊं विवि नैनीताल के इतिहास विभाग के अध्यक्ष पद से सेवानिवृत्त हुए हैं, तदोपरांत वे हल्द्वानी स्थित मुक्त विवि के सामाजिक तथा मानविकी निदेशक भी रह चुके हैं। वे वानिकी तथा वानिकी के इतिहास में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जाने जाते हैं, तथा इंटरनेशनल यूनियन ऑफ फॉरेस्ट रिसर्च ऑर्गनाइजेशनर-6.7.01 वियाना (आस्ट्रिया) के 10 वर्ष मनोनीत अध्यक्ष भी रह चुके हैं। वे पहले एशियाई थे जिन्होंने इस पद को सुशोभित किया। उन्हें अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार ‘ऑर्डर ऑफ द गोल्डन आर्क’ से भी सम्मानित किया जा चुका है। उन्हें तीन राष्ट्रीय फैलोशिप भी मिल चुकी हैं। उन्हें बेस्ट आरटीआई सिटिजन ऑफ इण्डिया, ग्लोरी ऑफ इण्डिया गोल्ड मेडल, विजय श्री, गौडफ्री फिलिप सोशल ब्रेवरि अवार्ड गोल्ड मेडल ( दो बार) आदि से सम्मानित किया जा चुका है।

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संपादक - कस्तूरी न्यूज़

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