कस्तूरी स्पेशल
ममत्व की छांव में राहुल गांधी…सीख या उलटबांसी
मनोज लोहनी
मोदी सर नेम मामले में कोर्ट से सजा और उसके बाद सांसदी के अयोग्य करार दिए जाने के बाद पूर्व सांसद राहुल गांधी अब ममत्व की छांव में हैं। राहुल गांधी के सरकारी बंगले से सामान निकल रहे ट्रकों को देखकर लगा कि, शायद यह राहुल गांधी की गलतियों का वह सामान था जिन्हें ठीक कराने को लेकर अब वह फिर मां के पास जा रहे हैं। इस बात में कोई बुराई भी नहीं है, क्योंकि १४ साल बाद आखिर राहुल को बंगला खाली कर जाना पड़ा तो उन्होंने वही निर्णय लिया जो एक पुत्र लेता है, …बड़ों की शरण। अब राहुल गांधी के १० जनपध यानि सोनिया गांधी के निवास में पहुंचने से दो बातों का होना साफ है…या तो राहुल गांधी वहां से और आक्रामक होकर अपनी हुंकार भरेंगे, फिर उसमें गलती होने की चाहे कितनी भी गुंजाइश हो, या फिर जैसा कि उनके विरोधी कहते हैं, वह १० जनपथ से कुछ अनुभव लेकर अपनी एक खास नाम वाली छवि से बाहर निकलने की कोशिश करेंगे। यहां दूसरी बात के होने की गुंजाइश काफी कम दिखती है। यानि संभावना पहली बात की ज्यादा है। क्यों? इस सवाल के जवाब कांग्रेस के उन्हीं सलाहकारों के पास होने चाहिए जो कांग्रेस को आज इस स्थिति तक लेकर आ गए हैं कि केंद्र के बाद तमाम राज्यों में भी उसके ‘हाथÓ खाली हो गए। कांग्रेस के भीतर गुलामी महसूस कर रहे तमाम बड़े नेता यहां से या तो आजाद हो चुके हैं या फिर आजाद होने की स्क्रिप्ट लिख रहे हैं। सलाहकारों का सबसे ज्यादा महत्व कांग्रेस में है, इसीलिए कांग्रेस को लेकर पिछले कुछ समय से यहां से आजाद हुए नेताओं की जो मुंहबयानी हो रही है उसमें साफ दिखता है कि हाथ का बंटाधार करने के पीछे यही सलाहकार रहे। तमाम राज्यों में आज जो स्थिति है उससे यह पता चलता है कि किसी की सलाह से बनाए कांग्रेस के राज्य प्रभारी वहां कांग्रेस पर ही भारी पड़ गए। राजस्थान के हाल सबके सामने हैं, उत्तराखंड में भी यही हाल चल रहा है। खैर बात राहुल गांधी की हो रही थी…। उनके सलाहकार कौन हैं? कोई और या वह खुद ही अपने सलाहकार हैं? कांग्रेस की बड़ी रैलियों में जो उसका कैनवास दिखता है उसमें पार्टी लोकतंत्र जैसा कम बल्कि कांग्रेस अध्यक्ष या फिर कांग्रेस के किसी बड़े नेता के होने का एक अटपटा सा चित्र बनता है। ऐसा एक खास फैक्टर के चलते होता है और वह सुपर पावर गांधी परिवार ही है। यहां राहुल गांधी का जो कद दिखता है उससे एक बात तो साफ है कि उनका सलाहकार कोई हो ही नहीं सकता क्योंकि वह शायद ही किसी की तरफ कान देते हों। तो पार्टी और खुद को लेकर लिए गए तमाम निर्णय, उनके भाषण खुद उनके ही होते हैं होंगे किसी और के नहीं। राहुल के अलावा जरूर कांग्रेस के तमाम सलाहकार कुछ न कुछ जरूर करते रहे होंगे, मगर राहुल के आगे ऐसा संभव नहीं। यहां कहने का यह अर्थ नहीं है कि कांग्रेस में अब तक जो कुछ हुआ है उसके पीछे केवल राहुल गांधी होते होंगे। बात राहुल के अपने सलाहकार होने या नहीं होने की थी। उपरोक्त बातों से साफ है कि कांग्रेस में राहुल गांधी की अपनी सलाह खुद की होती है और पार्टी चलाने को लेकर तमाम ऐसे सही निर्णय होते हैं जिनसे पार्टी का नुकसान हुआ हो, ऐसे निर्णय जाहिर है राहुल गांधी नहीं बल्कि पार्टी के वही सलाहकार लेते होंगे जो कांग्रेस को आज यहां तक ले आए हैं।
उपसंहार: राहुल गांधी को यह नहीं भूलना होगा कि कांग्रेस देश की सबसे पुरानी पार्टी है और उसके पास अनुभवी नेताओं की कोई कमी न थी न है। इस वक्त भी राज्यों में कांग्रेस के तमाम वरिष्ठ और अनुभवी नेता हैं जिन्हें देश और समाज को समझने की अच्छी समझ है। राहुल गांधी खुद को काम देने के साथ ही ऐसे नेताओं को भी काम दें तो बेहतर हो।

