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गजराज के फायर ब्रांड हिंदूवादी नेता बन आगे आने का श्रीगणेश…. विरोध विरोध के बीच विजय की चिंघाड़ और सनातन का शंखनाद
मनोज लोहनी, हल्द्वानी। एक बार पलक बंद कर सनातन का शंखनाद करते गजराज की छवि देखिये…. उस विजय ध्वनि को सुनिए जो केवल और विरोध को चीरकर निकली है और जिसके पीछे शक्ति है उस भगवा रंग की जिसके रंग में पूरी तरह रंगकर गजराज ने नई गाथा लिख इतिहास रच दिया है। जो छाती ठोककर कह रहा है कि यह हल्द्वानी के 2 लाख 10 हजार हिंदुओं की जीत है…। जिसने छाती ठोक कर कहा कि सनातन विरोधियों का उसे बिलकुल भी साथ नहीं चाहिए!!!
यह भी स्वयं में एक इतिहास है जब यह कह दिया गया हो कि हमें सनातन को आगे बढ़ाने के लिए गैर सनातनियों के सहयोग की कोई आवश्यकता नहीं….। एक तरफ चुनाव जीतने के लिए वोटों के लालच में नपा तुला बोलने वाले नेता और दूसरी और सब कुछ दांव पर लगाकर यह कह देने वाला नेता कि मुझे गैर सनातनी का वोट नहीं चाहिए, यह बताने के लिए काफी है कि भगवा शक्ति पर इस भगवाधारी का किस हद तक भरोसा है। यह सब विषय इस तरफ साफ-साफ दिख रहे हैं की गजराज के हिन्दूवादी फायर ब्रांड नेता बनने की यह ऐसी शुरुआत है जहां बात केवल हिंदू, हिंदुत्व और सनातन की ही होगी।
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी के राजनीति की मुख्य धारा में होने के बावजूद पार्टी की राजनीति ने गजराज सिंह बिष्ट को अभी तक नेपथ्य में ही रखा था। चुनाव लड़ने के लिए उनकी तमाम बार स्वाभाविक दावेदारी के बावजूद समीकरण उनके पक्ष में कभी नहीं बने। पार्टी के निष्ठावान कार्यकर्ता होने के नाते शुरुआती विरोध के बावजूद उन्होंने हर बार केवल और केवल पार्टी हित के विषय में ही सोचा। पर इस बार जैसे सब विरोधों के बावजूद उनके पक्ष में ही घटित होने वाला था… इसकी शुरुआत हुई हल्द्वानी नगर निगम की सीट अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित होने के बाद। हल्द्वानी मेयर सीट ओबीसी घोषित होते ही गजराज सिंह बिष्ट जब अपना आवेदन लेकर भाजपा के संभाग कार्यालय पहुंचे, उस वक्त अंदरखाने पार्टी संगठन ने इस बात को कितनी गंभीरता से लिया यह किसी को नहीं मालूम। मगर गजराज भीतर से कहीं न कहीं प्रतिबद्ध हो चुके थे, इस बात की खबर शायद और केवल गजराज को ही थी। फिर अगले ही पल हल्द्वानी की सीट फिर सामान्य श्रेणी में आ गई मगर गजराज ने दावेदारी का जो आवेदन दिया था वह अपने स्थान पर वहीं रहा। तमाम अंतर विरोधों के बावजूद अंततः गजराज सिंह बिष्ट को ही हल्द्वानी मेयर में भारतीय जनता पार्टी ने अपना अधिकृत प्रत्याशी घोषित कर दिया।
टिकट मिलने का यह दृश्य खत्म होने के बाद अब असली परीक्षा की शुरुआत होनी थी…। जैसा कि हल्द्वानी के चुनाव में हर बार होता आया है, हार जीत का गणित यहां बनभूलपुरा क्षेत्र से तय हुआ। यानी कि उन वोटो को अगर किसी प्रत्याशी को नहीं मिलना है तो वह यह भी नहीं कह सकता कि उसे उन वोटो की कोई आवश्यकता नहीं है। बस यही से गजराज ने एक अलग धारा पकड़ी.. दम भरकर यह बात सामने रखी कि चुनाव में उनका एजेंडा केवल और केवल हिंदू, हिंदुत्व और सनातन ही रहेगा। मगर यह कहने के लिए भी दम चाहिए कि…उन्हें गैर सनातनी वोटो की कोई आवश्यकता नहीं है। और गजराज ने कई बार इस बात को दोहराकर यह साफ कर दिया कि उन्हें विजय चाहिए तो जरूर, मगर उन वोटो से नहीं जो गैर सनातन की बात करते हैं। इन्हीं मायनों में हल्द्वानी मेयर का चुनाव स्वयं में एक ऐतिहासिक रूप से आगे बढ़ रहा था।
सनातन पर यह गजराज सिंह बिष्ट का भरोसा ही था कि पूरे चुनाव में उन्होंने उसे तरफ झांककर भी नहीं देखा जहां से उन्हें वोटो की आवश्यकता नहीं थी। अब जबकि हल्द्वानी में मेयर पद पर परिणाम घोषित हो चुका है और गजराज सिंह बिष्ट ने इस चुनाव को जिस तरह से जीता है, उससे यह तो साफ है कि एक विचारधारा को लेकर चुनाव लड़ने के लिए किस तरह से गजराज ने हौसला दिखाया है…. यह बात उन्हें तमाम अन्य नेताओं की बात से अलग हटकर एक फायर ब्रांड हिंदूवादी नेता के रूप में जरूर स्थापित करती नजर आ रही है।