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सबसे बड़ी खबर: हलाला होगा ख़त्म, लिव इन के लिए पंजीकरण अनिवार्य: उत्तराखंड में जल्द लागू होगा UCC, विशेषज्ञ समिति ने सीएम धामी को सौंपा नियमावली का ड्राफ्ट, यहां विस्तार से देखें और क्या होगा बदलाव
उत्तराखंड में अब जल्द ही समान नागरिक संहिता (यूसीसी) लागू होने जा रहा है। आज शुक्रवार(18 अक्तूबर) को विशेषज्ञ समिति ने यूसीसी नियमावली का ड्राफ्ट मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को सौंप दिया है। सीएम धामी ने कहा कि सभी को समान न्याय और समान अवसर मिले इसके लिए यूसीसी लागू किया जा रहा है।
नाै नवंबर को यूसीसी लागू करने की तैयारी
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने हाल ही में घोषणा की थी कि सरकार नौ नवंबर को उत्तराखंड स्थापना दिवस पर यूसीसी लागू करना चाहती है। ऐसे में अब समीति के फाइनल नियमावली का ड्राफ्ट साैंपने के बाद पूरी उम्मीद जताई जा रही है कि यूसीसी उत्तराखंड में नाै नवंबर को लागू हो जाएगा। यूसीसी में ये है खासनियमावली में मुख्य रूप से चार भाग हैं। जिसमें विवाह एवं विवाह-विच्छेद लिव-इन रिलेशनशिप, जन्म एवं मृत्य पंजीकरण तथा उत्तराधिकार संबंधी नियमों के पंजीकरण संबंधी प्रक्रियाएं हैं।
ऑनलाइन मिल सकेगी सारी जानकारी
जन सामान्य की सुलभता को देखते हुए यूसीसी के लिए एक पोर्टल और मोबाइल एप भी तैयार की गई है, इसमें पंजीकरण और अपील आदि की समस्त सुविधाएं जन सामान्य को ऑनलाईन माध्यम से सुलभ हो सके।
घोषणा से कानून बनने तक का सफर
12 फरवरी 2022 को विस चुनाव के दौरान सीएम धामी ने यूसीसी की घोषणा की।मुख्यमंत्री बनने के बाद पहली कैबिनेट बैठक में यूसीसी लाए जाने पर फैसला।मई 2022 में सुप्रीम कोर्ट की सेवानिवृत्त न्यायाधीश रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में विशेषज्ञ समिति बनी।समिति ने 20 लाख सुझाव ऑफलाइन और ऑनलाइन प्राप्त किए।2.50 लाख लोगों से समिति ने सीधा संवाद किया।02 फरवरी 2024 को विशेषज्ञ समिति ने ड्राफ्ट रिपोर्ट मुख्यमंत्री को सौंपी।06 फरवरी को विधानसभा में यूसीसी विधेयक पेश हुआ।07 फरवरी को विधेयक विधानसभा से पारित हुआ।राजभवन ने विधेयक को मंजूरी के लिए राष्ट्रपति को भेजा।11 मार्च को राष्ट्रपति ने यूसीसी विधेयक को अपनी मंजूरी दी।यूसीसी कानून के नियम बनाने के लिए एक समिति का गठन।नियमावली एवं क्रियान्वयन समिति ने हिंदी और अंग्रेजी दोनों संस्करणों में आज 18 अक्तूबर 2024 को राज्य सरकार को नियमावली साैंपी।
यूसीसी लागू होगा तो यह आएंगे बदलाव
सभी धर्म-समुदायों में विवाह, तलाक, गुजारा भत्ता और विरासत के लिए एक ही कानून।26 मार्च 2010 के बाद से हर दंपती के लिए तलाक व शादी का पंजीकरण कराना अनिवार्य होगा।ग्राम पंचायत, नगर पंचायत, नगर पालिका, नगर निगम, महानगर पालिका स्तर पर पंजीकरण की सुविधा।पंजीकरण न कराने पर अधिकतम 25,000 रुपये का जुर्माना।पंजीकरण नहीं कराने वाले सरकारी सुविधाओं के लाभ से भी वंचित रहेंगे।विवाह के लिए लड़के की न्यूनतम आयु 21 और लड़की की 18 वर्ष होगी।महिलाएं भी पुरुषों के समान कारणों और अधिकारों को तलाक का आधार बना सकती हैं।हलाला और इद्दत जैसी प्रथा खत्म होगी। महिला का दोबारा विवाह करने की किसी भी तरह की शर्तों पर रोक होगी।कोई बिना सहमति के धर्म परिवर्तन करता है तो दूसरे व्यक्ति को उस व्यक्ति से तलाक लेने व गुजारा भत्ता लेने का अधिकार होगा।एक पति और पत्नी के जीवित होने पर दूसरा विवाह करना पूरी तरह से प्रतिबंधित होगा।पति-पत्नी के तलाक या घरेलू झगड़े के समय पांच वर्ष तक के बच्चे की कस्टडी उसकी माता के पास रहेगी।संपत्ति में बेटा और बेटी को बराबर अधिकार होंगे।जायज और नाजायज बच्चों में कोई भेद नहीं होगा।नाजायज बच्चों को भी उस दंपती की जैविक संतान माना जाएगा।गोद लिए, सरगोसी से असिस्टेड री प्रोडेक्टिव टेक्नोलॉजी से जन्मे बच्चे जैविक संतान होंगे।किसी महिला के गर्भ में पल रहे बच्चे के संपत्ति में अधिकार संरक्षित रहेंगे।कोई व्यक्ति किसी भी व्यक्ति को वसीयत से अपनी संपत्ति दे सकता है।लिव इन में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति के लिए वेब पोर्टल पर पंजीकरण अनिवार्य होगा।युगल पंजीकरण रसीद से ही किराया पर घर, हॉस्टल या पीजी ले सकेंगे।लिव इन में पैदा होने वाले बच्चों को जायज संतान माना जाएगा और जैविक संतान के सभी अधिकार मिलेंगे।लिव इन में रहने वालों के लिए संबंध विच्छेद का भी पंजीकरण कराना अनिवार्य होगा।अनिवार्य पंजीकरण न कराने पर छह माह के कारावास या 25 हजार जुर्माना या दोनों का प्रावधान होंगे। अमर उजाला साभार